
ऊंट की करवट तो दूर, अभी बैठा ही नही इससे पहले चिकचिक शुरू हो गई। सब की नजर केमलजी पर और उसकी करवट पर। कई लोग तो मोबाइल थाम कर तैयार खड़े हैं ताकि वीडियो उतारा जा सके कि ऊंट कब बैठेगा और कौन सी करवट बैठेगा। कई लोगों का कहना ये कि बिठाई यूं हो या यूं। डावी करवट ले के बैठे या जीवणी, खेल तो शुरू हो ही गया। नहीं हुआ तो हो जाणा है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
करने वाले इस बात पर हैरत कर सकते हैं कि जब मुख्य मुद्दा अध्यक्ष पद का बताया जा रहा है, तो बीच में ऊंट कहां से आ गया। उन लोगों से हमारा यह कहना है कि ऊंट तो प्रारंभिक भूमिका है। धीरे-धीरे केंद्र बिन्दू तक भी पहुंच जाएंगे। ऐसा सिर्फ यहीं नहीं हो रहा। आप कोई भी विषय ले लो.. कोई भी मुद्दा ले लो.. कोई भी मसला ले लो..। सबसे पहले उसकी भूमिका बांधी जाती है, उसके बाद होले-होले मैन सबजेक्ट की ओर रूख किया जाता है। इस बात को मद्दे नजर रख कर यह कहा जा सकता है कि ऊंट-मुख्य विषय की पहली सीढी है। आगे क्या होगा वह आगे देखा जाएगा। फिलहाल नजर ऊंट और ऊंट की करवट पर। पहले ऊंट आएगा फिर चाय-नाश्ता करेगा। उसके बाद बैठेगा ही बैठेगा, जरूरी नही है। हो सकता है खडा रहे। कब तक खड़ा रहे, यह उस की मरजी। मान लिया कि घंटे-दो घंटे बाद बैठ जाए तो नजर इस बात पर कि कौन सी करवट बैठेगा। यह भी जरूरी नही कि जमीन पे बिराजते ही करवट ले ले। हो सकता है थोड़ी देर चारों पैरों पर सीधा बैठा रहे उसके बाद करवट ले। तब तक इंतजार करने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं।
असल में ऊंट और करवट को एक कहावत से जोड़ा गया है। इसके अन्य अर्थ-मतलब तलाशें जाएं तो-‘तेल देखो और तेल की धार देखोÓ के रूप में सामने आएगा। वेट एंड वॉच भी इससे अलग नहीं। हवा का रूख किस तरफ होगा, वक्त बताएगा भी इसी का एक हिस्सा। दूसरी बात ये कि कहावत के महावत ने ऊंट को ही क्यूं चुना। वो चाहते तो घोड़े दौड़ा सकते थे। वो चाहते तो हाथी चिंघाड़ सकते थे। वो चाहते तो शेरों की दहाड़ लगवा सकते थे-और नहीं तो गाय-भैंस या हिरण-नील गाय को लिया जा सकता था। जंगल जिनावरों से अटा पड़ा है। देश-दुनिया में जंगली जिनावरों की भरमार। पालतु जिनावर भी अगणित। इन में से सिर्फ-ओ-सिर्फ ऊंट को चुनने का मतलब यही इशारा करता है कि हो ना हो वो ऊंट प्रेमी रहे होंगे। हो सकता है उन का नाता राजस्थान और खासकर बाड़मेर-जैसलमेर या बीकानेर से रहा होगा। इन क्षेत्रों में ऊंट कमाऊं पूत से कम नही माने जाते। हो सकता है-इसी कारण उन्हें कहावत में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हो। वरना कहावत-‘गाय किस करवट बैठेगीÓ हो सकती थी। गाय माता को कहावत से दूर रखते तो कहावत भैंस मासी किस करवट बैठेगीÓ का रूप ले सकती थी। अब अदला-बदली करने से कुछ होणा-जाणा नही है। भैंस पानी में बैठेगी, तो बैठेगी और ऊंट किस करवट बैठेगा, तो बैठेगा।
हथाईबाज देख रहे हैं कि उठक-बैठक से पहले ही चिक चिक शुरू हो गई। यह उस खेल की शुरूआत है जिसे शीर्षक बना के लटकाया गया है। इस खेल का अंजाम क्या होगा यह भविष्य की गर्त में, मगर अब तक की सच्चाई और अनुभव तो यही कहता है कि गांव का पानी गांव में। घर का पद घर में। चालू भाषा में कहें तो उतर भीखा म्हारी बारी। हो सकता है म्हारी बारी के आगे ‘पाछीÓ लग जाए। यह भी हो सकता है कि मान-मनुहार से बात बन जाए। यह भी हो सकता है कि अब की बार-तीसरे पे दाव। कुनबे के होते हुए कोई और आ जाए, इस की संभावना कम, आगे पारटी जाने और पारटी के काम।
जहां तक हमारा अंदाज है, कई लोग तेल की धार देख कर समझ गए होंगे कि पीपा कहां से लीक हो रहा है। कई लोग शीर्षक पढ के ही समझ गए होंगे कि इशारा किस की ओर है। जो ना समझे या समझे के भी अनजान बने हुए हैं, उनके लिए हम हैं ना।
कांगरेस में अब अध्यक्ष..अध्यक्ष का खेल वापस शुरू हो गया है। पारटी की कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने कह दिया कि भाई लोगों अब नया अध्यक्ष चुन लो..। इतिहास साक्षी है कि सोनिया के नेतृत्व में पार्टी ने नए मुकाम हालिस किए थे। लगातार दस साल मनमोहनसिंह देश के प्रधानमंत्री रहे। भले ही उन पर रिमोटमार्क पीएम होने का मुलम्मा चढा रहा। वो नाम के ही सही, पीएम तो रहे। सोनियाजी करीब बीस साल तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही। उनके उत्तराधिकारी के रूप में राहुल गांधी को ही पद संभालना था, सो उन्हीं ने संभाला मगर वो पारटी को नही संभाल सके। उनके नेतृत्व में कांग्रेस की नाव पिंदे बैठ गई। पहले दिल्ली की सत्ता गई फिर राज्यों की। वरिष्ठजनों ने देख लिया कि इन तिलों में तेल नही है। खुद राहुल को लग गया कि नरेन्द्र मोदी से टकराना आसान नही है। उन्होंने पद छोड़ दिया तो सोनिया फिर से कार्यवाहक अध्यक्ष बन गई।
हथाईबाज देख रहे है कि ढलती उम्र के साथ सोनियाजी की तबीयत भी ठीक नहीं रहती। पारटी का एक धड़ा नया अध्यक्ष चाहता है। इससे पहले कि बड़ी टूट हो, सोनिया जी ने कह दिया कि हमे रेस्ट करने दो। अब सवाल ये कि उनके बाद कौन। घूम फिर के कै तो राहुल-कै प्रियंका। एक गुट सोनियाजी को यथावत रखने के पक्ष में एक धड़ा राहुल का। एक प्रियंका का। एक गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने के फेवर में। कुल जमा खेल शुरू हो गया है। कहां जाकर थमेगा-यह भविष्य की आगोश में है।