
-दिनेश जोशी
शिव—पार्वती के प्रतिरूप गवर—ईसर का पूजन सुहागिनों के लिए उनके अखण्ड सुहाग की कामना से किया जाने वाला एक पारंपरिक अनुष्ठान है। रंगों के त्योहार होली के दूसरे दिन से ही छोटी गणगौर की पूजा आरंभ हो जाती है, जो लगातार सोलह दिन चलती है। इस पूजा में सुहागिनों के साथ ही कुंआरी कन्याएं इच्छित वर की कामना से शामिल होती हैं। भोलावणी के साथ ही छोटी गवर की पूजा संपन्न हो जाती है और उसके बाद लोड़ी गणगौर या बड़ी गवर की पूजा शुरू होती है। बड़ी गवर के पूजन में सबसे अहम बात यह कि इसमें विधवा महिलाएं भी सुहागिनों की तरह ही शामिल होती हैं। इस बड़ी गवर को ही कालांतर में धींगा गवर कहा गया।
ऐसे हुआ शुरू धींगा गवर मेला- ऐसा माना जाता है कि उदयपुर के महाराणा राजसिंह प्रथम ने अपनी छोटी रानी को खुश करने के लिए पारम्परिक रीति के खिलाफ जाकर धींगा गवर को लोकपर्व के रूप में प्रचलित किया। तब से धींगा गणगौर मेला लोकपर्व के रूप में मनाया जाने लगा। यह छोटी महारानी और कोई और नहीं बल्कि जोधपुर की राठौड़ी राजकुमारी थी। उसी रानी ने बाद में जोधपुर में इस परंपरा की शुरुआत की जो फेस्टिवल के तौर पर उत्तरोत्तर विस्तार पाती गई।
अनोखा है, बेंतमार गणगौर मेला- जोधपुर के धींगा गवर मेले का इतिहास अनोखा तो है ही, साथ ही इसमें कई हैरान करने वाली परंपराएं भी जुड़ी हैं। यहां महिलाएं लगातार 16 दिन बड़ी गवर माता की पूजा अर्चना कर उपवास करती हैं, लेकिन आखरी दिन पूरी रात स्वांग रचकर सदियों से चली आ रही परम्परा को निभाती हैं। कोविड महामारी के कारण पिछले दो सालों से जोधपुर में बेंतमार गणगौर मेले का आयोजन नहीं हो सका, लेकिन इस बार शहर परकोटे में मेले की चार दिन पहले ही गली—मोहल्लों में जबरदस्त तैयारियां शुरू हो गई।
लाखों रुपए खर्च होते हैं एक रात पर- इस अनूठे मेले के आयोजन पर एक ही रात में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं। भीतरी शहर में गठित मोहल्लेवार गणगौर मेला कमेटियां अपने स्तर पर सारा फंड जुटाती हैं। मेले में स्वांग बनकर आने वाली तीजणियां भी अपने मैकअप पर हजारों रुपए खर्च करती हैं। मुख्यत: धार्मिक और पौराणिक पात्रों के गेटअप में सजने के लिए महिलाएं लगभग पूरे दिन मैकअप से लेकर परिधान तक में व्यस्त रहती हैं। उनके मैकअप पर ही घंटों लग जाते हैं। धींगा गवर मेले में कई रंग देखने को मिलते हैं। कोई स्वांग रच पैदल मेले में चलती हैं, तो कोई ऊंट पर बैठ मेले का आनंद लेती हैं। इसीलिए अब यह मेला जोधपुर कार्निवाल के रूप में प्रसिद्धि पाता जा रहा है।
मुख्य केंद्र होता है सुनारों की घाटी- भीतरी शहर में सर्राफा बाजार से आगे स्थित मोहल्ला सुनारों की घाटी बेंतमार गणगौर मेले का मुख्य केंद्र होता है। यहां स्थापित की जाने वाली गणगौर को नवलख हार सहित लगभग दो—ढाई करोड़ के आभूषणों से सजाया जाता है। जाहिर है, इसकी सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम होते हैं। मोहल्ले में हर तरफ सीसीटीवी कैमरों के साथ ही सादा वर्दी में पुलिस तथा आसपास के घरों की छतों पर हथियारबंद कमांडो की तैनाती रहती है।
चाचा की गली भी चार दशकों से गवाह- ड्योढ़ीदारों का मौहल्ला स्थित चाचा की गली में 1983 से गणगौर की स्थापना और मेले का आयोजन किया जा रहा है। चाचा की गली गणगौर मेला कमेटी के अध्यक्ष अनिल गोयल बताते हैं कि सुनारों की घाटी पर स्थापित की जाने वाली गवर माता प्रतिमा की सुरक्षा के तौर पर इसकी शुरुआत की गई थी। मोहल्ले के सहयोग से आरंभ किया गया यह क्रम लगातार जारी है। इस बार गवर माता के 101 किलो ड्राई फ्रूट व नारियल गिरी मिश्रित भांग मोई का प्रसाद चढ़ाया जाएगा। साथ ही मंच बनाकर पारंपरिक कालबेलिया लोकनृत्य का आयोजन होगा। तीजणियां भी इस मंच पर अपनी प्रस्तुति दे सकेंगी।
गोयल ने बताया कि प्रारंभ में रतनराज मोहनोत, गणपतमल चौरडिय़ा, जयकिशन पुरोहित, गोपाल पुरोहित, कैलाश गर्ग व गोविंद व्यास का गणगौर मेला कमेटी में सहयोग रहा। वर्तमान में अनिल गोयल— अध्यक्ष, गोपाल पुरोहित— उपाध्यक्ष, रतन पुरोहित— सचिव, आलोक चौरडिय़ा— मेला संयोजक तथा मनीष व्यास— संगठन मंत्री के रूप में सक्रियता से जुड़े हुए हैं। इसी प्रकार कमेटी की महिला विंग में राजकौर पुरोहित, मथुरादेवी कल्ला, लीलावती पुरोहित, विमला व्यास तथा मधुबाला पुरोहित का सहयोग मिल रहा है।
महिलाओं व युवतियों की सुरक्षा सर्वोपरि- महिला सशक्तीकरण का प्रतीक बन चुके इस बेंतमार गणगौर मेले में क्योंकि मुख्यत: महिलाओं व युवतियों की ही भूमिका रहती है, इसलिए उनकी सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। भारी पुलिस बल के साथ ही मोहल्ला विकास समितियों के वालंटियर्स भी मुस्तैदी से इसकी कमान संभालते हैं। भीतरी शहर में प्रवेश के सभी रास्तों पर पुलिस का कड़ा पहरा होता है। असामाजिक तत्व या फिर नशे की हालत में कोई व्यक्ति भीतरी शहर में प्रवेश नहीं कर पाता है। पूरी रात निर्बाध विद्युत सप्लाई के लिए भीतरी शहर की सड़कों व चौक में जगह—जगह बड़े जनरेटरर्स दो दिन पहले ही खड़े कर दिये जाते हैं।
मिथक भी जुड़ते गए मेले के साथ- हाथ में बेंत और तरह-तरह के स्वांग रचकर सुहागिन महिलाएं भीतरी शहर में जगह—जगह स्थापित गवर माता की प्रतिमा के दर्शन करती हैं और रास्ते में जो भी पुरुष आता है उस पर जमकर बेंत से प्रहार करती हैं। कालांतर में इसे लेकर यह मिथक जुड़ गया कि तीज का व्रत रखने वाली सुहागिन यदि किसी कुंवारे लड़के के बेंत मार दे तो उसका शीघ्र विवाह हो जाता है। संभवत: ऐसा मेले को ट्विस्ट देने के लिए किया गया। अब तो कुंआरी युवतियां भी बेंत से प्रहार करती है, जो सरासर गलत है।