8928. गुरू तो ऐसा चाहियै

  • गुरू तो ऐसा चाहियै, ज्यों सिकलीगर होय।
  • जनम-जनम का मोरचा, छिन में राळै धोय।।

गुरू यानी शिक्षक तो ऐसा होना चाहिए, जैसा एक सिकलीगर होता है। जिस प्रकार सिकलीगर लगे हुए जंग को धो डालता है, उसी प्रकार गुरू भी शिष्य के अज्ञान को धो डालने वाला होना चाहिए। प्राचीनकाल में एक आचार्य हुए जिनके शिष्य का नाम ब्रहृादत्त था। ब्रहृदत्त आचार्य के पास शिक्षा ग्रहण कर रहा था। एक बार आचार्य और ब्रहृदत्त नदी पर स्नान के लिए निकले। आगे-आगे आचार्य चल रहे थे और पीछे-पीछे ब्रहृदत्त। मार्ग एक वृद्धा स्त्री थे। तिलों को देखकर ब्रहृदत्त ने उनसे अपनी मुठटी भर ली और मुंह में डालकर खाना शुरू कर दिया। वृद्धा ने उसे भूखा समझ कर कुछ नही कहा और चुपचाप बैठी रही। दूसरे दिन भी आचार्य के साथ ब्रहृदत्त उसी मार्ग से स्नान करने गया और उसने उसी तरह तिल उठाकर खा लिए। वृद्धा ने फिर भी उसे कुछ नहीं कहा।

लेकिन जब तीसरे दिन भी उसे कुछ नही कहा। लेकिन जब तीसरे दिन भी ब्रहृदत्त ने ऐसा ही किया, तो वृद्धा से चुपचाप नहीं रहा गया। उसने जोर से चिल्ला कर कहा कि यह संसार प्रसिद्ध आचार्य अपने शिष्यों द्वारा मुझे लुटने दे रहा है। यह कह कर वह बांह उठाकर रोने लगी। उनके पास आकर बोला कि क्या बात है? मां? वृद्धा ने कहना शुरू किया कि देखो, मैंने सुखाने के लिए ये तिल बिछा रखे हैं, तुम्हारे शिष्य ने मुठटी भरकर उन्हें उठा लिया है। यह उसने आज तो किया ही, कल भी किया था और परसों भी किया था। इस तरह तो यह मेरे सारे घर को चौपट कर देगा। आचार्य ने देखा कि शिष्य वहां रूका नहीं, आगे चल गया है। वे समझ गए कि शिष्य ने गलत काम किया है, इसलिए वृद्धा का चिल्लाना सुनकर मेरे साथ रूका नहीं। आचार्य को इस बात का बड़ा दुख हुआ।

उन्होंने उस वृद्धा से कहा कि मां, रोओ मत। मैं तुम्हें तिलों की कीमत चुका दूंगा। तुम्हें हानि नहीं होने दूंगा। तब वृद्धा बोली कि आचार्य, मैं तिलों की कीमत नहीं चाहती। वैसे भी तीन मुठठी तिलों की कीमत होगी भी कितनी। तब आचार्य ने उससे पूछा कि तो फिर तुम क्या चाहती हो? वृद्धा बोली कि आचार्य में चाहती हंू कि आप अपने इस शिष्य को ऐसी शिक्षा दो कि यह अच्छाई से प्रेम करे और बुराई से बाज आए। यदि इसका आचरण इसी तरह का रहा तो फिर आपकी ही अपकीर्ति होगी। लोग कहेंगे कि यह फलां आचार्य का शिष्य है। उसकी बात सुनकर आचार्य उससे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने उसको प्रणाम करते हुए कहा कि मां, तुम बिलकुल सही कहती हो। शायद मेरे ही शिक्षण में कोई कमी रही है, जिसके कारण उसने ऐसा आचरण किया। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं अपने शिक्षण की कमी दूर करूंगा और इस शिष्य को भी सुधारूंगा। तुमने आज मुझे चेताकर बहुत ही अच्छा किया।