
जयपुर में मंगला आरती के बाद हुआ ठाकुरजी का अभिषेक,मंदिर में एंट्री की सभी जगहों को बैरिकेड्स लगाकर बंद कर दिया गया
जयपुर। आज प्रदेश समेत पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है, लेकिन कोरोना के कारण इस बार लोग मंदिर में दर्शन नहीं कर पाएंगे। वहीं, कई मंदिर परिसर द्वारा भक्तों के लिए लाइव प्रसारण की व्यवस्था की गई है। इनमें से ही एक है जयपुर का प्रसिद्ध गोविंद देवजी मंदिर। हर साल की तरह इस साल भी यहां मंदिर में सजावट की व्यवस्था की गई है। बुधवार सुबह मंगला आरती के बाद पंचामृत अभिषेक से जन्माष्टमी की शुरुआत हुई। जिसके बाद धूप आरती की गई। जहां रात 12 बजे पंचामृत से गोविंदाभिषेक होगा।

कोरोना के चलते मंदिर में लोगों का प्रवेश निषेध रहेगा, लेकिन मंदिर परिसर में सभी कार्यक्रम होंगे। मंदिर में एंट्री की सभी जगहों को बैरिकेड्स लगाकर बंद कर दिया गया। यहां भगवान के अभिषेक के लिए 31 लीटर दूध, 21 किलो दही, 2 किलो घी, 10 किलो बूरा और 2 किलो शहर अर्पण किया जाएगा। साथ ही पूरे मंदिर परिसर की सजावट भी की जा रही है। साथ ही रोशनी भी की जाएगी।
ऐसा रहेगा कार्यक्रम
सबसे पहले 12 अगस्त को सुबह मंगला आरती के बाद भगवान का पंचामृत अभिषेक किया गया। इसके बाद उन्हें पीले वस्त्र धारण करवाए गए। अब 12 अगस्त को रात 10 से 11 बजे तक कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा का पाठ किया जाएगा। 12 अगस्त को ही रात 12 बजे 31 तोपों की सलामी के साथ भागवान कृष्ण का गोविंदाभिषेक होगा। इसके बाद 13 अगस्त को मंदिर में नंदोत्सव मनाया जाएगा।
यहां भी मनेगी जन्माष्टमी
गोविंद देव जी के अधीन राधा माधव जी, नटवर जी, श्री गोपाल जी, मुरली मनोहर जी मंदिर, स्वामीनारायण मंदिर, मानसरोवर स्थित इस्कॉन मंदिर, जगतपुरा स्थित बलराम श्री कृष्ण मंदिर, चौड़ा रास्ता के राधा दामोदर जी में भी जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
राजा जयसिंह ने बनवाया था मंदिर
गोविंद देवजी जयपुर के राज परिवार के इष्ट देव हैं। शहर के संस्थापक जयसिंह और उसके बाद के सभी शासकों ने गोविंद देवजी की भक्ति की है। इस मन्दिर का निर्माण 1735 में हुआ था। सवाई जयसिंह ने आज के जयनिवास में गोविंद देवजी की प्रतिमा को रखवाया और 1715 से 1735 तक गोविंद देवजी जयनिवास में ही रहे। कहानी यह भी है कि जयसिंह को एक बार सपना आया जिसमें गोविंद देवजी ने उन्हें मन्दिर बनाकर वहां स्थापित करने का आदेश दिया।
कहते हैं कि सपने में जिस प्रकार कहा गया उसी हिसाब से देवस्थान बनाया गया। मन्दिर जो बना वह महल जैसा था। गोविंद देवजी के सामने विशाल मन्दिर ऐसा बना कि सोने से पहले और प्रात: उठने पर महाराजा अपने शयन कक्ष से ही सीधे गोविंद देवजी के दर्शन करते और आशीर्वाद लेते। आज भी मंदिर की भव्यता किसी राजमहल से किसी भी अंश में कम नहीं है।