राजस्थान में अगला चुनाव गहलोत के चेहरे पर लड़ेगी कांग्रेस!

अशोक गहलोत
अशोक गहलोत

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के संघर्ष, विकास, सामाजिक उत्थान और जादूगरी के चार साल पूरे होने को है

दैनिक जलतेदीप
राजस्थान की गहलोत सरकार के गठन को चार साल पूरे होने जा रहे हैं। अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन, इन चार सालों में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कुर्सी खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी यह कोशिश अब तक जारी है। उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से सचिन पद को लेकर नाखुश थे। सरकार गठन के कुछ समय बाद ही गहलोत-पायलट में दरार पडऩे की खबरें आने लगीं। सीएम की कुर्सी पाने के लिए पायलट झटपटाने लगे। जयपुर से दिल्ली तक दौड़ लगीं, लेकिन पार नहीं पड़ी। सचिन लंबे समय से गहलोत को करीब से जानते हैं। स्टीक राजनीति के लिए गहलोत की चर्चा पूरी पार्टी में हमेशा बनी रहती है। मृदुभाषी गहलोत राजनीति में ना केवल तेज-तर्रार हैं बल्कि सबको साथ लेकर चलने की कला भी उनमें कूट-कूटकर भरी है। यही कारण है कि आलाकमान उन्हें राजस्थान से केन्द्र में काबिज करना चाहता था, लेकिन गहलोत का राजस्थान से प्रेम व नाता नहीं छूटा सका। गहलोत तीसरी बार राजस्थान के सीएम बने हैं।

इंदिरा रसोई योजना

अगला विधानसभा चुनाव भी पार्टी उन्हीं के चेहरे पर लड़ेगी, लगभग तय माना जा रहा है। गहलोत की एक से बढ़ कर एक जन योजनाओं व सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि ने इस बार सरकारी विरोधी लहर बनने ही नही दी है। इसके बावजूद पायलट न जाने गहलोत को कौनसे कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं।

गहलोत-सचिन
सचिन पायलट

एक बार सचिन फिर उसी राह पर निकल पड़े थे। इस बार उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मुख्यमंत्री गहलोत की प्रशंसा को हथियार बना डाला था। उन्होंने तेजाजी महाराज के बोर्ड गठन की मांग का नया शिफूगा भी छोड़ दिया है, लेकिन उन्हें कौन बताए कि गहलोत वो जादूगर हैं, जिनके आगे किसी की नहीं चली।

जादूगर अशोक गहलोत

साल 2008 की बात है, तब वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और बाड़मेर के डॉ. कर्नल सोनाराम चौधरी ने दिल्ली में सीएम पद के लिए ताल ठोक दी थी। इससे एक बार तो आलाकमान भी सकते में आ गया था, लेकिन गहलोत वहां भी कमजोर नहीं पड़े और जयपुर आकर सीएम पद की शपथ ली। तब ज्यादातर अखबारों ने हैडलाइंस में गहलोत को ‘जादूगर’ लिखा था। अपने कार्यकाल में गहलोत को कई बार ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

गहलोत-सचिन
गहलोत-सचिन

आज बंद मुट्ठी लाख की, खुली तो खाक की कहावत सचिन पर इसलिए सटीक बैठ रही है, क्योंकि उनकी मुट्ठी एक बार नहीं कई बार खुल चुकी है। भाजपा की दहलीज से यू-टर्न लेना और सीएम के खिलाफ मोर्चा खोलकर मुट्ठीभर विधायकों के साथ ने यह साफ कर दिया है कि सचिन के तरकश में अब ऐसा कोई तीर नहीं है, जिससे वे सीएम की कुर्सी को भेद सकें। राजनीति एक शतरंज है, जिसमें ठीक शतरंज की तरह चालें चली जाती हैं, एक के बाद एक। जब शतरंज में राजा को ही मात दे दी जाए तो खेल स्वत: खत्म हो जाता है। इस वक्त पायलट की हालत शतरंज में पिटे हुए राजा की भांति है। दर्जन भर सीटों पर अपनी लोकप्रियता व सड़को पर संघर्ष से मुख्यमंत्री बनने की चाह रखना आसान है। पर विश्वसनीयता और अनुभव को सिर्फ जिद से जीतना मुश्किल है। जीत हमेशा अनुभव की होती है।

धैर्य व अनुशासन रखने में ही पायलट का सम्मान

चार साल तक दमखम लगाने के बावजूद पायलट गहलोत की कुर्सी हथियाना तो दूर उसे हिला भी नहीं पाए। अब उन्हें यह समझ जाना चाहिए कि जब तक गहलोत सत्ता के इस शीर्ष आसन पर काबिज हैं तब तक उनकी कोशिशें शून्य के बराबर हैं। पायलट को अभी अपने कद को और बड़ा बनाने की जरूरत है। जनता की सेवा की शपथ लेने के बाद केवल कुर्सी के लिए एकाग्रचित्त हो जाना ठीक नहीं, क्योंकि राजस्थान में अगले साल फिर विधानसभा चुनाव हैं और जनता सब देख रही है। धैर्य और अनुशासन के साथ गहलोत के साथ लग कर यदि पायलट इस बार कांग्रेस को पुनः सत्ता दिलाने में सफल हो जाते है तो गहलोत भी शायद बड़प्पन दिखा उन्हें सत्ता की चाबी सोंपने का सोच सकते। वैसे भी अब एक साल जिसमें भी आचार संहिता, चुनाव आदि का समय वे मुख्यमंत्री बन कर भी क्या ऐसा करना चाहते है जो गहलोत नहीं कर पाये।

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