भाजपा के लिए गलफांस नहीं बन जाएं सतीश पूनिया!

सतीश पूनिया
सतीश पूनिया

पार्टी के कार्यक्रमों से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने बनाई दूरी

जयपुर। प्रदेश अध्यक्ष का तमगा छीन लिए जाने के बाद भले ही सतीश पूनिया बार-बार मीडिया में नाराज नहीं होने और संगठन के लिए जी-जान लगा देने का बयान देते रहे हैं, लेकिन पार्टी के ज्यादातर कार्यक्रमों से उनकी दूरी ने साफ कर दिया है कि वे पद से हटाए जाने को लेकर खासे नाराज हैं। सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच चल रही गुटबाजी को खत्म करने के लिए आलाकमान द्वारा उठाया गया यह कदम और भारी पड़ता दिख रहा है, क्योंकि अब गुट बढऩे की संभावना अधिक बढ़ गई है। हालांकि प्रदेश बीजेपी में पिछले लंबे समय से चल रही गुटबाजी को खत्म करने के लिए केंद्रीय आलाकमान लगातार कोशिश कर रहा है। सतीश पूनिया का कार्यक्रमों में नहीं पहुंचना इन दिनों पार्टी में ही चर्चा का विषय बना हुआ है।

भाजपा
भाजपा

दरअसल, इस साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। करीब साढ़े तीन साल तक पूनिया ने प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाला, लेकिन ऐन वक्त पर उनका पद छीन लिए जाने से वे खासे नाराज हैं। उन्हें पद से हटाकर सांसद सीपी जोशी को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। सतीश पूनिया के पद से हटाने के साथ ही जाट समुदाय ने प्रदेशभर में विरोध-प्रदर्शन भी किए। इसे डैमेज को कंट्रोल करने के लिए आनन-फानन में सतीश पूनिया को उपनेता प्रतिपक्ष का पद दिया गया। उसके बावजूद सतीश पूनिया ने पार्टी के ज्यादातर कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखी। यहां तक कि उनके द्वारा शुरू की गई जनाक्रोश यात्रा से भी पूनियां ने दूरी बना रखी है। पूनिया की नाराजगी और पार्टी कार्यक्रमों से दूरी भाजपा में चर्चा का विषय बन गई है।

सीपी जोशी ने 27 मार्च को अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला और साथ ही आने वाले विधानसभा चुनाव में केंद्र की योजनाओं के जरिए आम जनता तक पहुंच बनाने का संदेश दिया। इसी बीच जयपुर बम ब्लास्ट मामले में हाई कोर्ट के फैसले से बीजेपी को बैठे-बिठाए चुनाव में बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। जोशी ने जयपुर बम ब्लास्ट मामले को लेकर न केवल मौजूदा सरकार को घेरा, बल्कि आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर ली। 1 अप्रैल को छोटी चौपड़ पर प्रदेश बीजेपी की ओर से जयपुर ब्लास्ट के पीडि़तों के साथ धरना दिया गया। इस धरने में बीजेपी एकजुट नजर आई, जो नेता पिछले साढ़े तीन से गायब थे वो भी नजर आए।

बीजेपी के स्थानीय विधायक और सांसद के साथ-साथ तमाम पूर्व विधायक और पदाधिकारी मौजूद रहे, लेकिन इस धरने में सतीश पूनिया शामिल नहीं हुए। इसके बाद बीजेपी मुख्यालय पर आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर संभागीय बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में भी तमाम बीजेपी के सांसद, विधायकों के साथ संगठन के पदाधिकारी और संभाग के संगठन के नेता शामिल हुए, लेकिन सतीश पूनिया शामिल नहीं हुए। इतना ही नहीं 6 अप्रैल को बीजेपी के स्थापना दिवस के कार्यक्रम तक में पूनिया शामिल नहीं हुए। वहीं, 2 दिन पहले जयपुर के रामलीला मैदान में बीजेपी की ओर से जयपुर ब्लास्ट मामले को लेकर सभा और कैंडल मार्च किया गया, इसमें भी सतीश पूनिया की गैरमौजूदगी दिखाई दी।

गुटबाजी विधानसभा चुनाव में चुनौती

सतीश पूनिया की गैरमौजूदगी इन दिनों बीजेपी के नेताओं में चर्चा का विषय है। जिस जन आक्रोश यात्रा को अध्यक्ष रहते सतीश पूनिया ने शुरू किया था, अब वो उसमें भी शामिल नहीं हो रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद जाने और उप नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद सतीश पूनिया नाराज चल रहे हैं। उन्होंने अचानक से संगठन के कार्यक्रमों से दूरी बना ली है। वहीं, पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके समर्थक नेताओं की दूरी गुटबाजी साफ दिख रही थी, लेकिन इस बीच वसुंधरा खेमा साढ़े 3 साल बाद फिर से एक्टिव हो गया है।

यह भी पढ़ें : यूं ही नहीं कहते आम को फलों का राजा, जानें इसके स्वास्थ्य लाभ