8949. चौड़े काढो चतरसी

अकल सरीरां मांय, तिलां तेल घ्रित दूध में।
पण है पड़दै मांय, चौड़े काढो चतरसी।।


जिस तरह तिलों में तेल और दूध में घी रहता है, उसी तरह मनुष्य के शरीर में अक्ल समाहित रहती है। लेकिन वह पर्दे में होती है, इसलिए उसे बाहर निकालना चाहिए।
एक बार एक सेठ नदी किनारे खड़ा होकर नदी को निहार रहा था। तभी उधर ठाकुर आ निकला और वह भी सेठ के पास खड़ा होकर नदी का बहता पानी निहारने लगा। कुछ समय बाद नदी में एक संदूक बहता हुआ आता दिखाई दिया। दोनों ही उस संदूक को बड़े ध्यान से देखने लगे। ठाकुर ने सेठ से कहा कि बड़े ध्यान से देखने लगे। ठाकुर ने सेठ से कहा कि संदूक भरा हुआ। लेकिन सेठ बोला कि संदूक खाली है। दोनों अपनी अपनी बात पर अड़ गए। तब ठाकुर ने कहा कि शर्त लगाई जाए।

सेठ ने कहा कि भले ही शर्त लगा लो। दोनों में शर्त हो गई कि जीतने वाला हारने वाले का सिर काट ले। सेठ ने सोचा कि संदूक यदि भरा हुआ होता है, तो उसका कुछ भाग पानी में अवश्य डूबा रहता और वह इतनी जल्दी आगे नहीं बढता। अत: मैं अवश्य जीतूंगा। लेकिन ठाकुर के मन में तो धूर्तता समायी हुई थी। और उसने और ही चाल चल रखी थी। जब संदूक एकदम खाली था। अब ठाकुर ने सेठ से कहा कि मैं शर्त हार गया हूं, अत: आप मेरा सिर काट लें। सेठ ने तो सोचा कि ठाकुर पर एहसान जताकर उसे छोड़ दूंगा। लेकिन ठाकुर नहीं माना। उसने सेठ से कहा कि मैं राजपूत हूं, हारा हुआ सिर नहीं रख सकता। यह सिर तो अब आपका हो चुका है, अत: या तो इसे काट लीजिए या इसे खाने के लिए अन्न और बांधने के लिए साफा दीजिए। कोई सेठ भला किसी सिर काट सकता है? सेठ से ठाकुर का सिर नहीं काटा गया, अत: वह ठाकुर को अन्न और साफा देने लगा। ठाकुर हर महीने सेठ के यहां आता और महीने भर का अन्न ले जाता और छह महीने में एक साफा ले जाता।

एक दिन सेठ का बेटा दिशावर से आया और उसने जब ठाकुर की लाग देखी तो बेटे ने बाप से पूछा कि अमुक ठाकुर क्या अपने यहां नौकरी करता है? तब बाप ने सारी बात बेटे को बतला दी। सेठ के बेटे ने तय किया कि इस बार आने दो ठाकुर को, सारा हिसाब-किताब एक ही बार में निवेड़ दूंगा। अगली बार जब ठाकुर अन्न लेने आया तो सेठ के बेटे ने कहा कि ठाकुर साहब, आपका यह सिर हमारा है न? ठाकुर ने तुरंत हां भरी। तब सेठ के बेटे ने कहा कि जब आपका यह सिर हमारा है, तो फिर हम इसके साथ कुछ भी कर सकते हैं। आप कल आइएं इस सिर में से हमें एक आंख निकालनी है सो कल निकालेंगे। साथ ही एक ओर की मंूछ भी हम काटेंगे। दोनों चीजें हमें दिशावर भेजनी है, सो आप कल अवश्य अवश्य आ जाएं। यह सुनते ही ठाकुर के तो होश ही उड़ गए। ठाकुर ने उस समय तो हां भर ली, लेकिन फिर उस सेठ की हवेली की ओर जीते जी कभी नहीं आया।