रंगीलो राजस्थान री रंगीली पगड़ी व रोबीलो साफो

जयपुर। अन्नु /शर्मिला

राजस्थान अपनी आन, बान, शान ,शौर्य, साहस, कुर्बानी, त्याग, बलिदान तथा वीरता के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है। राजस्थान अपनी शानदार संस्कृति व गौरवमयी इतिहास के लिए जाना जाता है। राजस्थान की अनेको विशेषताओं में से एक है -यहाँ की राजस्थानी वेशभूषा जो विश्व भर के लोगो को अपनी और आकर्षित करती है और यही कारण है कि देश विदेश से आने वाले पर्यटक राजस्थानी वेशभूषा पहनने और इसे खरीदने से खुद को रोक नहीं पाते और इसी वेशभूषा में चार चाँद लगाता है – राजस्थानी साफा जिसके बिना राजस्थानी वेशभूषा अधूरी है। राजस्थान के वीरों के शौर्य से जुड़ा राजस्थानी साफा आज भी अपनी पहचान और रुतबे को बरकरार रखे हुए है।राजस्थानी पगड़ी जो राजस्थान और राजस्थानियों की सिर्फ पहचान ही नहींं बल्कि इसे पहनकर वे गौरवान्वित महसूस करते है।

क्यों पहनते हैं पगड़ी

राजस्थान में पगड़ी पहनना मान-स्वाभिमान का प्रतीक माना जाता रहा है। यहां पर गरम मौसम की मार सबसे अधिक है जिसमें नौ महीनें लू के थपेड़ों और तेज धूप के कारण यहां का तापमान काफी अधिक रहता है जिससे बचने के लिए भी पगड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। ये भी कहा जाता है कि जिस तरह शादीशुदा महिलाओं का ख़ुले सिर रखना अश़ुभ माना जाता है ठीक उसी प्रकार पुरूषों का भी अपने बड़े-बुर्जुगों के सामने खुले सिर जाना बड़ो का अपमान है।
पगड़ी की अनोखी बात यहा भी है कि हमारे देश में चाहे हिन्दू शासक रहें हो या मुस्लिम शासक सबके सिर पर इसने ताज बन कर राज किया है। यहाँ के लोग 1,000 से भी अधिक प्रकार से पगड़ी बांधते है और तो और कहा जाता है कि यहां हर 1 किमी पर पगड़ी बांधने का तरीका बदल जाता है। यहाँ के लोग रंगीन कपड़ो के खासा शौक़ीन होते है। समय के साथ लोगों में परिवर्तन आया है पर अपनी आन-बान-शान को सिर पर रख अपनी परंपरा का ध्वज आज भी गर्व के साथ लहराते है जो लोगों को अकर्षित करता है और जिससे इसकी पहचान आज के दौर में भी कायम है।

जातियों की पहचान भी करवाती पगड़ी

पगड़ी पहने हुए व्यक्ति को दूर से पहचाना जा सकता है कि शख्स किस जाति से संबंध रखता है। राईका, रेबारी हमेशा लाल फूल के साफे को ज्यादा अहमियत देते है ,दूसरी तरफ अगर हम बिश्नोई समाज की ओर रूख़ करे तो उन्होंने श्वेत रंग को काफ़ी महत्वपूर्ण माना है। कुम्हार , माली और व्यापारी की पहली पंसद लाल, गुलाबी और केसरियां रंग की होती है। इतिहास में देखा जाएं तो पचरंगी, लहरियां, किरमिची, सोने से बनी पगड़ियो को राजाओं के शीश की शान माना जाता था। वहीं शोक प्रकट करने के लिए सफेद रंग का साफा धारण किया जाता था जिसका यहां के निवासी आज भी पालन करते है। वहीं नीली, ख़ाकी और महरून रंग की पगड़ी को सहानुभूति और सांत्वना देते वक्त पहनी जाती है।

पगड़ियों का त्योहारों से संबंध

वैसे तो हर त्योहार अपने आप में ही खास होता है और इन्हे और भी ज्यादा स्पेशल बनाती है विभिन्न प्रकार की पगड़ियां जो हर त्योहार पर अपना खास महत्व रखती है। लाल रंग के किनारे वाली काली पगड़ी दिवाली के समय, लाल-सफेद रंग की पगड़ी सावन में ,चटक केसरियां पगड़ी दहशहरे पर , पीली पगड़ी बसंत पंचमी पर पहनी जाती है।हलकी गुलाबी रंग की पगड़ी शरद पूर्णिमा की रात को पहनी जाती है।

कैसे बनी खास ओर आम की पसंद और पहचान

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के पहले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले सें लोगों को संबोधित किया था तब उनकी वेशभूषा में शामिल सिर पर पहनी हुई उनकी पगड़ी ने काफी सुर्खियां बटोरी थी जिसे राजस्थान से बुलाए गए लोगों द्वारा पहनाया गया था, जिससे लोगों में इसको पहनने का जूनून और बढ़ गया। साथ ही धारावाहिक जैसे बालिका वघू, न आना इस देश लाडो के माध्यम से पगड़ी को आम लोगों में नई पहचान मिली जिससे इसका चलन सामान्य हो गया और शादीयों में पूरी बारात इसको अपनी वेशभूषा में शामिल कर राजस्थानी पहनावे का मजा उठाने लगी है। राजस्थान के कारीगरों को देश के अलग-अलग कोने से साफे बांधने के लिए बुलाया जाने लगा जिससे इसकी मागं अपने आप ही बढ़ती जा रही है।

शान और सम्मान का प्रतीक हैं पगड़ी और साफा :जितेंद्र

उन्होंने बताया की अलग अलग समाज में पगड़ियां अपना अलग महत्व रखती है। राजस्थान राजपूतो का गढ़ माना जाता है इसलिए राजपूती पगड़ियों का यहाँ एक अलग ही बोल बाला है। राजपूती पगड़ियां 9 मीटर की होती वहीं बनिया औ ब्राह्मण समाज की पगड़ियां 5 -6 मीटर में बन जाती है। पहले शादी में केवल दूल्हा ही साफा बांधता था लेकिन अब साफे का प्रचलन इतना बढ़ गया है कि शादी में आने वाला हर एक मेहमान चाहे वह वर पक्ष से हो या फिर वधु पक्ष से हर कोई साफा पहनता है। आजकल सरकारी समारोह में ,कॉन्फरेंस में व किसी को सम्मानित करने के लिए भी पगड़ी पहनाई जाती है।जितेंदर अग्रवाल ने पगड़ियों के प्रति लोगो की बढ़ती रूचि का श्रेय टेलीविज़न और सोशल मीडिया को दिया।


सिर्फ सीजन में होती है बिक्री :राहुल सैनी

उन्होंने कहा की आजकल पगड़ी बांधना शौक बन गया है ,राजस्थान में आने वाले हज़ारों पर्यटक इसे पहनना काफी पसंद करते है । उन्होने पगड़ी बनाने के कारोबार को सीजनल बताया ,शादियों व चुनाव के दौरान यह कारोबार चरम पर रहता है ; बाकी समय में कारोबार ठप तो नहीं होता परन्तु इसमें मंदी आ जाती है। पहले कुछ ही रंगो की पगड़ी आती थी परन्तु वर्तमान में इसमें काफी रंग और प्रिंट शामिल हो गए है । एक पगड़ी की कीमत 100 रूपए से लेकर हज़ारों तक होती है ,कीमत इस बात पर निर्भर करती है की पगड़ी में इस्तेमाल होने वाला कपडा कौन सा है। उन्होंने बताया की पगड़ी की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी है की दूसरे राज्यों में भी उन्हें पगड़ी बांधने के लिए आमंत्रित किया जाता है।