
-गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली। संसद के चालू सत्र में सांसदों द्वारा कई दशकों से लम्बित देश की प्रमुख तीन भाषाओं भोजपुरी, राजस्थानी और भोती को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग फिर से ज़ोरदार ढंग से रखी जा रही है। बिहार विधानसभा के नवम्बर में होने वाले चुनाव से पहले केन्द्र सरकार पर इसके लिए ज़ोरदार दवाब बढ़ाकर संसद के वर्तमान चालू सत्र में पारित करने का प्रयास किया जा रहा है।
भोजपुरी राजस्थानी और भोती भाषा को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के सम्बन्ध में मानसून सत्र के पहले ही दिन 14 सितम्बर को लोकसभा में भाजपा के सांसद और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल ने पुरज़ोर माँग रखी थी।इसी क्रम में आज शनिवार को राज्य सभा में भी सांसद नीरज शेखर द्वारा भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने की आवाज़ बुलंद की गई । नीरज शेखर पूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के सुपुत्र है।
सांसद नीरज शेखर ने कहा कि बीस करोड़ भारतीयों और कई देशों में क़रीब दस करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली और नेपाल एवं मोरिशस में मान्यता प्राप्त भोजपुरी को तुरन्त संवैधानिक मान्यता प्रदान की जाए।
राजस्थान के सांसदों की खामोशी क्यों?
इधर इस मामले में राजस्थान के सांसदों की खामोशी से सभी विस्मय में है। प्रदेश के सांसदों से इस बारे में बात करने पर वे कहते है कि राजस्थान के सांसदों ने दोनों सदनों में अनेक बार राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की माँग उठायीं है। वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, जल शक्ति मन्त्री गजेन्द्र सिंह शेखावत,संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, पूर्व राज्य मन्त्री पी पी चौधरी सहित प्रदेश के सभी पक्ष विपक्ष के सांसद एक स्वर में कई बार यह माँग रख चुके हैं। इस बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह एवं मौजूदा गृह मन्त्री अमित शाह को ज्ञापन देकर भी अनुरोध किया गया है,लेकिन पिछले छह दशकों से की जा रही यह माँग अभी भी पूरी होनी है।
जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
इस बीच जोधपुर के पूर्व महाराजा, पूर्व सांसद और राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष गजसिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख भारत में दस करोड़ से भी अधिक और विदेशों में भी करोडों लोगों द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा को संविधानिक मान्यता देने का अनुरोध किया है। गजसिंह जोधपुर ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री को लिखा है कि राजस्थान विधान सभा ने इस बारे में वर्ष 2003 में ही संकल्प पारित कर केन्द्र को भिजवाया हुआ है। उन्होंने पत्र में अवगत कराया कि साहित्य अकादमी बहुत पहले ही राजस्थानी को मान्यता दे चुकी है। इसी प्रकार कई विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में राजस्थानी की पढ़ाई हो रही है। गजसिंह ने पत्र में बताया कि पदमश्री सीताराम लालस के ग्यारह वॉल्यूम में मौजूद राजस्थानी भाषा शब्द कोष से हिन्दी भाषा और साहित्य को बहुत लाभ हुआ है।