
वसुंधरा राजे अपने हीं अंदाज में राजनीति करने वाली नेत्री रहीं हैं उन्होंने हमेशा बिना किसी के दबाव में आए अपनी ही शर्तों और सिद्धांतों पर राजनीति की है। उन्होंने अर्नगल राजनीति या बयानबाजी कभी नहीं की। उन्होंने हमेशा राजनीति में सभ्यता और मर्यादा बनाए रखी।
जयपुर। कोविड-19 जैसी महामारी संकट के समय में भी जहां राजस्थान की राजनीति खासी चर्चा में वहीं इन सब चीजों के इतर राज्य की पूर्व (दो कार्यकाल) मुख्यमंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे भी अलग वजहों से चर्चा में हैं। राजे की अलग अलग कई कारणों से चर्चा हो रही है। लेकिन, राजस्थान की राजनीति में चल रहे उठापटक के बीच उनका हालांकि, उनका कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। वह इन सब बातों से बेपरवाह दूर से पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर रखे हुए हैं और अपना निजी जीवन अपने ही अंदाज में निर्वाह कर रही हैं। लेकिन पार्टी की अंर्तकलह के अलावा कोविड-19 कारण वह काफी चर्चा में रहीं।
पोस्टर वॉर, समर्थक कार्यकर्ताओं ने दिखाया दम
वसुंधरा राजे को लेकर गत माह उनके निर्वाचन क्षेत्र झालरापाटन में उनके खिलाफ एक पोस्टर लगा था जिसमें उन्हें और उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह को गुमशुदा बताया गया था। यह पोस्टर मीडिया की सुर्खी बन गया। भाजपा की आंतरिक जांच में यह पाया गया कि यह पार्टी के ही लोगों की एक सोची समझी साजिश है ताकि राज्य में उनके प्रभाव को कम किया जा सके। पार्टी की आंतरिक रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि दूसरी कतार के नेताओं के समर्थकों को भी वसुंधरा राजे का राज्य की राजनीति में प्रभाव अब रास नहीं आ रहा है। वह चाहते हैं कि वसुंधरा राजे को साइड लाइन करके ही दूसरी श्रेणी के नेताओं को आगे लाया जा सकता है। लेकिन हुआ इसके उलट पूरे प्रदेश में भाजपा के वसुंधरा समर्थक कार्यकर्ता पोस्टर साजिश के खिलाफ एक हो गए ओर उनका वसुंधरा राजे के प्रति विश्वास ओर बढ़ गया और उनकी राजनीतिक जमीन और मजबूत हो गई है।
क्वारंटाइन होना पड़ा
वसुंधरा राजे उस वक्त भी चर्चा में आ गईं थी जब भारत में कोविड-19 प्रकोप के शुरुआती दिनों में उन्हें क्वारेंटाइन होना पड़ा था। भारतीय मूल की लंदन निवासी सिंगर कनिका कपूर के पॉजिटव आने के बाद हंगामा मच गया। क्योंकि, लखनऊ में जिस पार्टी में कनिका कपूर शामिल हुईं थी उस पार्टी में वसुंधरा राजे ओर उनके सांसद बेटे दुष्यंत सिंह भी मौजूद थे। इसके तुरंत बाद वसुंधरा राजे को भी क्वारेंटाइन होना पड़ा था।
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी किया समर्थन
वसुंधरा राजे भले राजस्थान की राजनीति की मजबूत स्तम्भ हैं लेकिन उन्होंने अर्नगल राजनीति या बयानबाजी कभी नहीं की। उन्होंने हमेशा राजनीति में सभ्यता और मर्यादा बनाए रखी। हाल ही में कोविड-19 के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विपक्ष के नेताओं से भी सुझाव मांगे थे इसके लिए उन्होंने बकायदा विपक्ष के नेताओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संवाद किया था। इस फेहरिस्त में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया के अलावा वसुंधरा राजे भी थीं। इस दौरान वसुंधरा राजे ने राजनीति से उपर उठकर अशोक गहलोत के प्रयासों की सराहना करते हुए उनके प्रयासों की तारीफ की थी और राजनीतिक स्तर पर हर संभव सहयोग करने की भी बात कही थी।
बिना किसी के दबाव में आए अपनी ही शर्तों पर राजनीति की
वसुंधरा राजे अपने हीं अंदाज में राजनीति करने वाली नेत्री रहीं हैं उन्होंने हमेशा बिना किसी के दबाव में आए अपनी ही शर्तों पर राजनीति की है। राजस्थान में ऐसा भी दौर आया जब उन्होंने सीधे पीएम मोदी ओर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को चुनौती दे डाली। अशोक परनामी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा के बाद केंद्रीय नेतृत्व यानि पीएम मोदी ओर अमित शाह, गजेंद्र सिंह शेखावत (वर्तमान में जोधपुर से सांसद और कंद्रीय मंत्री हैं) को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते थे। राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के मुद्दे पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच 73 दिन तक रस्साकशी के बाद आखिर जीत वसुंधरा राजे की हुई और उनकी मर्जी मुताबिक राज्यसभा सांसद मदन लाल सैनी को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी गई। उस वक्त यह भी खबरें भी आईं कि अमित शाह ने वसुंधरा राजे के इस अप्रत्याशित रुख़ पर सख़्त ऐतराज़्ा जताया। उन्होंने वसुंधरा के दूत बनकर दिल्ली आए कई मंत्रियों से मिलने तक से इनकार कर दिया। ऐसा पहली बार हुआ मोदी-शाह को पार्टी में किसी के आगे झुकना पड़ा।