राजस्थान विधानसभा में सड़कों पर राजनीति – गड्ढे किसकी विरासत ?

Politics on the streets in Rajasthan Assembly - whose legacy are the potholes?
Politics on the streets in Rajasthan Assembly - whose legacy are the potholes?

जयपुर। राजस्थान विधानसभा में जिलों के खत्म करने का मुद्दा विधानसभा में गुरुवार को छाया रहा। स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से इस पर चर्चा की गई। सदन में पूर्ववर्ती गहलोत सरकार की पिछली प्रशासनिक रणनीतियों के आकलन और वर्तमान सरकार की प्राथमिकताओं के टकराव का केंद्र बन चुका है। कांग्रेस विधायक इस फैसले को “पिक एंड चूज” नीति करार दे रहे हैं, तो वहीं सरकार इसे प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक कदम बता रही है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में यह फैसला केवल सुशासन के लिए लिया गया, या इसके पीछे भी राजनीतिक समीकरणों की बाज़ीगरी है?

सत्ता का समीकरण और जिला नीति

गहलोत सरकार के कार्यकाल में राजस्थान को 50 जिलों की सौगात मिली थी, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण चुनावी रणनीति का हिस्सा मानी गई थी। लेकिन अब भाजपा सरकार के आने के बाद कुछ जिलों को खत्म करने का फैसला यह दर्शाता है कि यह केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक फैसला भी है। कांग्रेस विधायकों का आरोप है कि जिलों के पुनर्गठन में तटस्थ प्रशासनिक आधार के बजाय “राजनीतिक लाभ-हानि” का गणित ज्यादा चला है।

हंगामे की राजनीति बनाम ठोस फैसले

विधानसभा में कांग्रेस का आक्रामक रुख दिखाता है कि वे पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के फैसलों की निरंतरता चाहते हैं, जबकि भाजपा इसे नए सिरे से परिभाषित करना चाहती है। कांग्रेस विधायक सुरेश मोदी और रामकेश मीणा का कहना है कि पंवार कमेटी ने सभी जिलों का दौरा किया, लेकिन नीमकाथाना को नजरअंदाज किया गया, जिससे पूर्वाग्रह की बू आती है। यह सवाल महत्वपूर्ण है कि यदि सरकार प्रशासनिक तर्क दे रही है, तो क्या सभी जिलों के लिए समान प्रक्रिया अपनाई गई?

सड़कों पर राजनीति : गड्ढे किसकी विरासत?

उधर, सड़कों की दुर्दशा पर बहस छिड़ी, तो उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने इसे पिछली सरकार की “विरासत” बताकर पल्ला झाड़ लिया। यह बयान सत्ता परिवर्तन के साथ जुड़ी सामान्य राजनीतिक कवायद लगती है, क्योंकि सत्ता में आते ही हर सरकार पिछली सरकार की नाकामियों को गिनाने में ज्यादा दिलचस्पी लेती है बजाय ठोस समाधान देने के। सवाल यह है कि यदि गड्ढे विरासत में मिले थे, तो क्या जनता को समाधान भी इसी गति से मिलेगा, या सिर्फ बयानबाजी ही चलेगी?

साइबर क्राइम और विपक्ष पर तंज

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने जब साइबर क्राइम थानों की उपयोगिता पर सवाल उठाया, तो स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने इसे नेता प्रतिपक्ष के क्षेत्र (मेवात) से जोड़ते हुए हमला बोला। यह बयान बताता है कि अब कानून-व्यवस्था के मुद्दे भी राजनीतिक खेमों में बंट चुके हैं। विपक्ष साइबर क्राइम थानों को “नाकाम” बता रहा है, तो सरकार इसे अपराध के क्षेत्रीय पहलुओं से जोड़कर अपनी ज़िम्मेदारी को सीमित करने की कोशिश कर रही है।