
पीएम बोले- ढेर सारी किताबों की जरूरत नहीं रहेगी, अब इन्क्वायरी, डिस्कवरी, डिस्कशन और एनालिसिस पर जोर दिया जाएगा
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज हायर एजुकेशन पर हुए कॉन्क्लेव में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि 3-4 साल के व्यापक विचार-विमर्श और लाखों सुझावों के बाद एजुकेशन पॉलिसी मंजूर की गई है। अलग-अलग क्षेत्र और विचारधाराओं के लोग अपनी राय दे रहे हैं। ये हेल्दी डिबेट है, ये जितनी ज्यादा होगी, उतना फायदेमंद होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद देश के किसी भी वर्ग से ये बात नहीं उठी कि किसी तरह का भेदभाव है। ये एक इंडिकेटर भी है कि लोग वर्षों से चली आ रही शिक्षा व्यवस्था में जो बदलाव चाहते थे, वो उन्हें मिले हैं। कार्यक्रम में एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और कई यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर भी शामिल हुए। ट्रांसफॉर्मेशनल रिफॉर्म्स इन हायर एजुकेशन अंडर नेशनल एजुकेशन पॉलिसी की थीम वाले इस इवेंट को यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर लाइव टेलीकास्ट भी किया गया।
बदलाव के लिए पॉलिटिकल विल जरूरी
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतना बड़ा रिफॉर्म जमीन पर कैसे उतारा जाएगा। इस चैलेंज को देखते हुए व्यवस्थाओं को बनाने में जहां कहीं कुछ सुधार की जरूरत है, वह हम सभी को मिलकर करना है। आप सभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में सीधे तौर पर जुड़े हैं। इसलिए आप सब की भूमिका बहुत अहम है। जहां तक पॉलिटिकल विल की बात है, मैं पूरी तरह कमिटेड हूं, आपके साथ हूं।
नेशनल वैल्यूज के साथ गोल्स तय किए
हर देश अपनी शिक्षा व्यवस्था को नेशनल वैल्यूज के साथ जोड़ते हुए, नेशनल गोल्स के अनुसार रिफॉम्र्स करते हुए आगे बढ़ता है, ताकि देश का एजुकेशन सिस्टम अपनी वर्तमान और आने वाली पीढिय़ों का फ्यूचर तैयार करे। भारत की पॉलिसी का आधार भी यही सोच है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत की फाउंडेशन तैयार करने वाली है।
नई नीति में स्किल्स पर फोकस
21वीं सदी के भारत में हमारे युवाओं को जो स्किल्स चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस पर विशेष फोकस है। भारत को ताकतवर बनाने के लिए, विकास की नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए इस एजुकेशन पॉलिसी में खास जोर दिया गया है। जब भारत का स्टूडेंट चाहे वो नर्सरी में हो या फिर कॉलेज में, तेजी से बदलते हुए समय और जरूरतों के हिसाब से पढ़ेगा तो नेशन बिल्डिंग में कंस्ट्रक्टिव भूमिका निभा पाएगा।
अब इनोवेटिव थिंकिंग पर जोर
बीते कई साल से हमारे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव नहीं हुए, जिससे समाज में क्यूरोसिटी और इमेजिनेशन की वैल्यू को प्रमोट करने के बजाय भेड़ चाल को प्रोत्साहन मिलने लगा था। कभी डॉक्टर तो कभी इंजीनियर तो कभी वकील बनाने की होड़ लगने लगी। इससे बाहर निकलना जरूरी था। हमारे युवाओं में क्रिटिकल और इनोवेटिव थिंकिंग विकसित कैसे हो सकती है, जब तक शिक्षा में पैशन और परपज ऑफ एजुकेशन न हो।
आज होलिस्टिक अप्रोच की जरूरत
बीते कई साल से हमारे एजुकेशन सिस्टम में बदलाव नहीं हुए, आज गुरुवर रबींद्रनाथ की पुण्यतिथि भी है। वो कहते थे कि उच्चतर शिक्षा हमारे जीवन को सद्भाव में लाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का वृहद लक्ष्य इसी से जुड़ा है। इसके लिए टुकड़ों में सोचने की बजाय होलिस्टिक अप्रोच की जरूरत है। शुरुआती दिनों में सबसे बड़े सवाल यही थे कि हमारी शिक्षा व्यवस्था युवाओं को क्यूरोसिटी और कमिटमेंट के लिए मोटिवेट करती है या नहीं? दूसरा सवाल था कि क्या शिक्षा व्यवस्था युवाओं को एम्पावर करती है। देश में एक एम्पावर सोसाइटी के निर्माण में मदद करती है। आप इन सवालों और इनके जवाबों से भी संतुष्ट हैं। पॉलिसी बनाते समय इन सवालों पर गंभीरता से काम हुआ।