शुद्ध सियासी खेला

पहले सुना ही था, अब नंगी आंखों से दिख भी रहा है, फरक पसराव का। भाई लोगों ने उसे मुट्ठी में बांध के रखा था, अब लग रहा है मानों आसमां मुट्ठी में समा रहा है। इससे बड़ा खेला क्या हो सकता है कि मिस्टर इंडिया स्टाईल में सब कुछ हो गया और किसी को भनक तक नहीं लगी। लोग कुछ भी कहे। कहने वाले कुछ भी कहें। हम तो यही कहेंगे-‘खेला होबे.. खेला होबे..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

‘कुछ तो लोग कहेंगे.. लोगों का काम है कहना..। यह पंक्तियां किसने लिखी। यह सुर किस ने बिखेरे और किस मसले-मुद्दे पे बिखेरे। अपन को इस पंगे में नहीं फंसना। पता चल भी जाए तो कौन-क्या बिगाड़ लेगा। चंपालाल कह देंगे-हां मैने कुछ तो लोग कहेंगे को हरफों में उतारा, जिस को जो करना है, कर ले। उधर देवीलाल ताल ठोक देगा कि सुर मैंने बिखेरे, किसी को कोई एतराज हो तो दर्ज करवा ले। हमें ना तो चंपा चाचा के दावे पे एतराज ना देवी ताऊ की ताल पे एतबार। हम तो सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि ‘कुछ तो लोग कहेंगे का लोकार्पण जिस किसी ने किया। सोच के किया। समझ के किया। जांच के किया। परख के किया। हो सकता वो किसी की बेहूदा-बेतुकी कहाई का शिकार हुआ हो।

ऐसा होने पर पिडि़त पक्ष एक-दो बार थोड़ा मायूस होता है। ऐसे में उसे बड़े-सयानों के वो बोल याद आते हैं जो उन्होंने सीख-सलाह के रूप में कहे थे। वो कहते हैं-‘यदि आलोचना में सच्चाई है तो उस कमी को दूर करने में जुट जाओ और अगर कोई खामखा की बकवास कर रहा है तो उसे हवा में उड़ा दो। उस की बकवास पे ध्यान इ ‘ मति दो। उसकी बकबक पे मुस्करा द्यो। वो दो दिन बकेगा। चार दिन बहकेगा। हफ्ता भर खिजेगा। महिने भर बिलबिलाएगा उसके बाद खुद-ब-खुद फुस्स हो जाएगा।

कई बार होता कुछ और है, दिखाया कुछ और जाता है। फूल को चौसरा बना कर पहनाने का रिवाज पुराना है। सुरमिन्नी को सूतली बम कहके फोडऩा लोगों की आदत बनता जा रहा है। किसी ने ‘क के सुर बहाए तो भाई लोगों ने पूरा ‘ककहरा परोस दिया। इस की पलट मे कई लोग समेटने में विश्वास रखते हैं। कई लोग बिखेरा करते है तो समझदार लोग उनकी गुस्ताखियों को नजरअंदाज करने को ज्यादा तवज्जोह देते हैं। उनने खेले को अपने तक चिपका के रखा था जबकि देश-दुनिया का ऐसा कोई क्षेत्र नही जहां खेला ना होता हो। खेल हर क्षेत्र में खेले जाते हैं। घर के आंगन से लेकर सदन तक में खेले मगर उनने इनको अपने तक समेट के रखा। अब, जब मिस्टर इंडिया का पर्दापण हुआ तो लगा कि चारों ओर खेला होबे.. खेला होबे..।

खेले भांत-भांत के। खेले विभिन्न प्रजातियों के। इंडोर गेम से लेकर लखी मैदान वाले खेले। क्या फुटबॉल और क्या किरकिट। क्या हॉकी और क्या कबड्डी। हर खेले के अपने खिलाड़ी। हर खेल के अपने दर्शक। आज कल भाईसेणों ने रिश्तों को भी खेला बना के रखा है। जब चाहा खेला-जब चाहा छोड़ दिया। सियासत रूपी खेले ने तो सारे खेलों को पीछे धकेल दिया। जिंदगी है खेल-कोई पास कोई फेल.. खिलाड़ी है कोई.. अनाड़ी है कोई..। सियासत में सारे खिलाड़ी ही खिलाड़ी। एक से बढ के एक। आले से आले और कुछ नही तो हादसे को ही खेला बना दिया। बंगाल के जादू के बारे में सुना ही था अब दिख भी रहा है। जादू चलेगा या फुस्स होगा यह मामला अलग है। फिलहाल तो खेल चल ही रहा है।

इतना कुछ पढने-देखने के बाद सुधि पाठक समझ गए होंगे कि सूई बंगाल की ओर घूम रही है। वाकई में घूम भी रही है। कैसा चमत्कार हुआ ना कि हजारों की भीड़ को चीरता हुआ मिस्टर इंडिया आया और दीदी के पांव पर वार करके गायब हो गया। कोई कहता है यह जादू है-कोई कहता है खेला है। सच्चाई क्या है यह कै तो दीदी जाणे कै जै श्रीराम..। पुलिस की समझ के बाहर। चुनाव आयोग चक्कर में। इसे कहते हैं सियासी खेला, जो अभी शुरू हुआ है। कब और कहां जाकर थमेगा। कोई कुछ नहीं कह सकता। पश्चिम बंगाल में पिछले चार-पांच दिनों से ‘हमले-हादसे का खेला चल रहा है। नंदी ग्राम में रोड़ शो के दौरान वहां की सीएम ममता बनर्जी के पांव में चोट लग गई।

उनका आरोप है कि कुछ लोगों ने हमला किया जबकि प्रत्यक्षदर्शी और परिस्थितिजन्य सबूत इसे हादसा बता रहे हैं। कहते हैं कि कार का दरवाजा रोड पर लगे एक खंभे से टकरा गया जिससे दीदी के पैर में चोट लग गई। उधर दीदी की बातना मानें तो कैसे। यह भी कैसे मान ले कि हजारों की भीड़ को चीरकर चार लोग आएंगे और उनकी टांग पे चोट पहुंचा के भाग जाएंगे। किसी को वार ही करना होता तो शरीर के अन्य हिस्सों पे करता।

यह भी हैरत कि हमलावर दिखाई भी नहीं दिए। मानों मिस्टर इंडिया बन के आए थे। चुनाव आयोग के निर्देश पर की गई जांच में भी हमले के सबूत सामने नहीं आए। इसकी पलट में दीदी अस्पताल में भर्ती हो गई। प्लास्टर हो गया। अस्पताल से छुट्टी मिल गई। प्लास्टर भी उतर गया। इसे कहते हैं शुद्ध सियासी खेला। हमें इस बात की तसल्ली कि खेला अभी और चलना है।