नई पहल के पहलवान

हमें नही लगता कि उस पहल के सकारात्मक परिणाम निकलेंगे। इसका मतलब यह भी नहीं कि हाथ पे हाथ रख के बैठ जाएं। जिसे साथ देना है-सहर्ष दे, वरना धन्यवाद तो बनता ही है। यह भी हो सकता हैं कि दीन और दाता में लकीरें खिंच जाए। जो होगा सो होगा फिलहाल भाई लोगों ने खाका सबके सामने परोस दिया। तस्वीर सुनहरी होगी या जैसा चलता आया है, वैसा ही चलता रहेगा। यह भविष्य की गोद में। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
किसी योजना का खाका बनाने में और उसे निचले स्तर तक क्रियान्वित करने के बीच मीलों मील का लंबा सफर है। इतने मील.. इतने मील.. इतने किलोमीटर.. इतने किलोमीटर कि माइल स्टोन गिनते-गिनते केलक्यूलेटर हांफ जाए। इसे अगर और ज्यादा सरल तरीके से कहें तो निकलेगा कि पहल करना बड़ा आसान है, अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगन-मेहनत-समय-अर्थ और साथी हाथ बंटाना.. साथी रे.. की भावना जरूरी है। मिसाल के तौर पे पौधारोपण को ही ले ल्यो। पौधे रोपना बड़ा आसान है। एक-दो बिलास्त का खड्डा खोदा। पोलिथिन पैक फाड़ के पौधा रेत सहित निकाला। खड्डे में टेका। मिट्टी समतल करी। झारे से पानी डाला। फोटो-सेल्फी उतरवाई। अखबारों में विज्ञप्ति भेज दी और छुट्टी। लो भाई शुरू हो गया पौधारोपण अभियान। असल में पौधे रोपणे के बाद उनकी देखभाल करना। खाद-पानी देना। उन्हें चौपायों से बचा के रखना। बच्चों की तरह पालना। यह सफर बड़ा मेहनती और लंबा होता है।
एक बात और..। सरकारी अभियान उतने सफल नहीं होते जितने सामाजिक संस्थाओं द्वारा शुरू किए गए अभियान सफल होते हैं। आप ने जोधपुर की मेहरानगढ़ किला रोड तो देखी होगी। किले से पहले जसवंत थड़ा की ओर जाने वाली घुमावी रोड पर जो हरियाली नजर आती है वह किसी सरकारी योजना की देन नही बल्कि एक ऐसे प्रकृति प्रेमी और उनकी टीम की मेहनत का नतीजा है। जिन्होंने पहाड़ों का सीना चीरकर उसमें फूलों की महक बिखेरी। बंजर पहाड़ी को फूलों वाली घाटी बना दिया। उस पर्यावरण प्रेमी का नाम है प्रसन्नपुरी गोस्वामी। जो शिक्षा विभाग से तो सेवानिवृत हो गए मगर पेड़-पौधों की सेवा में पिछले 40-45 साल से लगे हुए हैं। पहला चरण हरा भरा करके दूसरा चरण पूरा कर दिया। फिर तीसरी सिढी चढ गए। अब उनकी मेहनत से पहाड़ी चट्टाने हर्बल पार्क के रूप में हरियाली बिखेर रही है। यही कार्य यदि किसी सरकारी एजेंसी के हस्ते किया होता तो बीच रास्ते में हांफ जाती। लाखों-करोड़ों का चूना लगता सो अलग। किसी पहल को अंजाम तक पहुंचाने के लिए यह उदाहरण भर था। मूल मुद्दा नई पहल और दीन-दाता के बीच जंग के आसार का। भले ही पहल किन्ही सामाजिक संगठनों या एनजीओं ने की हो, हमें उसके सफल होने पे वहम है। हां, देने और लेने वालों के बीच तकरारें जरूर हो सकती हैं। दीन के अपने तर्क-दाता के अपने। भिखारी हैं-तो क्या हुआ-तर्क में देने में वो भी पीछे नहीं। देग के चावल के रूप में पेश भी किए देते हैं।
एक बार एक भिखारी एक बाऊजी के सामने रीरियाया-‘साब पांच रूपए दे दो..। बाऊजी ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर बोले-नही है। दो रूपए ही दे दो। नही है। एक रूपया ही दे दो। नही है। बात अठन्नी पे आकर भी नही जमी तो भिखारी ने ऑफर दिया- तो आ जाओ, अपन दोनों मिल के भीख मांगते हैं। इसी प्रकार एक हट्टे कट्टे भिखारी को भीख मांगता देख एक महिला ने आंखें तरेरी-‘इतने मोटे-तगड़े हो के भी भीख मांगते हो, शरम नही आती।इस पर भिखारी भी तड़का-‘मैडम, कुछ देना है तो दो.. ये प्रवचन-उपदेश अपने पास रखो। हो सकता है ऐसी स्थिति नई पहल के पहलवानों ने सामने भी आ जाए..।
हुआ यूं कि मुंबई-पुणे सहित महाराष्ट्र के कई शहरों और हरियाणे में कुछ संगठनों ने भिखारियों को पैसे देने के खिलाफ मुहिम चलाई है। उनका कहना है कि भीख के पैसों का दुरूपयोग होता है। गिरोह चलाने वाले बच्चों से भीख ंमंगवाते हैं। कई लोग भीख में मिले पैसों से नशा करते हैं। कई लोग जुआं खेलते हैं। संस्थाओं का कहना है कि उनको खाना खिला दो। पानी पिला दो। बिस्कुट या अन्य खाद्य सामग्री दे दो मगर पैसे मति दो। उनकी सोच है कि मुहिम आगे बढने से भिखारियों के गिरोह दरक जाएंगे। बच्चों के अपहरण की घटनाओं में कमी आएगी।
हथाईबाज भी इस पहल के समर्थक। पैसा नही देणा है तो, नहीं देंगे। उसे खाना खिला देंगे। अम्मा कहेगी-बाबू घर में बच्चे भूखे हैं, पति लाचार और बीमार है.. मैं रोटी कैसे खा लूं तो आप क्या कहेंगे-आप क्या करेंगे। कोई कहेगा-हमारा पेट तो भर जाएगा..पीछे परिवार भी तो है। हर भिखारी के अपने तर्क। ऐसे में या तो उसके परिजनों के लिए भी ‘थाळी का इंतजाम करो या रूपया-दो रूपया पकड़ाया और छुट्टी।
हथाईबाज जानते हैं कि कई लोग मजबूरी में तो कई लत मिटाने के लिए भीख मांगते हैं। शासन-प्रशासन ने कई बार भीख प्रथा रोकने के लिए मुहिम भी चलाई पण हर बार असफलता हाथ लगी। देखते है नई पहल के पहलवानों के हाथ में कौन सा दांव लगता है। हमारी शुभकामनाएं और सहयोग उनके साथ है।

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