
- साचो मिंतर जद मिलै, अंतर गीलो होय।
- तिण ठंडक रै कारणै, नैण सलूणा होय।।
जब किसी को सच्चा मित्र मिलता है, तो हृदय आद्र्र हो जाता है। इस कारण से जो ठंडक उत्पन्न होती है, उससे नयन गीले हो जाते हैं। तात्पर्य यह कि सच्चा मित्र मिलने पर आंखों में पानी भर आता है।
प्रतिष्ठितपुर में राजा जितशत्रु राज्य करता था। उसके पुरोहित का नाम था सोमदत्त जो कि सर्वाधिकारी था। पुरोहित सोमदत्त के तीन मित्र थे। पहला मित्र नित्यामित्र था, जिसके साथ खान-पान आदि में प्रतिदिन की मित्रता थी। दूसरे मित्र का नाम पर्वमित्र था, जिसके साथ कभी कभी उत्सव आदि पर ही मिलना जुलना और खाना पीना आदि व्यवहार होता था। तीसरे मित्र का नाम प्रणाममित्र था, जिसके के साथ मुलाकात होने पर केवल प्रणाम और कुशल-पृच्छा का ही व्यवहार था।
एक बार किसी के कारण से राजा जितशत्रु पुरोहित सोमदत्त से बहुत नाराज हो गया। तब पुरोहित सोमदत्त ने सोचा कि राजा सोमदत्त मेरा अनिष्ट करने पर उतारू हो सकता है, इसलिए उसके प्रकोप से बचने के लिए कोई उपाय करना चाहिए। वह रात के समय घर से निकल कर नित्यमित्र के पास पहुंचा और उससे बोला कि राजा जितशत्रु मुझ पर कुपित हो गए हैं, अत: मैं तुम्हारे पास शरण चाहता हूं, क्योंकि आपात्काल में ही मित्र की। मित्रता ज्ञात होती है। अपने घर में छिपाकर मित्रता निभाओ। नित्यमित्र कहने लगा कि तुम्हारी-हमारी मित्रता तभी तक थी, जब तक तुम्हें राज्य भय नहीं था। अब तुम्हारी हमारी कोई मित्रता नहीं।
मैं तुम्हें अपने घर में रखकर अपने परिवार को आपत्ति में नहीं डालना चाहता। निराश होकर पुरोहित सोमदत्त तब पर्वमित्र के घर गया। उसे अपनी स्थिति से अवगत करा के आश्रय मांगते हुए कहा कि अपन दोनों पर्व, उत्सव आदि के अवसर पर एक साथ खान पान, वार्तालाप आदि करते रहे हैं, अत: मित्रता निभाओ। तब पर्वमित्र बोला कि यह सच है कि मैं आपके स्नेह से अभिभूत हूं, लेकिन अपनी कुलीनता की रक्षा के लिए मैं आपको अपने घर में रखने में कुटुंब के लिए आपत्ति का निमंत्रण मानता हूं। अत: सहायता करने में असमर्थ हूं। पुरोहित सोमदत्त सोचने लगा कि जिनका उपकार किया था, उनके यहां जाने पर यह परिणाम आया है तो अब कहां जाऊं? उसने निश्चय किया कि अब प्रणाममित्र को देखा जाए, वैसे उसके साथ चाल की ही प्रीति है।
वह प्रणाम मित्र के घर पहुंचा। प्रणाममित्र ने सोमदत्त को देखते ही उठकर, हाथ जोड़कर स्वागत किया और पूछा कि कहिए, रात के समय किस काम से पधारना हुआ? आपकी यह दशा क्यों? आप किसी बात की चिंता न करें, मेरे जीते जी आपका कोई बाल बांका नहीं कर सकता। प्रणाममित्र ने न केवल उसे संरक्षण दिया, बल्कि उकस पूरा खयाल रखा। ऐसे मित्र को पाकर वह अब निर्भय और निशंक था।