
उन्होंने तो अपनी खीज बनाम आक्रोश बनाम गुस्सा उगल दिया मगर हमारे सामने सवाल जस का तस। जब एक सवाल उठा है तो दूसरा भी उठेगा, उसके बाद तीसरे-चौथे को भी रोकने वाला कोई नही। कई बार पूरक प्रश्न भी-ठाठे मारते है। एक का जवाब तो मिला ही नहीं कि दूसरा तैयार। सवाल तो यहां भी है। खूब सारे हैं। भतेरे हैं। सब पे मगजमारी करना संभव नहीं, पण खास-खास को नजर अंदाज भी नहीं किया जा सकता। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
आगे बढने से पहले इस बात का खुलासा करना जरूरी कि हमें नाजायज सवाल खड़े करने का कत्तई शौक नही है। आप सवाल कीजिए। ठाठ से कीजिए। बाठ से कीजिए। आन-बान और शान के साथ कीजिए। सवाल करना हमारा अधिकार है। जवाब मिले या ना मिले। सही मिले-गलत मिले या गोल मोल मिले यह बात दीगर है। कई बार जवाब मिलता ही नहीं है। कई बार जवाब देने के लिए समय मुकर्रर किया जाता है। हांडी के चावल के रूप में नोटिस को ही ले ल्यो। किसी के नाम नोटिस जारी होने पर उसे जवाब देने के लिए मोहलत दी जाती है। कहीं तीन दिन का समय तो कही हफ्ते-पंद्रह दिन का। कई बार नोटिस को चुनौती देते हुए मामला कोर्ट में पहुंचा दिया जाता है। इसकी सब से ताजा मिसाल प्रदेश कांगरेस में चल रही उठापठक। एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गुट-दूसरी तरफ पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की पलटन। दोनों तरफ तलवारें तनी हुई। पार्टी मोरचे पर भिडंत। मीडियागिरी उफान पर और मामला कोर्ट में। आप तो जानते ही हैं कि कोर्ट में कितने सवाल-जवाब होते हैं।
एक बार फिर बता दें कि हम सवालों के विरोधी नहीं मगर जहां भी-जब कभी भी नाजायज सवाल किए जाते है तो अफसोस जरूर होता है। झगड़ा गहलोत-पायलट का और पिस रही है राज्य की जनता। किसी का विधायक किसी के बाड़े में किसी का एमएलए किसी की कैद में। पिस रही है जनता। भाड़ में जाए तुम्हारी गुटबंदी-भाड़ में जाए तुम्हारा झगड़ा। हमें हमारी समस्याओं के समाधान की जरूरत है और तुम लोग बाडा-बाडा खेल रहे हो। जनता में यह सवाल भी गहराता जा रहा है। कांगरेसजनों ने दूसरे सवाल सुलगाए, सो अलग। हथाईबाज वही सवाल सींच रहे हैं, जिन के बीज कांगरेस के नेतों ने बोए। हथाईबाज उन्हीं सवाल रूपी पौधों को पानी पिला रहे हैं जिन का रोपण खुद कांगरेसी नेतों ने किया था। हमारा सवाल ये कि सचिन कौन? सवाल ये कि सबसे बड़ा सहनशील कौन? सवाल और भी खड़े हो सकते हैं। सवाल अन्य भी खड़े किए जा सकते हैं। ऐसा हुआ तो कैलेंडर के पन्ने बदल जाणे हैं। हो सकता है कैलेंडर बदल जाए। हथाईबाजों ने कैलेंडर और कैलेंडर के पन्ने बदलने का जिक्र पहले भी किया था। कुछ लोगों ने उसपे सवाल खड़े किए थे। कहा आप क्या कहना चाहते हैं। पन्ने बदलने से क्या मतलब और कैलेंडर बदलने से क्या। जवाब सीधा है।
इशारा भी सादा है। अधिकतर लोग समझ गए जो लोग नहीं समझे उनके लिए हम है ना। हमारा सवाल ये कि जिन लोगों को हम ने अपना प्रतिनिधि बनाकर विधानसभा में भेजा वो इन दिनों कहां है और क्या कर रहे है। इस के अपने जवाब। आप ने अपना एमएलए चुना उन्होंने अपना। सोचा था कि वो वहां जाकर हमारी अवाज बनेंगे। हमारी समस्याएं उठाएंगे। पर सब कुछ उलटा हो रिया है। हमारा विधायक राज्य सभा चुनावों के दौरान पिछले माह बाड़े में रहा। खूब मलगोजे मारे। होटलों-रिसोर्टों का आनंद उठाया। चुनाव के बाद बाड़े-थोड़े दिन के लिए खुले और इन दिनों फिर बंद हो गए। कोई गहलोत के बाड़े में-कोई सचिन के। हम समस्याएं भुगत रहे हैं और वहां सलीम-अनारकलीगिरी हो रही है। जनता पानी के लिए तरस रही वो बिसलेरी के तरणताल का आनंद ले रहे हैं।
हम कोरोना की आग में जल रहे हैं और वो कितने आदमी थे का मजा ले रहे हैं। गरीब भूखा मर रहा है-वो इटेलियन खाने का लुत्फ उठा रहे हंै। बड़ी शरम की बात है। हमारा दूसरा सवाल ये कि देश की सबसे ज्यादा सहनशील पार्टी कौन सी? इसके जवाब में इशारा कांगरेस की ओर। आलाकमान ने पार्टी को रसातल पे ला दिया। नीट तो तीन राज्य वापस आए थे उसमें से एमपी फिसल गया। राजस्थान में गहलोत-पायलट में तलवारें खिंची हुई और आलाकमान तमाशबीन बना बैठा है। दल साफ तौर पर बंटा-बंटा नजर आ रहा है। काबिल युवा नेतों की कदर नही। अवधि पार नेतों की भरमार।
कार्यकर्ता इतने सहनशील कि उन्हें ढो रहे हैं। ले देकर परिवार तेरा आसरा। कैसी विडंबना है। हमारा तीसरा और महत्वपूर्ण सवाल ये कि सचिन कौन? हम सचिन तेंदुलकर की नहीं वरन सचिन पायलट की बात कर रहे हैं जो राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और कांगरेस अध्यक्ष रह चुके हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गुस्सा कुछ और कहता है-खीज कुछ और। उनके बारे में वो कहते हैं सचिन निकम्मा है, नकारा है, धोखेबाज है, दगाबाज है। इससे पहले वो उन्हें गद्दार बता चुके हैं। अब सवाल ये कि वो गद्दार हैं तो पांच-छह-सात साल तक प्रदेश कांगरेस अध्यक्ष कैसे रहे। वो नकारा और निकम्मे हैं तो डेढ साल तक डीसीएम कैसे रहे। वो धोखेबाज-दगाबाज हैं तो पार्टी उन्हें झेल क्यूं रही है। हथाईबाज सब कुछ देख रहे हैं। बाड़े देखे-बाडाबंदी देखी। तंज सुने। ताने सुने। खीज देखी। झुंझलाहट देखी मगर सवाल जस का तस-सचिन कौन !