आंकड़ों के साथ अक्कड़-बक्कड़

कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है…। कहते हैं कि जो दिल से सोचता है उसे कई तकलीफें उठानी पड़ती है। अगर ये बात सही है तो हम दूसरों की भलाई के लिए यह करने को भी सहर्ष राजी हैं। रात को दो बजे के बाद भी नींद से उठाकर कह देना कि भाई तुम्हें फलाणें के लिए दिल से सोचना है, नट जाएं तो आप का ठोला-मेरा सिर। थोड़े दिन की बात है। खामखा काहे को पंगापंथी कर रहे हो। थोड़े दिन फासले रख लोगे तो कौन सी नाक कट जाएगी। ठीक ठाक हो जाए तो दिन भर गलबहियां डाल के डोलना। ना कोई कहने वाला ना कोई सुनने वाला। छुपाने से भी क्या फायदा। अगर आंकड़ों के साथ अक्कड़-बक्कड़ करने से परेड थम जाती तो धरतेइ ऐसा कर लेते। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


कभी-कभी और दिल-ख्याल पढ कर कई पाठकों को लगा होगा कि ”सिलसिला फिलिम का डॉयलॉग आ रहा है, आगे बढ़े तो स्थिति साफ हो गई कि ऐसा कुछ नहीं है। ऐसा कुछ नहीं के माने यह नहीं कि हमें डॉयलॉग नहीं आते हो या पसंद ना हो। कभी हम महफिल लूट लिया करते थे। आज भी कोई चैलेंज कर के देखे। खैर अपन को फिलहाल इसके चक्कर में नहीं पडऩा। सवाल ये कि दिल से कैसे सोचा जाता है। सवाल ये कि दिल से कहा कैसे जाता है। हम-आप की जुबान से कई बार निकलता है ”मेरा दिल कहता है ऐसा होने वाला है…। जब दिल कहता है तो भगवान ने जुबान देकर गलती की। जिसे जो कहना है दिल से कह दे जुबां को तकलीफ क्यंूं दें। दिल ने दिल से कह दिया और मामला नक्की। अगले का दिल सुने या ना सुने वो जाने। सुनने में भी लोचा। दिल सुनता तो कान की जरूरत कहां पड़ती। हो सकता है भगवान ये कान लूंग-बालिए झुमके आदि-इत्यादि पहनने के लिए दिए हों। कान नहीं होते तो चश्में की डंडियां किस पे टिकती। कोरोना काल तो जोरदार लोचा हुई जाता। मास्क कहां बांधते। मास्क बांधने का विकल्प ये कि डोरिएं सिर से बांध लो, उसी प्रकार चश्मा बांधणा पड़ता।


कुल जमा बात ये कि दिल-विल कुछ नहीं कहता। कहती है जुबां। सोचता है दिमाग। दिल धड़कता है। धड़कन है तो सब कुछ है। धड़कन है तो जीवन है। जीवन है तो दुनिया है। कई लोगों के लिए दुनिया शानदार कई के लिए जालिम। साफ और सु_ी बात है भाई कि जैसा बोवोगे-वैसा पावोगे। बोनें पेड् बबूल का आम कहां से होय। आप किसी का बुरा करके थोड़े समय के लिए राजी भले ही हो जाएं। सच तो यह है कि आप का किया-घरा घूमफिर के वापस आप के ही पास आणा है। इस लिए संत-सयाने कहते है-”जोत से जोत जगाते चलो… प्रेम की गंगा बहाते चलो…।


दूसरी बार ये कि हम ने रात को दो बजे नींद से उठाकर आजमाने की बात क्यूं की। लोग आधी रात का जिक्र करते रहे हैं। ऐसा वो लोग कहते होंगे जो रोटी खा-खूके रात को नौ बजे बिस्तर में घूस जाते है। हथाईपंथी रात बारह एक बजे तो पड़ते हैं। नींद आते-आते डेढ़ दो बजे जाते हैं इसलिए दो बजे कहा। कोई आधी रात को उठने को कहे तो उसकी चुनौती स्वीकार करने के लिए हथाई से भी उठ सकते है। बता दें कि बाहरी हथाई कोरोना काल के चलते रात दस बजे उठकर मदन भासा के घर के नीचे वाले हॉल में जम जाती है और आधी रात तक चलती है। और कोई सरकारी गाइड लाइन का पालन करे या ना करे हथाईबाज देह दूरी बनाए रखने के साथ, मास्क और अन्य निर्देशों की पालना भी करते है।


देह दूरी की बात करना जरूरी। वो इसलिए कि लॉकडाउन से छूटने के बाद कोरोना का विस्फोट लगातार भयावह तरीके से गूंजता जा रहा है। ज्यों-ज्यों अनलॉक वन-टू-थ्री फौर की और बढ़ रहे है त्यों-त्यों संक्रमितों की संख्या बढती जा रही है। राम प्यारा होने वाले भी बढ़ रहे है। हम देख रहे हैं कि लोग दिन-ब-दिन कोरोना के प्रति लापरवाह होते जा रहे है। सरकारी गाइडलाइन की धज्जियां उड़ रही है। गली-गुवाड़ी से लेकर चौक-चौबारों और बाजारों में भीड़। ना देह की दूरी ना फिजिकल डिस्टेंस। परीक्षा केंड में तो नियमों की पालना-बाहर धक्का धूम। मार्केट में खरीददारी भले ही ना हो, लोग जरूर उडूड रहे है। आम लोगों की क्या कहें। नेतों को ही देख लो। जहां जाएंगे भीड़ भड़क्का साथ। जिस नेते के साथ ज्यादा भीड़ उसका कद उतना बड़ा। ऐसा वो और उनके चंगू-मंगू मानते हैं। हमें तो उनकी बेपरवाही पे कोफ्त होती है। गुस्सा आता है। खुद संक्रमित हुए तो पूरी सुविधा मिल जाएगी। बिचारे कालू को क्वारेंटाइल बाड़े में डाल दिया तो कोई पूछने वाला भी नहीं। कुछ दिनों की बात है। दूरियां रख ली तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। बुरे दिन निकलने के बाद खुब पपिए झपिएं ले लेना।


हथाईबाजों को आंकड़ों की अक्कड़-बक्कड़ पे भी हैरत हो रही है। जोधपुर जिला प्रशासन के निर्देश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने संक्रमितों के आंकड़े देने बंद कर दिए। स्टेट के आंकड़े जारी है और जिला स्तर बंद। ऐसा करने से क्या रोगियों की संख्या घट जाएगी। वहां शहीद होने वालों की संख्या भी नहीं छुपाई जा रही और यहां विभाग संक्रमितों की संख्या बताने में शरमा रहा है। बंद करो ये नाटक। देह दूरी भी कायम रखो। थोड़े दिन संयम रूपी डर रखो-डर के आगे जीत है। यह बात नेतों पर विशेष रूप से लागू होती है।