
जोधपुर मूल के नंदी वर्धन मेहता ने महामारी में दुबई से राजस्थान को 2500 से ज्यादा ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर अलॉट कराने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
निर्मल मन, करूणापूर्ण व्यक्तित्व, मानव सेवा में तत्पर नंदी वर्धन मेहता हैं कवि हृदय भी
राजेन्द्र सिंह गहलोत
दैनिक जलतेदीप, जयपुर। कोरोना महामारी में पहली लहर की समाप्ति के साथ ही भारत में हर स्तर पर यह मान्यता बन गई कि कोरोनाकाल खत्म हो गया, लेकिन काल कोरोना की दूसरी लहर के रूप में जनमानस को अपना ग्रास बनाने को तत्पर था। अचानक कोरोना रोगियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने लगी, मौतों के आंकड़े भी डराने वाले थे। अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म, पूरे विश्व को ज्ञात हो गया था कि भारत कोरोना का शिकार बन चुका है। आत्मनिर्भर भारत अचानक पूरी दुनिया की दया दृष्टि पर निर्भर हो चुका था, मदद पहुँचने लगी, ऐसे में प्रवासी राजस्थानी भी भारत और राजस्थान की मदद करने में पीछे नहीं हटे। ऐसे ही प्रवासी राजस्थानी हैं मूल रूप से जोधपुर के बाशिंदे वरिष्ठ वित्त अधिकारी एवं चार्टर्ड अकाउन्टेंट नंदी वर्धन मेहता, जो दुबई में दुनिया की सबसे बेहतरीन फम्र्स के साथ काम करते हुए भी भारत और राजस्थान को नहीं भूले।
मानवमात्र की सेवा करने के लिये हमेशा तत्पर

नंदी वर्धन मेहता कोरोनाकाल में ही नही, बाकी समय में भी किसी न किसी माध्यम से दूसरों के दर्द को महसूस करते हुए मानवमात्र की सेवा करने के लिये हमेशा तत्पर रहते हैं। नंदी वर्धन मेहता ने बताया कि ज्योंहि पता चला कि भारत को मदद की जरूरत है, मैं सक्रिय हो गया और इस रणनीति पर काम करने लगा कि मेरे माध्यम से किस तरह भारत और राजस्थान को मदद पहुँचाई जा सकती है। अपने निजी संबंधों का उपयोग करते हुए मैं इस नेक काम में निमित्त बना और ‘एक्ट’ और ‘स्वस्थ’ संस्थाओं के जरिये कोरोना महामारी में राजस्थान को 2500 से ज्यादा ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर अलॉट कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसमें से 1300 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर तो भिजवाये भी जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका इंडिया फाउंडेशन के जरिये जो मदद राजस्थान को उपलब्ध कराई उसमें राजस्थान को ऑक्सीजन प्लान्ट और वेन्टीलेटर मिले हैं। मैं राजस्थान फाउंडेशन के कमिश्नर धीरज श्रीवास्तव जी का विशेष आभारी हूं, कि उन्होंने मुझे राजस्थान फाउंडेशन से जोड़ा, जिससे मैं राजस्थान के काम आ सका।

‘सपना’ संस्था में 17 साल से दे रहे हैं सेवा
इसी प्रकार जोधपुर में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के चीफ थे सुधीर प्रताप सिंह, उनसे मेरा संबंध 1996 से है, वह जनरल सेकेट्ररी हैं ‘सपना’ संस्था के, ‘सपना’ के प्रेसिडेंट हैं पद्मश्री, पद्मभूषण नारायण सिंह माणक लाव, मैं उसमें गवर्निंग बॉडी का मेम्बर हँ और 17 साल से अपनी सेवाएं दे रहा हूँ। यह संस्था अलवर में कार्यरत है, जिसके लिये अलवर के महाराजा ने संस्था को बहुत सहयोग दिया है, और उन्होंने संस्था के लिये जगह उपलब्ध कराई है। वहाँ करीब 94 लोग हैं जिनका कोई नहीं है जो ट्रोमा सेन्टर दिल्ली से लाये जाते हैं उन लोगों की मदद यह संस्था करती है, लड़कियों के लिये स्कूल चलाती है, नेत्र चिकित्सालय चलाते हैं, कॉल सेन्टर भी चलाते हैं ताकि गाँव में ही रोजगार उपलब्ध कराया जा सके और शहरों की ओर रोजगार की तलाश में हो रहे पलायन को रोका जा सके।
वॉलेन्टियर्स के रूप में गुजरात भूकम्प पीडि़तों की मदद की
इसी तरह की एक घटना है जनवरी 2001 में गुजरात में भूकम्प आया था, उस समय कड़ाके की ठंड थी, मेरी उम्र उस समय 20 साल रही होगी, हम चार दोस्त थे। जैन संस्था के पास करोड़ों का सामान था भूकम्प पीडि़तों को बांटने के लिये, लेकिन उनके पास वॉलेन्टियर्स कम थे, हम दोस्तों ने सबने अपने-अपने घरवालों से कहा कि बाकी तीनों दोस्तों के घरवालों ने वॉलेन्टियर्स के रूप में गुजरात जाने की सहमति दे दी है, इस तरह हम वॉलेन्टियर्स के रूप में गुजरात भूकम्प पीडि़तों की मदद के लिये गये। 6-7 दिन रापर शहर में रूके। वहाँ हमने भूकम्प पीडि़तों का हर तरह से मनोबल बढ़ाया। वहाँ 700-800 लोगों का एक कैम्प था, हमने उनको कविताएं सुनाई जिससे उनमें आशा और साहस का संचार हो। उन्होंने रोते हुए कहा कि आपको पहले ही आ जाना चाहिये था, आप 8-9 दिन बाद क्यों आये? वहीं पर एक औरत सोने के गहनों से लदी हुई आई और अपने एक साल के बच्चे के लिये गर्म कपड़े मांगे। वहाँ उस समय भयंकर कंपकंपाने वाली ठंड थी।
हालातों से ही समझा जा सकता है कि दुख क्या होता है
मैंने कपड़ों से भरा पूरा ट्रक छान मारा लेकिन मुझे एक साल के बच्चे को ठंड से बचाने के लिये कपड़े नहीं मिले। मेरी हिम्मत नहीं थी कि मैं उसको कह पाता कि कपड़े नहीं हैं, लेकिन बेबसी ने मेरी आँखों में आंसू ला दिये और वह उन आंसुओं की भाषा समझ गई और चुपचाप वहां से चली गई। इन हालातों में ही समझा जा सकता है कि दुख क्या होता है। मैंने जाना है कि दुख क्या होता है, मेरा ननिहाल और ददिहाल दोनो आर्थिक रूप से सुदृढ़, लेकिन पिता का साथ बचपन में छूट गया। मां हुकम मेहता ने प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का काम किया और हमारा पालन-पोषण किया। वह कहती कि तुम सबकी मदद करना, तुम प्राणिमात्र की मदद कैसे करते हो, मेरे लिये बस इसी बात का महत्व है।
जोधपुर में चलने वाले फेस्टिवल ‘किताबो’ से भी मैं जुड़ा हूँ

इन्हीं सब हालातों ने मुझे कवि हृदय बनाया, मैं कविताएं लिखता हूँ और मेरे मित्र विकास और उनकी बहन इरा के जोधपुर में चार साल से चलने वाले फेस्टिवल ‘किताबो’ से भी मैं जुड़ा हूँ, हम सहयोगी हैं। जोधपुर के महाराजा गजसिंह इसके संरक्षक हैं। तीन दिन चलने वाले इस साहित्य मेले में करीब दस हजार बच्चे आते हैं, जिन्हें पूरे भारत से आमंत्रित 80 वक्ता सम्बोधित करते हैं। ‘किताबो’ में कविताओं, कहानियों का तीन दिन तक पठन पाठन होता है और संगीत का कार्यक्रम भी होता है। जिस तरह के मुझे संस्कार मिले, धर्म, अध्यात्म, इन्हीं से प्रेरित होकर मैंने अपने बच्चों के नाम रखे ।
राजस्थान मेरे दिल के करीब है, मुझे वहाँ सभी का इतना प्यार मिला
बड़े बच्चे का नाम ‘शरण’ यानि शेल्टर, जहाँ हर किसी को छत मिले, पनाह मिले, और छोटे बेटे का नाम ‘निर्वाण’ यानि मोक्ष, क्योंकि मोक्ष ही मंजिल है। पत्नि का नाम भी ‘श्रद्धा’, क्योंकि बिना श्रद्धा के तो शरण और निर्वाण की कल्पना भी नहीं की जा सकती, श्रद्धा होगी तो ही शरण में जायेंगे, तो ही निर्वाण होगा। श्रद्धा से भी मुलाकात जिंदगी के सफर में हुई रेलगाड़ी में, दोनो अनजाने थे। मां ने जोधपुर बुलाया था लड़की देखने के लिये। मैं दुबई से दिल्ली हवाईजहाज से उतरा और दिल्ली से जोधपुर रेलगाड़ी में, लेकिन रिजर्वेशन नहीं था, ऐसे ही हालात श्रद्धा के भी थे रिजर्वेशन नहीं था। टीटीई ने दोनों को ही एक सीट अलॉट कर दी। आपसी बातचीत में पता चला कि श्रद्धा जोधपुर में हमारे घर के पास ही रहती है और मेरी मम्मी की छात्रा रही है। रेलगाड़ी उतरने से पहले मैंने भी बिना वक्त गवाएं कह दिया कि मां ने लड़की देखने जोधपुर बुलाया है, लेकिन जोधपुर की लड़की तो रेलगाड़ी में ही मिल गई, लेकिन अंतत: हमारी रेलगाड़ी स्टेशन पर पहुंच ही गई। अब तो मेरी एक ही ईच्छा है कि मैं भारत माता की मिट्टी में जलना चाहता हूँ, बाकी बची जिंदगी भी वहीं बिताना चाहता हूँ उस पावन भूमि में, राजस्थान तो मेरे दिल के इतने करीब है कि मैं बयां नहीं कर सकता क्योंकि वहीं मुझे सभी का इतना प्यार मिला।
कंपनी वंडर आरएक्स के माध्यम से राजस्थान के बने मददगार
राजस्थान फाउंडेशन के कमिश्नर धीरज श्रीवास्तव ने मुझसे यह कहा था कि राजस्थान फाउंडेशन की पहल यह थी कि राजस्थान में जितने भी अपने लोग हैं वह अगर विदेश में बैठे राजस्थान के डॉक्टर्स से परामर्श लेना चाहते हैं तो उसके लिये कोई प्लेटफॉर्म नहीं है उनके पास, कोई टेक्नीकल सपोर्ट भी नहीं है और उनको एक कॉल सेन्टर भी चाहिये, जिसके लिये मैंने कहा कि जो डोरी के डॉक्टर्स हैं उन्हें और राजस्थान के लोगों को जोडऩे का जो कम्पलीट प्लेटफॉर्म है उसको हमारी इन्वेस्टमेंट कंपनी वंडर आरएक्स के माध्यम से हम कम्पलीट प्लेटफॉर्म और कॉल सेन्टर राजस्थान सरकार को फ्री प्रोवाइड करेंगे उनको इसके लिये चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। कॉल डोरी एप राजस्थान फाउंडेशन के माध्यम से शुरू की गई।
मां को समर्पित की अपने हृदय से निकली कुछ पंक्तियां
नंदी वर्धन मेहता ने अपनी कहानी सुनाते हुए श्रद्धा से गद्गद् हो अपनी मां को समर्पित इन पंक्तियों के साथ अपनी कहानी पूरी की –
तू ही पथ,
तू ही मंजिल,
तू ही काफिला,
मैं प्यासा तू सागर,
सो तुमसे आ मिला,
तू ही आधार,
तू ही आसरा,
ऐ मां बता तेरे बिना मैं क्या हूँ ?
नंदी वर्धन मेहता मां को सम्मान देना जानते हैं शायद इसीलिये अपने वतन अपनी भारत मां के प्रति भी इतना प्यार है कि कहते हैं कि मैं भारत की मिट्टी में जलता चाहता हूँ, ऐ मां बता तेरे बिना मैं क्या हूँ?