
छापर में आचार्य के चातुर्मासिक प्रवचन
विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू) । मानव अपने जीवन को इन अठारह पापों से बचाने का प्रयास करे। श्रावक भी कुछ-कुछ अंशों में इन पापों से जीवन भर के लिए त्याग कर ले और फिर जब सामायिक आदि करता है तो उसके भी सावद्य योग का त्याग हो गया। हालांकि श्रावक का त्याग पूर्णतया त्याग नहीं होता है। स्वयं को पापकर्मों के बन्धन से बचाते हुए मुक्ति की दिशा में गति करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन पाथेय शुक्रवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने छापर चतुर्मास के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में प्रदान की।
अठारह पापों से बंधकर आत्मा भारी बनती है

उन्होंने कहा कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न अठारह प्राणातिपात क्रियाओं के संदर्भ में है। प्रश्न किया गया कि क्या जीवों के प्रणातिपात क्रिया होती है। उत्तर दिया गया कि हां, होते हैं। पच्चीस बोल में आता है-प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति-अरति, परपरिवाद, माया मृषावाद, मिथ्या दर्शनशल्य। यहां पाप शब्द का प्रयोग नहीं, क्रिया कहा गया है। क्रिया का अर्थ प्रवृत्ति से प्राणी के हलन-चलन से है। इन क्रियाओं से पापकर्म का बन्ध होता है। इस प्रकार अठारह क्रियाएं हो जाती हैं। इन अठारह पापों से बंधकर आत्मा भारी बनती है। मनुष्य को फिर इसका परिणाम भी भोगना पड़ता है, दु:ख भोगना पड़ता है। इसलिए आदमी इन ठरह पाप क्रियाओं से स्वयं को बचाने का प्रयास करे। साधु के लिए तो सर्व सावद्य योग के जीवन भर का त्याग होता है, फिर भी कोई प्रमाद हो जाए तो भी दोष लगते हैं। इसलिए साधु भी आलोयणा, प्रायश्चित्त और प्रतिक्रमण आदि-आदि करते हैं।
पुस्तक का विमोचन किया

आचार्यश्री ने कालूयशोविलास का सुमधुर संगान और रोचक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में जैन विश्वभारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा विरचित ‘सम्बोधिÓ ग्रन्थ की अंग्रेजी भाषा में अनुवादित पुस्तक को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस पुस्तक के अनुवाद में श्रम करने वाली साध्वी वीरप्रभाजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। इस पुस्तक में सहयोग देने वाली सोनल पीपाड़ा ने भी गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने पुस्तक के संदर्भ में आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि अंग्रेजी भाषा के जानकार पाठकों के लिए यह उपयोगी पुस्तक है।
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