साहित्य ने सदैव अन्याय और भ्रष्टाचार से जूझने की दृष्टि दी है: फारूक आफरीदी

dainik jaltedeep
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अँधेरे और मुश्किल भरे समय में साहित्य प्रकाश पुंज की भूमिका निभाता है : डॉ प्रेम जनमेजय

इण्डिया नेटबुक्स की नई साहित्यिक पत्रिका ‘अनुस्वार’ का लोकार्पण

नई दिल्ली। वरिष्ठ व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा के यशस्वी संपादक डॉ  प्रेम जनमेजय ने कहा कि साहित्य ने सदैव समाज को नई दिशा दी है और वह अँधेरे और मुश्किल भरे समय में प्रकाश पुंज की भूमिका निभाता है। साहित्य समाज  में मनुष्यता को प्रतिष्ठित  करता है। साहित्य हमें समृद्ध परंपरा और  विरासत के साथ जीवन को दृढ़ता से जीने की प्रेरणा देता है और सामजिक बुराइयों और अन्याय से लड़ने का हौसला देता है ।इस दृष्टि से ‘ ‘अनुस्वार’ और ऐसी ही  साहित्यिक पत्रिकाओं की महती भूमिका है। 

डॉ प्रेम जनमेजय यहाँ प्रेस क्लब में इण्डिया नेटबुक्स द्वारा लौंच की जा रही नई साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका  ‘अनुस्वार’  के प्रवेशांक के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे। डॉ जनमेजय इसके अतिथि संपादक हैं । पत्रिका का प्रवेशांक युवा व्यंग्यकार और कवि डॉ लालित्य ललित पर केम्द्रित है जिसमें उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को प्रकाशमान किया गया है।

डॉ जनमेजय ने कहा कि लालित्य ललित आज के सक्रिय रचनाकारों में से एक हैं जो  व्यंग्य रचनाओं में कठिन विषयों को तलाशते हैं और भयभीत नहीं होते। वे उन्हें सहज शब्दों में अभिव्यक्त कर पाठकों के लिए ग्राह्य बना देते हैं। उन्होंने रचनाकर्म में  सावधानी बरतने की चर्चा करते हुए कहा कि लेखन में सावधानी बरतना हमें सही चिंतन की ओर ले जाता है।आज हम जिसे प्रगति कहते हैं, उसमें मूलतःअहंकार का विस्तार है। ललित की रचनाओं से उनकी सोच सामने आती है कि कैसे वे सामाजिक सरोकारों और जीवन मूल्यों की पहचान करते हुए उन्हें महत्वपूर्ण बना देते है। ललित व्यंग्य के प्रचार प्रसार और इस विधा की अभिवृद्धि के लिए व्यंग्य शिविरों और प्रकाशनों की दिशा में सक्रिय हैं जो अनुकरणीय है। 

मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री राजस्थान के विशेषाधिकारी और वरिष्ठ व्यंग्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि साहित्य ने हमेशा समाज को आइना दिखाया है। साहित्य ने सोये रहने वालों को जगाने का काम करते हुए छल कपट, अन्याय और भ्रष्टाचार से जूझने की दृष्टि दी है। अनुस्वार जैसी पत्रिकाएँ सामाजिक अस्मिता की रक्षा करने में कारगर भूमिका निभाएगी। आज के दौर में इसका महत्व और बढ़ गया है जब अभिव्यक्ति के खतरे निरंतर बढ़ रहे हैं और झूठ पर सत्य की परतें चढ़ाई जा रही हैं । उन्होंने डॉ लालित्य ललित के व्यंग्य लेखन और कवि कर्म की पड़ताल करते हुए कहा कि वे समाज की विसंगतियों पर कड़ा प्रहार करते हैं । उनकी सादगी, सरलता, तरलता, सहिष्णुता और उर्जा उनकी रचनाओं में भी दिखाई देती है ।  

सुप्रसिद्ध नाटककार  कथाकार  प्रताप सहगल ने कहा कि यदि किसी रचनाकार को समझना है तो उसके  रचना कर्म , जीवनी और साक्षात्कार को पढना चाहिए तभी उसके विचारों और सामाजिक प्रतिबद्धता को जाना जा सकता है ।

डॉ लालित्य ललित ने इण्डिया नेटबुक्स का आभार व्त्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने साहित्य के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया है । साहित्य उनका शगल नहीं जीवन पद्धति है । एक बेहतर दुनिया बनाने में वे अपना हर क्षण योगदान करना चाहते और और उनकी अब तक की साहित्यिक यात्रा इसकी साक्षी है । व्यंग्य और कविता विधा के जरिये वे सदैव एक खुबसूरत, सभी के हित चिंतन और परस्पर सद्भाव रखने वाले समाज की परिकल्पना के साथ रचना कर्म कर रहे हैं ।  

प्रारंभ में औस्वार के मुख्य संपादक एवं इण्डिया नेटबुक्स के निदेशक डॉ संजीव कुमार ने कहा कि आज साहित्य की भूमिका बढती जा रही है ।  रचनात्मक साहित्य को समाज तक पहुँचाने और उसकी प्रतिष्ठा के लिए ही उन्होंने इण्डिया नेट्बुक्स के माध्यम से बीड़ा उठाया है । साहित्य को वे व्यापार नहीं जीवन व्यवहार का अंग बनाकर आगे आए हैं और साहित्य के संवर्धन के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहेंगे । यह सौभाग्य की बात है कि प्रेम जनमेजय जैसे सुदीर्घ अनुभवी संपादक ने अनुस्वार का संपादन किया है । इस अवसर पर व्यंग्यकार प्रोफ़ेसर राजेश कुमार,व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी, कवि पत्रकार महेंद्र शर्मा, कवयित्री शशि सहगल, डॉ मनोरमा, आशा कुंद्रा, राजेश्वरी मंडोरा, सोनी लक्ष्मी राव एवंकामिनी ने भी विचार व्यक्त किए । युवा साहित्यकार रणविजय राव ने कार्यक्रम का संचालन किया ।