
- – आईएएस एसोसिएशन, राजस्थान द्वारा आयोजन
- – ‘फिल्मी बातें’ सेशन में फिल्म ‘गुड़गांव’ पर चर्चा
आईएएस एसोसिएशन, राजस्थान ने रविवार को अपने फेसबुक पेज पर ‘फिल्मी बातें’ सीरीज के तहत सेशन का आयोजन किया। सेशन में फिल्म स्क्रिप्ट राइटर एंड स्टोरी टैलर सौरभ रतनु के साथ चर्चा की गई। वे आईएएस लिटरेरी सेक्रेटरी, आईएएस एसोसिएशन, राजस्थान, मुग्धा सिन्हा के साथ चर्चा कर रहे थे। इस दौरान रतनु ने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर फिल्म स्क्रिप्ट राइटर एंड स्टोरी टैलर अपनी जर्नी, संघर्ष और अनुभव साझा किए और साथ ही इंडस्ट्री में करियर बनाने वाले बडिंग राइटर्स को राइटिंग टिप्स भी दिए।
अपने बचपन और स्कूलिंग की बात करते हुए रतनु ने बताया कि वे राजस्थान की चारण जाति से तालुक रखते हैं और उनका गांव जयपुर में सांगानेर के पास स्थित है। उन्होंने बताया कि बचपन से ही उन्हें फिल्में देखने का शौक था और उनका मनाना था कि काम ऐसा करना चाहिए जिसका उत्साह जिंदगीभर के लिए बना रहे। फिल्म इंडस्ट्री में शुरूआत की बात करते हुए उन्होंने बताया कि एक अखबार में कार्य करने के दौरान उनकी मुलाकात फिल्म मेकर मीरा नायर के साथ हुई। जिसके बाद वे मुंबई गए। जहां उन्होंने 5 साल संघर्ष के बाद मेन स्ट्रीम इंडस्ट्री में कदम रखा। जहां उन्होंने सुभाष घई, भरत बाला जैसे इंडस्ट्री के जाने-माने लोगों के साथ काम करते हुए डायरेक्शन का काम सीखा।
स्टोरी और स्टोरी टैलिंग पर बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पास पहले कहानी होनी चाहिए। कहानी आईडिया नहीं है, न ही कहानी कोई सीन या कैरेक्टर है। जब लिखना शुरू किया कि तब समझ आया कि फिल्म मेकिंग और राइटिंग दोनों ही काफी अलग हैं। राइटिंग के दाव-पेच और भाषा को समझने के लिए 5 साल लगे। उन्होंने कहा मेरा मानना है कि एक डायरेक्टर को 16 विद्याएं आनी चाहिए जिसमें राइटिंग भी एक है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि अच्छी राइटिंग स्किल्स के लिए ‘एबिलिटी टू ऑब्जर्व’ सबसे महत्वपूर्ण है।इसके लिए ऑब्जर्वेशन क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है। कहानियां, किरदार हमारे आसपास ही होते हैं। राइटर और फिल्म मेकर बनने के लिए दूसरों में रूचि लेना आवश्यक है। आप लिखने से ही लेखक बनते हैं।

फिल्म ‘गुड़गांव’ की कहानी वहां रहने वाले लोगों पर आधारित है। गुड़गांव के जमींदार वहां की जमीन पर सूखा देखकर पछताते थे। गुड़गांव में औद्योगीकरण के कारण तेजी से हो रहे बदलाव के बावजूद, यह योजनाबद्ध तरीके से नहीं किया गया था। फिल्म ‘गुड़गांव’ में जमीन जोतने वाले भी अपनी विकट परिस्थितियों के कारण किडनैपर बन जाते हैं। जबकि पाप करने वाले बड़े बिल्डर बन जाते हैं। फिल्म में ऐसे लोगों की दुविधाओं को कई एंगल से दिखाया गया है।