जेजेटी विश्वविद्यालय में ‘हाउ टु सेट अ गुड क्वेश्चन पेपर’ पर कार्यशाला का आयोजन किया

जयपुर । शिक्षा के बदलते स्वरूप में, इसकी कारगरता और उपयोगिता के मद्देनजर, छात्रों के समग्र विकास के क्रम में उपयोगी और प्रभावी प्रश्नों का चयन कैसे हो, इस विषय “ हाउ टु सेट अ गुड क्वेश्चन पेपर “ पर, जेजेटी विश्वविद्यालय में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। समारोह का उद्घाटन पारंपरिक दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ किया गया। इस मौके पर समारोह का उद्घाटन करते हुए जेजेटी विश्वविद्यालय के प्रो चेयरपर्सन डॉ० (ब्रिगेडियर) सुरजीत सिंह पाबला ने कहा कि तात्कालिक परिस्थितियों के तहत आज जब पढ़ाई के लगभग सारे कार्यक्रम ऑन लाइन हो रहे हैं तब समयानुसार पढ़ाने के क्रम में पाठ्यक्रम को छात्रों के सामने प्रस्तुत करने की पद्धति पर भी गौर करने की जरूरत है। यह विश्वविद्यालय यूजीसी के हर गाईड लाइन के महत्व को समझता हैं और इसलिए भी विश्वविद्यालय इस तरह के कार्यशाला का आयोजन करता रहा है।

इस मौके पर प्रेसीडेंट डॉ० (कर्नल) नागराज मंथा ने अपने विचार रखते हुए कहा कि अचानक बदले शिक्षा के तरीके से छात्रों के समक्ष इसे रोचक और प्रभावी बनाने की जरूरत पर हम समग्रता से काम कर रहे हैं।

जेजेटी विश्वविद्यालय के प्रो प्रेसीडेंट डॉ० (कोमोडोर) जवाहर जाँगीर का मानना है कि समयानुसार शिक्षण की रूपरेखा और कार्यशैली में बदलाव के साथ साथ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि छात्रों को दी जा रही शिक्षा उनके रूचिनुसार और भविष्य निर्माण में कारगर हो सके। प्रो प्रेसीडेंट डॉ अनुराग, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ढ़ेरो रचनात्मक प्रयोग किए हैं, इनकी नजर में शिक्षा सिर्फ एक ज्ञान प्राप्त करने का जरिया भर ना बन के रह जाए, बल्कि उस शिक्षा से छात्र एक विकसित और सार्थक समाज का निर्माण कर सकें, इस बात पर बल देने की जरूरत होनी चाहिए।

कार्यशाला का संचालन कर रही मुख्य परीक्षा नियंत्रक डॉ चरनजीत कौर पाबला ने कहा कि छात्रों को पढ़ा रहे शिक्षकों को यह स्पष्ट होना चाहिए कि जिन विषयों को वह पढ़ा रहे हैं, उसका उद्देश्य क्या हो। और जब उद्देश्य स्पष्ट रहेगा तभी हम शिक्षा की सार्थकता को रेखांकित कर पाएँगे। प्रश्न कैसे पूछे जाएँ, वह कितना रचनात्मक और उद्देश्यदायी हो इस पर गहन चिंतन और स्पष्ट दिशा निर्धारण करने की जरूरत है। जो छात्रों के लिए उनके ज्ञानवर्द्धन और भविष्य के पारदर्शी चुनाव में सहायक साबित होगा।

इस कार्यशाला में बड़ी संख्या में प्राध्यापकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यह कार्यक्रम आगामी 12 फरवरी तक जारी रहेगा। कार्यशाला संचालन के सहयोग में डॉ० अनिल कड़वासरा और डॉ वंदना तिवारी का मुख्य भूमिका रही।