महातपस्वी महाश्रमण के श्रीमुख से चार आत्माओं ने स्वीकारा संयम-साधना का पथ

आचार्यश्री महाश्रमणजी
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आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों के नवीन नामकरण की घोषणा की

पूज्य सन्निधि में पहुंची एशिया की सर्वाधिक धनाढ्य महिला, पूर्व मंत्री सावित्री जिन्दल

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मधरा छापर। तेरापंथ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगलमय चतुर्मास प्रवास और जैन भगवती दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन में उमड़ता आस्था, श्रद्धा, उल्लास का ज्वार। गूंजती आर्षवाणी से भव को पार करने वाली नौका में बैठती वह भव्य आत्माएं जो आज से चारित्रात्माएं बन रही थीं। इन सभी दृश्यों को उपस्थित विराट जनमेदिनी ने अपने नेत्रों से निहारा और अपने जेहन थाती की भांति संजो लिया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी
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आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को इस बार के चतुर्मासकाल के दौरान की दूसरी जैन भगवती दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन हुआ। प्रात: लगभग नौ बजे आचार्यश्री मंचासीन हुए और मंगल महामंत्रोच्चार के साथ दीक्षा समारोह के कार्यक्रम का शुभारम्भ हो गया। मुमुक्षु भाविका ने सभी दीक्षार्थियों का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने सभी दीक्षार्थियों के परिजनों से प्राप्त आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षार्थियों के परिजनों ने अपने-अपने आज्ञा पत्र पूज्यप्रवर के करकमलों में अर्पित किए। तदुपरान्त दीक्षा लेने को तत्पर दीक्षार्थी अश्विनी जैन, रोशनी लूणिया, तारा लूणिया व दीक्षा नाहटा ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने दीक्षा के महत्त्व और तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली को व्याख्यायित किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी
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युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दीक्षा प्रदान करने से पूर्व अपने पावन प्रवचन में प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य कालूगणी की जन्मधरा पर आज इस चतुर्मास के दौरान दीक्षा का दूसरा समारोह आयोजित हो रहा है। एक चतुर्मास लगने से पहले आदि मंगल के रूप में हुआ तो दूसरा यह समारोह चतुर्मासकाल के मध्य में मानों मध्य को मंगल करने के लिए हो रहा है। भव के हिसाब से देखें तो दीक्षा का परम महत्त्व है। आज चार दीक्षाएं हैं। दीक्षा के लिए ज्ञातिजनों से लिखित आज्ञा पत्र तो प्राप्त हो गया है। उसका भी अपना महत्त्व है, किन्तु मौखिक आदेश भी प्राप्त होने चाहिए। दीक्षार्थियों के परिजनों ने अपने स्थान पर खड़े होकर आचार्यश्री को अपनी सहमति वन्दना के रूप में प्रदान की। आचार्यश्री ने दीक्षा देने का उपक्रम आरम्भ करने से ठीक पूर्व दीक्षार्थियों के मनोभावों की पुष्टि के लिए परीक्षण कर उनके मजबूत मनोबल को देखने के उपरान्त, अपने पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए आर्षवाणी का उच्चारण आरम्भ किया।

आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों को तीन करण, तीन योग से सर्व सावद्य योग का त्याग कराया और साधुत्व दीक्षा प्रदान कर दी। आर्षवाणी द्वारा अतीत की आलोचना भी प्रदान कर दी। आचार्यश्री से दीक्षा प्राप्त करते ही नवदीक्षितों ने आचार्यश्री को सविधि वन्दन कर पावन आशीष प्राप्त किया।

केशलोच के उपक्रम में नवदीक्षित संत का केशलोच स्वयं आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए अपने हाथों से किया तो वहीं तीन नवदीक्षित साध्वियों का केशलोच साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने किया। इसी प्रकार आचार्यश्री ने धर्मोपकरण रजोहरण नवदीक्षित मुनि को व साध्वीप्रमुखाजी ने तीनों नवदीक्षित साध्वियों को प्रदान कीं। आचार्यश्री नवदीक्षित साधु-साध्वियों को प्रत्येक उपक्रम के साथ प्रेरणा एवं जनता को पावन सम्बोध भी प्रदान कर रहे थे। आचार्यश्री ने नामकरण उपक्रम को आगे बढ़ाते हुए अश्विनी को मुनि आगमकुमार, रोशनी को साध्वी रोशनीप्रभा, तारा को साध्वी तीर्थप्रभा और दीक्षा को साध्वी दीक्षाप्रभा नाम प्रदान कर मानों नवजीवन का उपहार प्रदान कर दिया।

आचार्यश्री से नवदीक्षित साधु-साध्वियों के नवीन नामकरण की घोषणा सुनते ही पूरा प्रवचन पण्डाल ही नहीं, समूचे छापर का वातावरण गुंजायमान हो उठा। श्रावक-श्राविकाओं ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों को वंदन किया। आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि आगमकुमारजी को मुनि वर्धमानकुमारजी के संरक्षण में ज्ञान का विकास करने के लिए भेजा। तीनों साध्वियों को आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखाश्रीजी की सन्निधि में अपना आध्यात्मिक विकास करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने नवदीक्षितों को मंगल पाथेय के रूप में आध्यात्मिक ओज आहार भी प्रदान किया। मुनिश्री धर्मरुचिजी ने भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया।

दीक्षा के उपक्रम के दौरान आचार्यश्री ने कहा कि आज के दिन ही मेरी भी दीक्षा हुई थी। मुझे दीक्षा लिए हुए 48 वर्ष 4 महीने हो गए। मेरी दीक्षा सरदारशहर में गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी के द्वारा हुई। आज साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की अद्र्धवार्षिक पुण्यतिथि है। हमारे नए साध्वीप्रमुखाजी को साध्वीप्रमुखा पद पर आसीन हुए दो महीने हो गए। आज के दिन आचार्यश्री ने अपने संसारपक्षीय ज्येष्ठ भ्राता श्री सुजानमल दूगड़ सहित बहनों और अन्य लोगों को याद करते हुए अनेक घटना प्रसंगों का वर्णन किया। श्री सुजानमल दूगड़ व साध्वी जिनप्रभाजी ने उस समय के घटना प्रसंगों का वर्णन किया। वहीं दूसरी ओर एशिया की सर्वाधिक धनाढ्य महिला, जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय की कुलपति, हरियाणा की पूर्व मंत्री श्रीमती सावित्री जिन्दल ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन किए तो आचार्यश्री ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि राजनीति में होने के बावजूद भी सावित्रीजी एक श्राविका हैं जो सामायिक भी करती हैं। श्रीमती जिन्दल ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज मुझे आपश्री के दर्शन कर अपार प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। आपश्री उदार चिन्तन वाले और विश्व का कल्याण करने वाले हैं। हरियाणा के लिए यह गौरव की बात है कि आज हरियाणा से भी दीक्षा हुई है और मैं भी इस अवसर पर उपस्थित हो सकी।

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