नेशनल हैंडलूम डे: ‘हैंडलूम क्राफ्ट एंड आर्ट’ विषय पर लाइव टॉक

National Handloom Day
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हैंडलूम उद्योग कई लोगों को रोजगार देता है और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण: बी डी कल्ला

परंपरा को संरक्षित करने की आवश्यकता पर चर्चा हुई

जयपुर । भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, महात्मा गांधी ने कहा था कि कृषि एक घाटे का सौदा है और किसान सिर्फ खेती करके कभी आगे नहीं बढ़ सकता। यही कारण है कि गांधी ने ‘खादी ग्राम उद्योग’, ‘कुटीर उद्योग’ और ‘हथकरघा उद्योग’ की शुरूआत की। हैंडलूम उद्योग कई लोगों को रोजगार देता है और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। राजस्थान में, सांगानेरी, बगरू और अजरक प्रिंट मुख्य रूप से मजबूत रहे हैं।

राज्य के कई कारीगर पुरस्कृत हुए हैं और उनके असाधारण काम के लिए उन्हें पहचान मिली है। यह बात कला एवं संस्कृति मंत्री, राजस्थान सरकार, डॉ. बी डी कल्ला ने कही। उन्होंने यह भी घोषणा की कि 70 वर्ष से अधिक आयु के कारीगर 4 हजार रुपए की नियमित मासिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार के माध्यम से कला एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार को अपना आवेदन भेज सकते हैं।

नेशनल हैंडलूम डे के अवसर पर शुक्रवार को ‘हैंडलूम क्राफ्ट एंड आर्ट’ विषय पर आयोजत लाइव टॉक में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे

कला एवं संस्कृति मंत्री नेशनल हैंडलूम डे के अवसर पर शुक्रवार को ‘हैंडलूम क्राफ्ट एंड आर्ट’ विषय पर आयोजत लाइव टॉक में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। इस लाइव टॉक में लेखक और टेक्सटाइल स्कॉलर रीटा कपूर चिश्ती भी शामिल हुईं, जिन्होंने कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार और साहित्य सचिव, आईएएस एसोसिएशन, राजस्थान, मुग्धा सिन्हा के साथ चर्चा की। कार्यक्रम का आयोजन कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान द्वारा जवाहर कला केंद्र (जेकेके) और आईएएस लिटरेरी सोसाइटी के सहयोग से किया गया।

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इस अवसर पर, रीटा कपूर चिश्ती ने कहा कि हैंडलूम इंडस्ट्री के कारीगरों को सबसे पहले अपनी नींव मजबूत करनी चाहिए। तभी वे ऐसे टॉप क्लास प्रोडक्ट बना पायेंगे जो दुनिया भर में जाना जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि किस तरह का हैंडवर्क टॉप श्रेणी का होता है इसका भी बेंचमार्क होना चाहिए ताकि कारीगरों को उस क्वालिटी के प्रोडक्ट बनाने के लिए प्रोत्सहित और सहयोग दिया जा सके।

हथकरघा देश की एक महान परंपरा है जिसमें गिरावट देखी जा रही है, क्योंकि इसके कारीगरों को पर्याप्त सम्मान और पहचान नहीं दी जा रही है। इस उद्योग में कमाई भी बहुत कम है यही कारण है कि यह पीढ़ीगत शिल्प समाप्त हो रहा है। यदि कारीगरों की अच्छी कमाई होगी तो उनके बच्चे भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे और इस कला को जीवित रखेंगे।