जानें क्यों गिरता और चढ़ता है रुपया
नई दिल्ली। एक उदाहरण से समझते हैं कैसे रुपये का गिरना एक बड़ी समस्या है। मान लीजिए आपको कोई सामान आयात करने में 1 लाख डॉलर चुकाने होते हैं। इस साल की शुरुआत में रुपये की कीमत डॉलर की तुलना में करीब 75 रुपये थी। यानी तब हमें इस आयात के लिए 75 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे। ऐसे में हमें उसी सामान के लिए अब 75 के बजाय 78 लाख रुपये से भी अधिक चुकाने होंगे। यानी 3 लाख रुपये का नुकसान। यह आंकड़ा तो सिर्फ 1 लाख डॉलर के हिसाब से निकाला है, जबकि आयात के आंकड़े लाखों-करोड़ों डॉलर के होते हैं।
करेंसी की वैल्यू कब बढ़ती है
अर्थशास्त्र में एक सरल गणित चलता है, जिसका नाम है डिमांड और सप्लाई। आसान भाषा में कहें तो जिस चीज की मांग जितनी ज्यादा होती है, उस चीज की कीमत उतनी ज्यादा बढ़ जाती है। बस, यही हाल डॉलर का भी है। दुनिया भर में डॉलर की मांग है, क्योंकि वैश्विक बाजारों में लेनदेन के लिए डॉलर के माध्यम से ही पेमेंट करना होता है।
इतनी डिमांड के चलते ही डॉलर की वैल्यू हमेशा बढ़ी रहती है। अगर भारतीय करेंसी की बात करें तो धीरे-धीरे भारतीय करेंसी रुपया भी अपनी डिमांड को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ा रहा है। वर्तमान में रूस और श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, सहित अन्य देशों में भी रुपये से पेमेंट किया जा रहा है। जैसे- जैसे रुपये की डिमांड बढ़ेगी, हमारी करेंसी भी मजबूत होती जाएगी।
रुपया क्यों गिरता है
पिछले 5 सालों की बात करें तो रुपये के वैल्यू में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। 2018-19 में 1 डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 69.80 थी। 2019-20 में रुपये की वैल्यू टूटकर 74.90 हो गई। एक साल के बाद 2020-21 में रुपया थोड़ा मजबूत हुआ और 73.93 पर आ गया। 2021-22 में रुपया 1 डॉलर के मुकाबले 77.40 रुपये का था।
तो आखिर हमारा रुपया गिरा क्यों, किन कारणों की वजह से रुपये में गिरावट दर्ज की गई। किसी भी देश की करेंसी कभी भी एक वजह से नहीं गिरती। वैसे ही रुपये के गिरने के भी कई कारण हैं, जैसे कच्चे तेल की उच्च कीमतें, विदेशों में मजबूत डॉलर और विदेशी पूंजी का आउटफ्लो।
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