
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यूपी के कानपुर देहात स्थित अपने पैतृक गांव परौंख में हैं। रविवार को यहां पहुंचने के बाद वे भावुक नजर आए। यहां हेलीपैड पर उतरकर उन्होंने अपनी जन्मभूमि पर नतमस्तक होकर मिट्टी को स्पर्श किया।
उन्होंने कहा कि मैंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी कि गांव के मेरे जैसे एक सामान्य बालक को देश के सर्वोच्च पद के दायित्व-निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह कर के दिखा दिया।
यहां अभिनंदन समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने मंच से ही अपने दिल की बात कही। उन्होंने कहा, मैं कहीं भी रहूं, मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू और मेरे गांव के लोगों की यादें सदैव मेरे दिल में रहती है। मेरे लिए परौंख केवल एक गांव नहीं है, यह मेरी मातृभूमि है, जहां से मुझे, आगे बढ़कर, देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही।

भारतीय संस्कृति में मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव की शिक्षा दी जाती है। हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी। माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
आज इस अवसर पर देश के स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान-निर्माताओं के अमूल्य बलिदान और योगदान के लिए मैं उन्हें नमन करता हूं। सचमुच में आज मैं जहां तक पहुंचा हूं उसका श्रेय इस गांव की मिट्टी और इस क्षेत्र तथा आप सब लोगों के स्नेह व आशीर्वाद को जाता है।