
बांसवाड़ा। पर्यूषण पर्व के दसवें दिन योगी आचार्य सुंदर सागर महाराज ने अपने वचनों में कहा कि जो मनुष्य मन मे राग छोड़कर अपने से छोटी स्त्री को पुत्री के समान, बराबर की स्त्री को बहिन के समान और अपने से बड़ी स्त्री को माता के समान समझता है, उसके ब्रह्मचर्य व्रत होता है। यह समझना है कि ब्रह्मचर्य व्रत अपनी शक्ति के संरक्षण के लिए है। ब्रह्मचर्य के पालन से अहिंसा का पालन होता है।
शरीर में सात धातुएं होती है, उसमें एक धातु है वीर्य। जो हम भोजन करते है, उसकी पूरी शक्ति उस वीर्य में होती है, यदि वीर्य धातु नष्ट हो जाती है, तो शरीर कमजोर हो जाता है, समय से पहले वृद्धा आ जाती है, रोग आकर घेर लेते है। इसलिए वीर्य की रक्षा करने के लिए ब्रह्मचर्य का उपदेश दिया है।
स्त्री संसर्ग से आयु, तेज, बल, बुद्धि, धन, यश, प्रीति दायक पुण्य नष्ट हो जाते है। आचार्य जी ने कहा कि यदि सर्वथा त्याग न कर सके, तो जैसे सीमित मात्रा में औषधि सेवन करते है, उसी प्रकार काम विशयक पीड़ा को निवारण करने के लिए इसका सेवन करना चाहीए।
शरीर की मलिनता के बारे में विचार करने से काम वेदना का शमन होता है। यह शरीर रज और वीर्य से मिलकर बना है। समाज अध्यक्ष पवन नश्वात ने बताया कि पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व के अन्तिम दसवें दिन आचार्य श्री संघ सानिध्य में सुबह में पंचामृत अभिषेक का लाभ सुमतिलाल वोरा परिवार और शांतिधारा का लाभ रविन्द्र कुमार रजावत परिवार को मिला, शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए जिसमें विमल सन्मति युवा मंच द्वारा नाटक का मंचन किया गया।
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