जीवन में दुख का अंत करना चाहते हो तो इच्छा का अंत करो : अर्हमश्री माताजी

बांसवाड़ा। बाहुबली कॉलोनी जैन मंदिर में विराजित आर्यिका रत्न 105 अर्हम श्री माताजी ने अपने प्रवचन में बताया कि प्रिय आत्म इस भव्य जीव के दुख का अंत करना चाहते हो तो इच्छा का अंत करो। आचार्य भगवन कहते हैं इच्छा का निरोध करना तप है, इच्छा दुख का कारण है, दुख का अंत चाहते हो तो इच्छा का अंत करो। क्योंकि यह कार्य स्वाधीन है, यह स्वयं अपनी ही वैचारिक प्रक्रिया है।

इसको आप ध्यान के द्वारा रोक सकते हो। जिस प्रकार से मिट्टी तपती है तो कलश बन जाती है, सोना तपता है तो आभूषण बन जाता है, जल तपकर अर्थात वाष्प होकर उच्च आसमान की ओर चला जाता है। इसी प्रकार जीव भी तपस्या के द्वारा कर्म को सुखाकर सिद्धालय की और ऊपर जा सकता है। माताजी ने बताया कि उत्तम तप के द्वारा उत्तम पदार्थों की प्राप्ति होती है, जैसे अग्नि, तृण को जलाती है।

उसी प्रकार तप रूपी अग्नि कर्म रूपी तृण को जलाती है तो हम सभी को अपने इच्छाओं का दमन करने के लिए स्वाध्याय करना चाहिए। दोपहर को गुरु मां ससंघ आचार्य 108 सुंदर सागर महाराज एवं मुनि 108 आज्ञा सागर महाराज के दर्शन करने गए। मुनि श्री 108 आज्ञा सागर महाराज ने गुरु मां को जिनवाणी भेंट की। यह जानकारी चातुर्मास कमेटी के प्रवक्ता महेंद्र कवालिया ने दी।

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