
रोगियों को दी नई जिंदगी, अब तक 1600 से अधिक किडनी ट्रांसप्लांट किए
जयपुर। राजधानी के सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल में किडनी प्रत्यारोपण विशेषज्ञों ने हाल में एक ही दिन में 6 रोगियों में स्वैप किडनी प्रत्यारोपण कर इतिहास रचा है। खास बात यह है कि इन सभी रोगियों को उसी ब्लड ग्रुप का मैचिंग डोनर नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में किडनी प्रत्यारोपणहो पा रहा था। किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट के निदेशक तथा जाने माने यूरोलोजिस्ट प्रो. डॉ. टीसी सदासुखी तथा जाने-माने गुर्दा रोग विशेषज्ञ व महात्मा गांधी अस्पताल में नेफ्रेलोजी हैड प्रो. डॉ. सूरज गोदारा ने बताया कि डोनर किडनी देने को तैयार हो और ब्लड ग्रुप मैच नहीं हो तो यह निराशाजनक स्थिति होती है। स्वैप किडनी डोनेशन के जरिए रोगियों को उपचारित किया जा रहा है। स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट उसी स्थिति में हो सकता है, जब कई रोगी तथा डोनर्स वेटिंग में हों। महात्मा गांधी अस्पताल में राज्य के सर्वाधिक किडनी प्रत्यारोपण किए गए हैं। अब यह संख्या 1600 से अधिक हो गई है। हाल में किए गए सभी ऑपरेशन गत 8 मई, 2023 को हुए। इसमें 4 सर्जन ने 4 ऑपरेशन थियेटर्स में, सुबह 8 बजे ऑपरेशन शुरू किए थे, जो करीब 12 घंटे चले। गहन चिकित्सा इकाई में उन्हें संक्रमणमुक्त वातावरण में रखा गया। 10 दिन की रिकवरी के बाद छुट्टी दी गई। अभी किए गए फॉलो-अप में सभी रोगी, जिनमें किडनी प्रत्यारोपित की गई तथा सभी डोनर्स पूरी तरह ठीक हैं और शीघ्र सामान्य दिनचर्या में लौट आएंगे।
डोनर नहीं मिलने से अधर झूल गई थी जिंदगी

डॉ. सूरज गोदारा ने बताया कि यहां कैडेवर, लिविंग डोनर, एबीओ इंकॉम्पिटिबल तथा स्वैप तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं। पहले मामले में बहरोड निवासी निशांत का ब्लड ग्रुप बी-पॉजीटिव था, जबकि उसकी डोनर माता ललता देवी का ब्लड ग्रुप ओ-पॉजिटिव था। एंटीबॉडीज के कारण ट्रांसप्लांट में समस्या आ रही थी। ऐसे में उन्हें स्वैप डोनर सरिता यादव की किडनी लगाई गई। दूसरे मामले में श्रीगंगानगर निवासी किडनी रोगी रजनी शर्मा का ब्लड ग्रुप एबी-पॉजीटिव था, जबकि उनके पति गौरी शंकर का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। ऐसे में एंटीबॉडीज के कारण उनका किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो पा रहा था। स्वैप ट्रांसप्लांट के जरिए उन्हें मैचिंग स्वैप डोनर मुन्नी देवी की किडनी लगाई गई। तीसरे मामले में रोगी ऊषा शाक्य जयपुर की रहने वाली हैं। उनका ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था, जबकि उनके डोनर रमेश चंद का ब्लड ग्रुप ए-पॉजिटिव था। ऐसे में अलग ब्लड ग्रुप के कारण उनका भी किडनी ट्रांसप्लांट नहीं हो पा रहा था। उन्हें स्वैप डोनर ललता देवी मीणा की किडनी लगाई गई। चौथे मामले में झुंझुनू निवासी प्रीति सोनी का ब्लड ग्रुप ए-पॉजिटिव था। डोनर उनकी माता मुन्नी देवी का ब्लड ग्रुप बी-पॉजिटिव था। उन्हें स्वैप डोनर रमेश चंद की किडनी प्रत्यारोपित की गई। पांचवां केस भी कुछ ऐसा ही था, जिसमें डीडवाना निवासी महिपाल सिंह का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था, जबकि उनकी डोनर माता स्वरूप कंवर का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था। ऐसे में उन्हें स्वैप डोनर गौरीशंकर शर्मा की किडनी लगाई गई। छठे मामले में मैनपुरी, यूपी के रहने वाले दिनेश यादव का ब्लड ग्रुप ए पॉजिटिव था। उनकी डोनर पत्नी सरिता का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। मैचिंग ब्लड ग्रुप नहीं होने की वजह से वे बहुत दिन से मैचिंग डोनर का इंतजार कर रहे थे। ऐसे में स्वैप डोनेर स्वरूप कंवर की किडनी लगाई गई।
जागरूकता ही बचाव : सतर्क रहकर बचाई जा सकती है किडनी

डॉ. टीसी सदासुखी तथा डॉ. सूरज गोदारा ने बताया कि किडनी की बीमारी से बचने के लिए कुछ बातों पर जरूर ध्यान देना चाहिए, जैसे स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, नियमित रूप से व्यायाम करें, ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखें, जंक फूड और ऑइली फूड से बचें, मोटापा कम करें और शराब व तंबाकू के सेवन से बचें। किडनी के गंभीर रोगियों के लिए किडनी प्रत्यारोपण अंतिम उपचार होता है। किडनी की बीमारियों के प्रति जन-जागरूकता बहुत जरूरी है। यदि समय पर बीमारी की पहचान हो जाए तो किडनी को पूरी तरह खराब होने से बचाया जा सकता है।
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