मौन साधना से होता है सत्य का ज्ञान : संत श्री

नागौर। पर्युषण पर्व के पांचवें दिन मोक्ष कल्याणक दिवस पर मंगलवार को सभी मंदिरों में बड़े ही धूमधाम, पूजा अर्चना के साथ मनाया गया। सभी श्रावकों ने जैन मंदिरों में भगवान के सामने शक्कर निर्मित लड्डू चढ़ाए। वर्तमान अवसर्पिणी काल के जैनियों के 9वें तीर्थंकर है। इनका चिन्ह ‘मगर हैं। इसके साथ ही पर्युषण पर्व के पांचवें दिन उत्तम सत्य धर्म की पूजा की।

समाज के नथमल जैन ने बताया कि सत्य का संबंध ज्ञान से है विवेक से है। सत्य को बोलने से ज्यादा जानना जरूरी है। प्राय: ऐसा देखा गया है कि मुख से सत्य बोल भी दिया जाए, तब भी अगर मन षडयंत्र में ही रमा रहता है तो वचनों तक सीमित सत्य सही मायने में सत्य की परिभाषा में नहीं माना जा सकता है। सत्य बोले बिना भी काम चल सकता है, लेकिन सत्य जाने बिना काम नहीं चल सकता। जब तक आदमी सत्य नहीं जानता तब तक सत्य बोल नहीं सकता।

उन्होंने बताया कि भगवान महावीर जैसे तीर्थंकर महापुरुष सत्य में प्रवेश करते ही मौन हो गए और बारह वर्ष तक नहीं बोले तो बाहुबली जैसे मोक्षकारी बारह माह नहीं बोले और वे तब तक नहीं बोले जब तक उन्होंने सत्य को नहीं जान लिया।

जिस दिन उन्होंने दुनिया का सत्य जान लिया उस दिन उन्होंने पूरे विश्व को सत्य व अहिंसा का संदेश दिया जो आज भी मारकाट की तरफ बढऩे वाली दुनिया के लिए विशेष सुरक्षा कवच के रूप में सार्थक है। नथमल ने यह भी बताया कि सत्य साधन नहीं, अपितु साधना है।

इसलिए वचन का सत्य ज्ञान के सत्य के सामने बहुत हल्का और छोटा है। वाचनिक सत्य तब तक असत्य की श्रेणी में ही रहता जब तक उस सत्य को जाना नहीं जाए। जैन धर्म कहता है सत्य को जानना जरूरी है। सत्य का ज्ञान बोलने से नहीं मौन साधना से होता है जब तक हमने ही सत्य को नहीं जाना तो दूसरों को क्या सत्य बांट सकते हैं।

नथमल जैन ने बताया कि सत्य मौन है, इसलिए वह निपट अकेला खड़ा है। असत्य के पास शब्द हैं, इसलिए उसके साथ भीड़ खड़ी नजऱ आती है।क्योंकि मौन के साथ संघर्ष है, पीड़ा है, अपमान है, सूली है परंतु मौन के पास प्रत्युत्तर नहीं है।

जब जीसस सूली पर चढ़े तो वे अकेले थे। उनके चारों तरफ असत्य की भीड़ थी। सीने पर गोली झेलते हुए महात्मा गांधी भी अकेले ही थे, जिन्होंने सच बोला नहीं अपितु वे सच चुपचाप जीते रहे।उनका अनकहा सच ही आज सत्य को परिभाषित कर रहा है।

नथमल ने यह भी बताया कि पर्युषण पर्व के दस अंगों में भी सत्य और ब्रह्म मनुष्य जीवन के दो छोर हैं। सत्य ही ब्रह्म है और ब्रह्म ही सत्य है हमने अभी तक क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच धर्म की व्याख्या की है। उनके पालन से सत्य की उपलब्धि होती है। सत्य के पश्चात शेष चार संयम, तप, त्याग और आकिंचन्य धर्म के पालन से ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यही जीवन का सार व सार्थकता है।

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