दूषित मन, वचन और काया शस्त्र के समान घातक : महाश्रमण

तेरापंथनगर आदित्य विहार में चातुर्मास प्रवचन

भीलवाड़ा। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण ने शुक्रवार को चातुर्मास प्रवचन में ‘शास्त्र व ‘शस्त्र का अंतर बताया। कहा, शास्त्र वह होता है, जिससे व्यक्ति को शिक्षा, शासन व अनुशासन प्राप्त होता है। यदि इसे ग्रहण कर मनुष्य आगे बढ़ता है तो यह शास्त्र उसके लिए त्राण बन सकता है।

शास्त्र से जीवन का विधान मिलता है। शास्त्र से ही शासन किया जाता है और अनुशासित भी किया जाता है। दूसरी तरफ जिससे हिंसा की जाए वह शस्त्र होता है। आगम में दस प्रकार के शस्त्र बताए हैं, जिनमें अग्नि, विष, नमक, स्नेह, क्षार, अम्ल, दुष्प्रयुक्त मन, दुष्प्रयुक्त वचन, दुष्प्रयुक्त काया और अविरति शामिल है। आचार्य ने आगमवर्णित सभी शस्त्रों को व्याख्यायित करते हुए कहा कि आदमी को इन सभी को जानकर छोडऩे का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा की पालना के लिए हिंसा को जानना जरूरी होता है।

व्यक्ति अच्छाई और बुराई दोनों को जानता है, लेकिन जानने के बाद बुराई छोडऩे की चीज होती है और अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए। प्रवचन से पूर्व साध्वी संबुद्धयशा ने आश्रव और परिश्रव पर प्रकाश डाला। डीसी जैन ने भावाभिव्यक्ति दी। सागरमल रांका ने 31 दिन व राकेश नौलखा ने 29 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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