उधार शास्त्र

कोई माने तो ठीक-ना माने तो मरजी उनकी। हमारा काम सलाह देना है। राय भी ऐसी-वैसी नहीं वरन एकदम ठावी, जिसपे विचार किया जा सकता है। ऐसा हो तो सब के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है अन्यथा मर्ज और कर्ज बढते रहणे हैं। मलगोजे मारने वाले मारेंगे और भुगतना हम-आप को पडेगा। लिहाजा संकलन शुरू। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

कई लोगों को बीच में कूदने की आदत पड़ चुकी है। यदि उन्हें धरते ‘इ टोक दिया होता तो उनकी पंचायतपंथी इतनी आगे नही बढती। क्यूं कि अपने यहां ‘ओछों से दूर रहने की परंपरा है, इस कारण ठीमर लोग इस कैटेगरी के लोगों को मुंह लगाना पसंद नही करते और वो लोग इसे अपनी जीत मान बैठते हैं। वो यह नही जानते कि भले मानखे कीचड़ में पत्थर फैंकने से बचते रहे हैं। वो जानते हैं कि यदि ऐसा किया तो दो-चार छींटे उनपे भी पड़ सकते हैं। क्यूं तो पत्थर फैंकणा और क्यूं छींटे सहने। इसका उतारा भी तैयार है। अपने यहां हर प्रकार के टोटके घड़े जाते हैं। बीमारी है तो इलाज भी है। चढावा हैं तो उतारा भी है। मीठा है तो नमकीन भी है। वा.. वा.. है तो छी.. छी.. भी है। उनका कहना है कि गंदगी को साफ करने के लिए सुगलवाड़े में उतरना जरूरी है।

इस पर एक सकारात्मक बात याद आ गई। सकारात्मक इसलिए कि उसमें गट्टर-नाली-गंदगी या सुगलवाड़े की जगह निर्मल जल का उपयोग किया गया है। एक भाई को तैरना नही आता था इस के बावजूूद वह नाडी में उतर गया। गहरे पानी में ‘गुचळकिए खाता देखकर आस-पास खड़े लोगों ने उसे खींच के बाहर निकाल लिया। भाई थोड़ी देर बाद नॉरमल हो गया और हथेली मे पानी लेकर सौगंध उठा ली-‘जब तक तैरना ना सीख जाऊं, पानी में नहीं उतरूंगा..। कोई पूछे कि भाईजी बिना पानी में उतरे तैरना कैसे सीखेंगे।

यही तर्क गंदगी की सफाई करने पर लागू हो सकता है। गट्टर की सफाई करने वाली मशीनें तो अब आई हैं, वरना सफाई करमचारी बांस की खपचियां बांध कर डटी हुई लाइन खोलते थे। ठेठ गलियों में आज भी यही विधि अपनाई जाती है। कई लोग इससे भी दो कदम आगे। उनका कहना हैं कि वक्त की हवा को देखते हुए ज्यादा लिहाज खाणा ठीक नही है वरना ‘ओछें लोग सिर पर चढ कर नाचने से बाज नही आते। ऐसों के लिए जैसों को तैसा एक दम सटीक बैठता है। नंगों का नाच शुरूआत में ही रोक दिया जाए तो ज्यादा ठीक रहेगा। वरना आगे चल कर वो दुखदायी साबित हो सकते हैं।

मगर हथाईबाज खालीपीली पंचायती नहीं कर रहे। तभी तो उन्होंने सलाह के आगे ठावी लगाया। कारण ये कि आजकल लोगों को रायचंद-सालहसिंह बनने का चस्का लग रहा है। कोई ना मांगे तो भी सलाह तैयार। कोई इसे पंचायतपंथी कहे तो कहे। फट्टे में ‘लेग अड़ाना समझे, तो समझे। पर हमारी सलाह एकदम ठावी। उचित लगे तो हकीकी जामा पहना दें वरना तू चल.. मैं आयो..। हमारी सलाह है कि उधार.. उधारी.. कर्ज.. और लोन पर विस्तृत शोध किया जाए साथ ही उधार और करजे से संबंधित उवाच-प्रेरक वाक्य और साहित्य को जनता के सामने लाया जाए ताकि लोगों को उधार और उधारी के नफे-नुकसान से अवगत करवाया जा सके।

कई लोगों को करजे से जुड़े वाक्यों और उवाचों पर हैरत हो रही है होगी। जोब कि हैरत करने जैसा कुछ नही है। जो है वो सबने देखा-बांचा-भुगता मगर इज्जत नही बख्शी। हमने उसे उधार साहित्य का नाम दे दिया। जब गद्य हो सके-पद्य हो सके। कविता-कहानिया-शाइरी-गजल हो सके है। बाल साहित्य हो सके है। नारी साहित्य हो सकते है। अपराध साहित्य हो सके हैं तो उधार साहित्य ने किसी का क्या बिगाड़ा। उसमें उधार-कर्ज से जुडी सारी जानकारियों का समावेश होणा जरूरी है।

पहला कर्ज किसने किसको और कब दिया से लेकर इसका बोझ आखिर में किस पर किस प्रकार पडऩा है, का पूरा ब्यौरा। उधार प्रेम की कैंची है। उधार लेकर घी पीओ। आज नकद-कल उधार। उधारपुधार- घरै पधार। ‘उधार मांग कर शर्मिन्दा ना करे सरीखे प्रचलित टोटके उधार साहित्य के अहम हिस्से।

समाज में लेन-देन की परंपरा अरसों से चली आ रही है। भाईसेण तो भाईसेण देशों के बीच लेन-देन चलता आया है। बैंक कर्ज देते हैं। वित्तीय संस्थान लोन देती हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां फायनेंस करती है। जरूरत हैं तो कर्ज लीजिए पर ध्यान रहे कि कर्ज और मर्ज बढाना घातक हो सकता है। बड़े-सयाने भी कर्ज लेकर घी पीने से तौबा करने की सीख देते रहे हैं मगर शासन-प्रशासन के साथ कई लोगों को इसकी लत लग चुकी है।

इस साल की पहली चौमाही में हमारा राजस्थान करजा लेणे में सबसे आगे है। कई बार तो करजा चुकाने के लिए करजा लेणे से परहेज नहीं। यदि हमारे माननीय-सरकारी कारिंदे और शासन-प्रशासन के पहरूए ईमानदारी के साथ अगड़म-बगड़म खरचे बंद कर दें। फालतू के खरचें करना छोड़ दें तो कर्जदारी से बचा जा सकता है। इस करजे का चुकारा हम-आप की कमाई से ही होणा है। कभी बिजली महंगी तो कभी पानी। भी इस टैक्स पे बढोतरी- कभी उसपे। लिहाजा उधार शास्त्र का कोर्स बढना तय है। हमारी भी वही सलाह जो बड़े सयाने देते रहे हैं-‘कर्ज लेकर घी पीने से बचो।

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