
हत्या के करीब 23 साल पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी मृतक का मृत्यु पूर्व बयान तब तक प्रमाणित नहीं माना जा सकता, जब तक उक्त बयान को लेने की लिखित अनुमति डाक्टर से न ली गई हो।
चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और अनिरूद्ध बोस की पीठ ने इसके साथ ही यह भी दोहराया कि किसी भी मामले में मृत्यु पूर्व बयान दर्ज करते समय मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति भी अनिवार्य है।
कर्नाटक के इस मामले में शीर्ष कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा और कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला पलटते हुए उम्रकैद की सजा पाए चार अभियुक्तों को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृत्यु पूर्व दर्ज किए जाने वाले बयानों की प्रमाणिकता बनाए रखने के लिए एक तय कानूनी प्रक्रिया है।
जिसके तहत सबसे पहले पीडि़त का उपचार कर रहे डॉक्टर से जांच अधिकारी इस बात की लिखित अनुमति लेता है कि पीडि़त बयान देने के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह से फिट है भी या नहीं। यह अनुमति पत्र मिलने के बाद मजिस्ट्रेट को बुलाया जाता है और उसकी अनुपस्थिति में बयान दर्ज किया जाता है।