मटकी है कि मानती नहीं

हमें पता है कि जिस किसी बंदे अथवा बंधुओं ने ‘करे कोई.. भरे कोई.. कहावत को घड़ा, सोच-समझ के घड़ा। पहले अनुभव हासिल किया फिर सोचा-समझा। फिर विचार-मंथन किया होगा। ज्ञानचंदों की राय ली होगी। पहले कच्ची कहावत घड़ी-उसके बाद आपत्तियां आमंत्रित की होगी। उन्हें दूर कर कहावत को अंतिम रूप दिया होगा। उसके बाद लोकार्पण हुआ होगा। हम उसके साथ छेड़छाड़ नही कर रहे पर देख रहे हैं कि उस पर नित नए रंग चढ रहे हैं। आज-‘मटकी है कि मानती नहीं तो कल ‘मटकी बदनाम हुई मानखे तेरे लिए। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


हमें नही पता कि कहावतों का दौर कब से शुरू हुआ। हमें तो क्या ज्ञान-विज्ञान-इतिहास-भूगोल- आकृति-प्रकृति की पूरी जनमपतरी रखने वाले कीमियों के पास भी इस संबंध में कोई अधिकृत जानकारी उपलब्ध नही होगी। कोई टोरे ठोक दें तो बात कुछ और हैं। सपोज करो कि कहावतों पर किसी प्रतियोगि अथवा उच्च शिक्षा की परीक्षा में सवाल आ जाए-‘पहली कहावत कब और किसने लॉच की थी? सवाल-जवाब के साथ नेगेटिव मार्किंग का प्रावधान हो।

इस के अलावा सवाल छोडऩे पर भी नंबर कट का नियम हो तो परीक्षार्थी क्या करेंगे। किसी को कहावतों की लॉचिंग की तिथी-तारीख-वार-महिना-सन्-विक्रम संवत-ईसवीं-हीजरी सन और अंगरेजी वर्ष के बारे में पता नही। अंदाज से लिख दें तो नेगेटिव मार्किंग और सवाल छोड़ दें तो भी कॉपी पे तलवार। इधर कुआं-उधर खाई। आगे खड्डा-पीछे खदान। बेचारा दिल क्या करे। गनीमत है कि अब तक ऐसा हुआ नहीं। आगे भी होणे की उम्मीद नही है। कारण ये कि जो कथित विद्वजन परचे सेट करते हैं, खुद उन्हें इस बारे में पता नहीं। इसके बावजूद सवाल थोप दे तो परीक्षार्थियों को होजकोज होने की जरूरत नहीं। उनके सामने सवाल ‘आऊट ऑफ कोर्स का विकल्प खुला है। चाहो तो पोथियां टटोल लो। इस संबंध में ना कोई पाठ ना कोई पाठ्यक्रम। ऐसे में नंबर पक्के। परीक्षार्थी सड़कों पे उतर जाएं तो झक मारके नंबर देने पडेंगे।


लगता है कि अपन खासे दूर निकल गए। कुल जमा यह कह सकते हैं कि कहावतों का इतिहास अरसों-बरसों पुराना है। जांच का विषय यह भी हो सकता है कि कहावत किसी व्यक्ति विशेष ने अकेले घड़ी अथवा इसके लिए समिति या पैनल का गठन किया गया। हो सकता है आयोग बना दिया गया हो। पंचाट में कितने सदस्य थे, इसकी भी जांच की जा सकती है। पण अपन को इन सब में क्यूं पडऩा। मुख्य मुद्दा यह कि कहावतें जिसने भी बनाई। सोच-जान के बनाई। एकदम खरी। सोलह आना टंच। चौबीस कैरेट सच्ची। कहावतों के तंज ऐसे कसीजते है कि अंगली पार्टी पानी-पानी। काटो तो खून नहीं। चेहरा थाप खा जाता है। बाद में बात हंसी-ठठ्ठे में उड़ा दी जाती है।

हथाईबाज देख रहे हैं कि पिछले लबे समय से कहावतों का पर्याय घडऩे वालों की संख्या भी निरंतर बढ रही है। एक हिसाब से देखा जाए तो इंसानी जज्बात और जिंदगी के अलावा हर क्षेत्र में बढोतरी हो रही है। सस्ती है तो इंसान की जिंदगी। सस्ती है तो बहन-बेटियों की अस्मत। कब-किस के द्वारा तार-तार कर दी जाए, पता ही नही चलता। इस की पलट में महंगाई बढ़ रही है। फरजीवाड़ा बढ रहा है। ढोंग-ढकोसले बढ रहे हैं। रिश्तों की खाई बढ रही है। आडम्बर-दिखावा बढ रहा है। अब तो कहावतों का नकली पैक भी आ गया। जिस पर तीर-तुक्कों का पर्यायवाची होने का मुलम्मा चढा दिया गया। ‘मटकी है कि मानती नहीं और मटकी बदनाम हुई..मानखे तेरे लिए ‘इसकी ताजा मिसालें।

मटकी पर ज्यादा पत्रवाचन करने की जरूरत नहीं। इसका रिश्ता आम से ले ेके खास तक। खरबपति से लेकर खकपति तक में इन की पहुंच। कालू से लेकर अंबानी-अडानी के परिंडे पर मटकियां सजी मिल जाएंगी। हर घर में इनकी पैंठ। घर-घर में इनका जलवा। दुनिया की तो पता नहीं, देश के हर घर-कोठी-झूंपे में मटकियां मिल जाणी है। अब तो ‘मूण का प्रचलन समाप्त हो गया, वरना एक जमाने में उनका जोरदार रूतबा हुआ करता था। मटकों की अम्मा मूण। एक मूण में पंद्रह-बीस घड़े पानी आ जाता। लगभग हर घर में दो-चार ‘मूण मिल जाती। आज की नस्ल को उसका ककहरा भी पता नहीं। देगड़े-दिवड़ी-भुड़का-कलश-कैंपर और बाल्टी-साल्टी भी मटका परिवार के सदस्य मगर मटकी की बात ही कुछ न्यारी। मटकी का पानी असर कर रहा है वाली बात-कहावत तो अजर-अमर है।

आप किसी भी सरकारी कार्यालय को देख ल्यो। नया रंगरूट कुछ दिन तो शानदार तरीके से काम करता है। टेम से आणा। दम मार के काम करना। सारा काम निपटा के जाणा। ज्यों-ज्यों मटकी का पानी असर करता है, त्यों-त्यों कार्य क्षमता कम और खुद के हितों की चिंता ज्यादा। महिला करमचारी भी मटकी के पानी के असर से अछूती नहीं। उन्हें काम के प्रति सतर्क और सजग माना जाता है। कई होती भी है। कई पर मटकी के पानी असर। ऐसा असर कि घूस लेने में भी ‘मेणी नहीं। आहोर के आईपुरा की महिला पटवारी-इसकी सब से ताजा मिसाल। वो गत दिनों पांच-हजार की रिश्वत लेते पकड़ी गई। यही से करे-भरे वाली कहावत का पर्यायवाची रूप सामने आता है। घूस ली किसी ने और बदनाम हुई मटकी। किया किसी ने भरा मटकी ने। आज ‘मटकी है कि मानती नही तो कल ‘मटकी बदनाम हुई.. मानखें तेरे लिए..।