
जयपुर। जयपुर मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा प्रतिनियुक्ति पर मेट्रो में लंबे समय से कार्य कर रहे अधिकारियों को स्थाई नियुक्ति दिलाने वाली अब्सॉप्र्शन पॉलिसी पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। जयपुर मेट्रो संयुक्त कर्मचारी संघ के अध्यक्ष विकास श्रत्रिय एवं महामंत्री कुशल पाल यादव ने बताया कि जस्टिस इंद्रजीत सिंह ने राहुल गोस्वामी बनाम राजस्थान सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकर्ता एवं अन्य मेट्रो में सीधी भर्ती से नियुक्त हुए कर्मचारी हैं। इन सभी को जयपुर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (जे एम आर सी) में भर्ती हुए करीब आठ साल हो गए हैं। अभी तक मेट्रो प्रशासन द्वारा ना तो इन्हें कोई पदोन्नति दी गई है और ना ही अब तक प्रमोशन पॉलिसी बनाई गई है।
दूसरी तरफ मेट्रो प्रशासन प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारीयों को स्थाई नियुक्ति देने के लिए अपनी बोर्ड मीटिंग में अब्सॉर्प्शन पॉलिसी के प्रस्ताव को पारित किया है। इस पॉलिसी के पहले लागू हो जाने से सीधी भर्ती कोटे से आए हुए कर्मचारियों की पदोन्नति अवरुद्व होगी, जो कि न्यायोचित नहीं है। ऐसे में मेट्रो प्रशासन द्वारा लाई जा रही अब्सॉर्प्शन पॉलिसी पर न्यायलय द्वारा रोक लगाई जाती है।
ये है पूरा मामला : जयपुर मेट्रो में अभी 400 स्थाई कर्मचारी और 70 प्रतिनियुक्ति पर आए हुए अधिकारी कार्यरत हैं। मेट्रो प्रशासन जिस अब्सॉर्प्शन पॉलिसी को लागू करने की योजना बना रहा था, उससे मेट्रो के स्थायी कर्मियों की पदोन्नति ब्लॉक होती। इस पॉलिसी के जरिए प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर आए अधिकारीयों का एक या दो प्रमोशन और हाई पे अलाउंस के साथ स्थायीकरण किया जाना है।
इससे घाटे में चल रही मेट्रो पर लगभग तीन करोड़ रुपए सालाना अतिरिक्त भार पड़ेगा। जबकि उक्त पदों को अगर सीधी भर्ती से भरा जाए, तो सालाना 2 से 3 करोड़ की बचत होगी। कर्मचारियों का आरोप है कि प्रबंधन द्वारा खुद को फायदा पहुंचाने के लिए वित्तीय अनाचार किया जा
रहा है।
जबकि स्थायी कार्मियों के लिए कोई सेवा नियम नहीं बनाए गए हैं। जिससे परेशान होकर लगभग 30 फीसदी स्थायी कर्मी जयपुर मेट्रो छोड़कर जा चुके हैं।