त्याग दबाव से नहीं स्वभाव से होना चाहिए : साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा

नागौर। जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जयमल जैन पौषधशाला में गुरुवार को साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने प्रवचन में कहा कि त्याग की महिमा अपरंपार है। त्याग से व्यक्ति महान बनता है। त्याग वृत्ति मनुष्य को पूजनीय बनाती है। भोग के समान दुख नहीं और त्याग के समान सुख नहीं है। त्याग से आत्मा का उत्थान होता है। जिस प्रकार खाने की अपेक्षा खिलाने में ज्यादा आनंद आता है।

उसी प्रकार भोग के बजाय त्याग में अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है। महापुरुष वही कहलाता है जिसने देश, समाज के लिए अपनी इच्छाओं का बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि त्याग दबाव से नहीं स्वभाव से किया जाना चाहिए। दबाव में की गई धर्म आराधना बिना भूख के भोजन समान निरर्थक है। एक आदर्श त्यागी स्वयं अपनी इच्छा एवं रुचि से उपलब्ध भोग-उपभोग की सामग्रियों को सामर्थ्य होते हुए भी छोड़ देता है। वस्तु अनित्य होने से एक न एक दिन छूटती ही है।

लेकिन छूटने से पहले ही छोड़ने वाला सच्चा साधक कहलाता है। व्रत बंधन नहीं सुरक्षा है। जिस प्रकार वमन किया हुआ पदार्थ पुन: ग्रहण नहीं किया जाता है। उसी प्रकार त्याग की हुई वस्तु को पुन: भोगने की इच्छा भीतर में भी नहीं होनी चाहिए। प्रवचन की प्रभावना घेवरचंद, फतेहचंद छोरिया परिवार द्वारा वितरित की गयीं।

जय-जाप की प्रभावना एवं प्रश्नोत्तरी के विजेताओं को पुरस्कृत करने के लाभार्थी रतनीदेवी, मोतीलाल, कंवलमल ललवानी परिवार रहें। संचालन संजय पींचा ने किया। प्रवचन प्रश्नों के उत्तर महावीरचंद भूरट, महेश गुरासा, प्रेमलता ललवानी एवं रीता ललवानी ने दिए। आगंतुकों के भोजन का लाभ हस्तीमल, मूलचंद ललवानी परिवार ने लिया। इस मौके पर चंचलदेवी ललवानी, शोभा चौरड़िया, सरोजदेवी पींचा, ललिता छल्लानी आदि मौजूद रहें।

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