
- बातां बडी बणाय, काम काढ लै आपणो।
- सुळगतड़ी सुळगाय, हंसता बैठे ओट में।।
जो दुर्जन होते हैं वे बडी बडी बातें बनाकर अपना काम कर लेते हैं। ऐसे लोग सुलगती हुई में घी डालकर और सुलगा देते हैं और स्वयं ओट में बैठकर अपनी सफलता पर हसते हैं। एक राजा के बेटे और एक बढई खाती के बेटे में दोस्ती थी। दोस्ती भी कोई ऐसी वैसी नहीं, दांत काटी रोटी वाली दोस्ती। दोनों साथ साथ रहते। साथ खाते पीते। साथ खेलते-कूदते। मन की बातें भी एक-दूसरे को बताते। इससे राजा की बडी बदनामी हो रही थी।
राजा ने राजकुमार को बहुत समझाया कि बेटा, कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली। छोड़ दे उस बढई का साथ। दोस्ती बराबर वालों के साथ होती है। पर दोस्ती तो दोस्ती ठहरी, वह भला ऐसे छूटती है? तब राजा ने दोनों के मिलने जुलने पर रोक लगा दी। अब दोनों ही दोस्त लुक छिप कर मिलते। राजा की नजर बचाकर मिलते। पर मिलते जरूर। राजा हैरान था कि आखिर कैसे इनकी दोस्ती में दरार पड़े। उसी नगर में एक कु टनी रहती थी। गोरी चिटटी। देखने में सुंदर। जवान भी, चालाक भी।
उसने राजा की यह परेशानी मिटाने का बीड़ा उठाया। एक दिन खूब सोलहों श्रृंगार करके वह कुटनी जंगल में जा पहुंची, क्योंकि दोनों जवान दोस्त वहां शिकार खेलने गए थे। कुटनी ने उनसे थोडी दूरी पर अपनी पालकी रूकवाई। फिर पालकी से उतर कर उन दोनों को इशारे करने लगी। उसे देखकर दोनों को लगा कि कोई वनदेवी आ गई है। दोनों उस पर लटटू हो गए। पहले तो वह दोनों को ललचाती रही, फिर उसने बढई के बेटे का संकेत कर, अपने पास बुलाकर कहा कि मैं तुझसे एक बात कहूंगी। बढई का बेटा बोला कि कह न। वह बोली कि बात गुप्त है। इधर आ कान में कहूंगी। नहीं तो तेरा साथी सुन लेगा। तब बढई का बेटा बोला कि सुन लेगा तो क्या, उससे मेरी कोई बात नहीं छिपी है। कुटनी बोली कि नहीं नहीं, तू समझता नही है। इधर कर अपना कान।
बढई के बेटे ने अपना कान उसके मुंह के पास बढाया तो वह धीरे से बोली कि देख, किसी से कहना मत। इतना कहकर वह बोली कि अच्छा, जा। लौटाने पर बढई के बेटे से राजकुमार ने पूछा कि क्यों रे, क्या कहा परीने?बढई का बेटा बोला कि कहा अपना सिर। इतना ही बोला कि देख, किसी से कहना मत। राजकुमार को शक हो गया। सोचा कि यह कुछ छुपा रहा है। बिगड़ कर बोला कि बताता क्यों नहीं? आज तक तूने कोई बात छिपाई नहीं, आज छिपा रहा है। बढई का बेटा बोला कि क्या छिपा रहा हूं? उसने इतना ही तो कहा कि देख, किसी से कहना मत। बढई का बेटा सच कह रहा था, लेकिन राजकुमार को शक हो गया कि यह छिपा रहा है। दोनों में खूब झगड़ा होने लगा इस बात पर। कुटनी ने पालकी पर चढते चढते आग में घी डाल दिया। बढई के बेटे से उसने चिल्ला कर कहा कि देख, किसी से कहना मत। तेरी जिम्मेदारी है। बस, दोनों में बोल चाल बंद हो गई और कुटनी राजा से इनाम पाकर मालामाल हो गई।