खतरा : पीएफआई ने 13 राज्यों में पसारे पैर

पीएफआई
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हत्या, हिंसा और जबरन धर्मांतरण कराने का है आरोप

एनआईए और ईडी ने पीएफआई के सौ से अधिक लोगों को किया गिरफ्तार

नई दिल्ली। करीब 15 साल पहले दक्षिण भारत में जिस पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की नींव पड़ी थी, उसने आज 13 राज्यों तक अपने पैर पसार लिए हैं। देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताई जाने वाले इस संगठन पर हत्या, हिंसा और जबरन धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं। गुरुवार को एनआईए और ईडी ने 13 राज्यों में छापा मारकर के पीएफआई के अध्यक्ष समेत सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पीएफआई और उससे जुड़े लोगों की ट्रेनिंग गतिविधियों, टेरर फंडिंग के खिलाफ ये अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई है।

पीएफआई पर किन राज्यों में छापेमारी की गई है?

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 13 राज्यों में छापे मारे हैं। इनमें केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, असम, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र शामिल हैं। एनआईए और ईडी ने मलप्पुरम जिले के मंजेरी में पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओएमए सलाम के अलावा पीएफआई के दिल्ली हेड परवेज अहमद के घर पर छापेमारी की। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
एनआईए की छापेमारी के खिलाफ पीएफआई और एसडीपीआई के कार्यकर्ता अलग-अलग जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि इन्हें हिरासत में ले लिया गया है। इस संगठन पर क्या आरोप हैं?

पीएफआई एक कट्टरपंथी संगठन है। 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। एनआईए की जांच में इस संगठन के कथित रूप से हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के बात आई थी। एनआईए के डोजियर के मुताबिक यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है।

आखिर ये पीएफआई क्या है?

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पॉपुलर फ्रंंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोके्रटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएं भी हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं।

पीएफआई को फंड कैसे मिलता है?

पिछले साल फरवरी में प्रवर्तन निदेशालय ने पीएफआई और इसकी स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के पांच सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में चार्जशीट दायर की थी। ईडी की जांच में पता चला था कि पीएफआई का राष्ट्रीय महासचिव के ए रऊफ गल्फ देशों में बिजनेस डील की आड़ में पीएफआई के लिए फंड इक_ा करता था। ये पैसे अलग-अलग जरिए से पीएफआई और सीएफआई से जुड़े लोगों तक पहुंचाए गए।

जांच एजेंसी के मुताबिक लगभग 1.36 करोड़ रुपये की रकम आपराधिक तरीकों से प्राप्त की गई। इसका एक हिस्सा भारत में पीएफआई और सीएफआई की अवैध गतिविधियों के संचालन में खर्च किया गया। सीएए के खिलाफ होने प्रदर्शन, दिल्ली में 2020 में हुए दंगों में भी इस पैसे के इस्तेमाल की बात सामने आई थी। पीएफआई द्वारा 2013 के बाद पैसे ट्रांसफर और कैश डिपॉजिट करने की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। जांच एजेंसी का कहना है कि भारत में पीएफआई तक हवाला के जरिए पैसा आता है।

क्या पीएफआई ने कभी चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया है?

पीएफआई खुद को सामाजिक संगठन कहता है। इस संगठन ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है। यहां तक कि इस संगठन के सदस्यों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है। इस वजह से किसी अपराध में इस संगठन का नाम आता है, तो भी कानूनी एजेंसियों के लिए इस संगठन पर नकेल कसना मुश्किल होता है। 21 जून 2009 को सोशल डेमोके्रटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के नाम से एक राजनीतिक संगठन बना। इस संगठन को पीएफआई से जुड़ा बताया गया है। कहा गया कि एसडीपीआई के लिए जमीन पर जो कार्यकर्ता काम करते थे वो पीएफआई से जुड़े लोग ही थे। 13 अप्रैल 2010 को चुनाव आयोग ने इसे रजिस्टर्ड पार्टी का दर्जा दिया।

राजनीति में कितनी सफल रही एसडीपीआई?

कर्नाटक के मुस्लिम बहुल इलाकों में ये एसडीपीआई सक्रिय रही। खास तौर पर दक्षिण तटीय कन्नड़ और उडुपी में इस पार्टी का प्रभाव देखा गया। इन इलाकों में इस संगठन ने स्थानीय निकाय चुनावों में सफलता भी हासिल की। साल 2013 तक एसडीपीआई ने कर्नाटक में कुछ स्थानीय निकाय के चुनाव लड़े। इनमें उसे करीब 21 सीटों पर जीत मिली। 2018 में उसे 121 स्थानीय निकाय की सीटों पर जीत मिली। 2021 में उसने उडुपी जिले के तीन स्थानीय निकायों पर कब्जा जमाया।

2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पहली बार इस पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे। कुल 23 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे। नरसिंहराज विधानसभा सीट पर एसडीपीआई उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहा था। बाकी सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में एडीपीआई ने केवल तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। इस बार भी नरसिंहराज सीट को छोड़कर बाकी दोनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।

2014 के लोकसभा चुनाव में एसडीपीआई ने कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश की कुल 28 लोकसभा सीटों अपने उम्मीदवार उतारे। सभी सीटों पर इसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में एसडीपीआई ने 14 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। सभी सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।

क्या पीएफआई और सिमी में कोई संबंध है?

अक्सर पीएफआई को सिमी का ही बदला हुआ रूप कहा जाता है। दरअसल 1977 से देश में सक्रिय सिमी पर 2006 में प्रतिबंध लगा गया था। सिमी पर प्रतिबंध लगने के चंद महीनों बाद ही पीएफआई अस्तित्व में आया। कहा जाता है कि इस संगठन की कार्यप्रणाली भी सिमी जैसी ही है। 2012 से ही अलग-अलग मौकों पर इस संगठन पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। कई बार इसे बैन करने की भी मांग हो चुकी है।

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