
लाडनूं। तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी के नाम से प्रख्यात लाडनूं के जैन विश्व भारती परिसर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन प्रवास से पूरी लाडनूं तहसील धर्म नगरी बनी हुई है। लगभग आठ वर्षों बाद अपने आराध्य का पावन प्रवास और उनके श्रीमुख से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में इस नगरी का जन-जन नित्य प्रति स्नान कर अपने जीवन को धन्य बना रहा है। कडक़ड़ाती ठंड में भी श्रद्धालुजन अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में सूर्योदय से पूर्व ही उपस्थित हो जाते हैं मंगलपाठ का श्रवण कर अपने आराध्य की निकट उपासना का लाभ भी प्राप्त करते हैं। आचार्यश्री की अमृतवाणी का श्रवण करने के पश्चात् भी श्रद्धालु साधु-साध्वियों की उपासना का लाभ लेकर इस अमूल्य समय का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं।
इस अवसर पर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालुओं को मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के सामने तीन काल होते हैं-अतीत काल अर्थात बीता हुआ काल, वर्तमान काल तथा अनागत काल। अतीत काल अनंत है और अनागत काल भी अनंत है। इस जन्म से पहले भी आदमी अनंत-अनंत बार जन्म ले चुका है और मृत्यु को प्राप्त कर चुका होता है। उसे अतीत की बात याद भले न हो, किन्तु आत्मा इससे पहले अनंत बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त कर चुकी है।
आदमी को अपने वर्तमान को अच्छा बनाने और अनागत की तैयारी के लिए ज्ञानार्जन करने की आवश्यकता होती है। आदमी को करणीय और अकरणीय को जानने के लिए ज्ञान होना आवश्यक होता है। आदमी को करणीय तथा अकरणीय का ज्ञान हो जाता है तो वह अपने वर्तमान जीवन को सुधारने के साथ ही भविष्य की भी अच्छी तैयारी कर सकता है। बहुश्रुत की पर्युपासना करने का मत शास्त्र में प्रदत्त किया गया है। बहुश्रुत के पास कितना ज्ञान का खजाना होता है, पूज्य गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के पास कितना ज्ञान का खजाना था, उनसे कितनों को अपने जीवन का मार्गदर्शन और पथदर्शन प्राप्त हुआ होगा। इस प्रकार आदमी को बहुश्रुत की पर्युपासना कर अपने जीवन का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री की सन्निधि में महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी सहित उपस्थित साध्वी समुदाय ने आचार्यश्री को पक्खी के सदंर्भ में विशेष वंदन कर खमतखामणा किए तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु जीवन में व्यवहार को विशेष बनाने का प्रयास करना चाहिए। साधु को हंसना भी हो तो पूर्ण सावधानी के साथ कब, कहां और कितना हंसना चाहिए, इसका विवेक होना चाहिए। साधु के तो मजाक नहीं शोभता। साधु मजाक नहीं, विनोद शब्द का प्रयोग कर सकता है। इस प्रकार आचार्यश्री ने अनेक प्रेरणाएं प्रदान कीं।
आचार्यश्री के शुभागमन में आज भी स्वागत आदि उपक्रम रहा। इसमें जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-लाडनूं के अध्यक्ष सम्पत डागा, स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष प्रिती जैन, कन्या मण्डल से निशी सिंघी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल तथा तेरापंथ कन्या मण्डल ने संयुक्त रूप से गीत आदि के माध्यम से पूज्यचरणों में अपनी भावांजलि अर्पित की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। गुरुदर्शन करने के उपरान्त बहिर्विहार से समागत साध्वी प्रज्ञावतीजी आदि सहवर्ती साध्वियों ने भी गीत का संगान कर अपने आराध्य के चरणों में अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी।