बालश्रम रोकने के लिए जन जागरूकता होना जरूरी है : सहारण

बाल लैंगिक हिंसा एवं बालश्रम को रोकने के लिए कार्यशाला आयोजित

सीकर। कलेक्ट्रेट सभागार में बाल सप्ताह के अन्तर्गत बाल लैंगिक हिंसा एवं बालश्रम को रोकने के लिए गुरूवार को कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में सुमन सहारण सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने कहा कि बालश्रम विषय अत्यन्त संवेदनशील है, क्योंकि बच्चे हमारा वर्तमान और भविष्य है। बच्चों के साथ बालश्रम एवं लैंगिक हिंसा के अपराध निरन्तर बढ़ते जा रहे है, जिसके लिए समाज के विभिन्न वर्गों के एक साथ बैठकर चर्चा करने की आवश्यकता है।

बच्चों के साथ कोई भी किसी भी तरह का अपराध हो उसकी जांच एवं अनुसंधान अत्यन्त संवेदनशीलता के साथ किया जाना चाहिए और समाज के प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है कि बच्चों को पूूर्ण सम्मान दें। बालकों का संरक्षण (पोक्सो) एक्ट 2012 के प्रावधानों के तहत बच्चे का मेडिकल परीक्षण करवाया जाना तथा बच्चों को उनके अधिकारों की जानकारी भी उपलब्ध करवाई जानी जरूरी है। उन्होंने बताया कि किसी भी प्रकार के अपराध होने पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अविलम्ब अवगत करवाएं।

कार्यशाला में उदय सिंह आलोरिया प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड, सीकर ने कहा कि बालश्रम एक अपराध के साथ-साथ सामाजिक बुराई भी है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान के ”अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों का कारखानों, खदानों तथा जोखिमपूर्ण व्यवसायों में नियोजन प्रतिबंधित किया हुआ है। बालश्रम कई प्रकार के व्यवसायों में पाया जाता है, जिसमें जोखिमपूर्ण और गैर जोखिमपूर्ण दोनों के प्रकार के व्यवसाय आते है। बालश्रम की रोकथाम केवल एक विभाग का दायित्व न होकर कई विभागों यथा- सामाजिक न्याय, बाल अधिकारिता, पुलिस, श्रम विभागा का संयुक्त दायित्व है।

यह एक ज्वलंत सामाजिक समस्या है एवं इसके निवारण के लिए राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा समय-समय पर कार्यवाही की जाती हैं। उन्होंने बताया कि बाल श्रम को रोकेने के लिए ”बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 पारित कर लागू किया गया, जिसके तहत 14 वर्ष तक के बालक, बालिकाओं का सभी प्रकार के नियोजनों में तथा 14 से 18 वर्ष आयुवर्ग के कुमार, कुमारियों के लिए जोखिमपूर्ण कार्यों में नियोजन प्रतिबंधित किया गया है। अधिनियम के उल्लंघन करने पर ”धारा-14 के तहत दोषी व्यक्ति को 06 माह से 02 वर्ष तक का कारावास एवं 20 हजार रूपये से 50 हजार रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध बनाया गया है।

बालक श्रमिकों को मुक्त कराने के लिए प्रत्येक थाना स्तर पर पदस्थापित ”बाल कल्याण अधिकारी द्वारा गोपनीयता एवं सक्रियतापूर्वक संबंधित विभागों व स्वयं सेवी संगठनों के प्रतिनिधि के साथ समन्वित कार्यवाही की जानी चाहिए। पुलिस उप अधीक्षक (ग्रामीण) राजेश आर्य ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा 18 वर्ष से कम उम्र के बालक-बालिकाओं के विरूद्ध लैंगिक हिंसा, दुव्र्यवहार की रोकथाम के लिए ”लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 का क्रियान्वयन किया जा रहा है।

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 में पीडि़त बालक-बालिकाओं के लिए न्याय प्रदान करने के लिए एक सक्षम वातावरण निर्माण पर जोर देने के साथ-साथ प्रकरणों में बाल मैत्राी वातावरण में पुलिस अनुसंधान, चिकित्सकीय जांच, उपचार, देखरेख और संरक्षण, नि:शुल्क विधिक सहायता, प्रतिकार, मुआवजा एवं विशेष न्यायालय के माध्यम से बाल अनुकूल वातावरण में विचारण सहित कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए है। उन्होंने कहा कि अधिनियिम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ”लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण नियम, 2012 के अतिक्रमण में भारत सरकार द्वारा नवीन ”लैंगिक अपराधों से बालकों संरक्षण नियम, 2020 में भी आवश्यक विधिक उपबंध किये गये है।

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