मुंह सुंघाई

जो हुआ, वह सब के सामने हुआ। खुल्ले-खाले में हुआ। सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुआ। अंदरखाने हुआ होता तो खुसुर फुसुर करना वाजिब था। वहां तो सुंघाई का सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ। उसके बाद भी जो हुआ, वह सबने देखा। निष्कर्ष ये कि आइंदा निमंत्रण पत्र के नीचे सूचना छपवाने का समय आ रहा है। मुंह सुंघाई की नई रस्म का बिस्मिल्लाह भी हो सकता है। जैसी मुंह दिखाई-वैसी मुंह सुंघाई..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
क्या हुआ। कैसे हुआ। क्यूं हुआ। ऐसा कैसे हो गया। जोग-संजोग की बात है। अच्छा हुआ जो पहले पोल खुल गई। जो कुछ हुआ-अच्छा नहीं हुआ। अब क्या होगा.. सरीखी बातें थोड़े दिन तक चलेगी और उसके बाद लोग भूलभुला जाएंगे।

हां, चांतरी ब्रांड चाचिएं-काकिएं और बायला छाप मिनख तांतां ताणते रहें तो बात कुछ और है, वरना हम-आप जैसों के पास इतनी फुरसत कहां जो खामखा की पंचायती करते फिरें। ऐसे भतेरे लोग हैं जिन को यहां-वहां ताकाझांकी करने में मजा आता है। ठेठ भीतरी शहर में चांतरियों पर बैठी काकियों-मामियों का यही काम। उन्हें डूंगर पर धुआं भी उठे तो नजर आ जाता है, पण पग बळती नजर नहीं आती। किस के घर कौन आया। कौन, कब-गया.. कब आया..। कौन फोन पे लगा रहता है या लगी रहती है। फलाणे का छोरा क्या कर रहा है। छोरी किस कॉलेज में पढती है। पूरी गुवाड़ी पर उनकी नजर, मगर घर में क्या हो रहा है, उससे बेखबर। इसी बात पे एक लतीफा याद आ गया। लगता है उस चुटकुले को वैसे लोग-लुगाइयों को सामने बिठा के घड़ा गया है।

एक भाई साहब आए दिन गली-गुवाड़ी के बच्चों को पूछते रहते-ताजमहल कहां है। लाल किला कहां है..। फलाण सिंघ कौन थे। ढीमकाचंद कौन थे.. बच्चे ‘पता नहीं कह के हाथ झटक देते-तो कभी ‘ना की मुद्रा में घांटकी हिला देते। भाईजी तिणकते-‘कभी घर से बाहर भी, निकला करो। रोज-रोज की सवालगिरी से तंग आ कर एक दिन एक बच्चे ने उलटा सवाल दाग दिया-‘अंकल भोमिए को जानते हो.. पिनुडृी को पहचानते हो..। भाईजी भी ‘नही के अंदाज में हाथ हिला दिए तो बच्चा बोला-‘कभी घर में भी रहा करो। कहने का मतलब ये कि लोगों को दूसरे के यहां ताकने में तो मजा आता है। घर में क्या हो रहा है, उससे बेखबर। जबकि उन्हें पहले अपने घर का ध्यान रखना चाहिए। वैसी पंचायती और वैसी चांतरियां उन्हें ही मुबारक हो। हम-आप जैसे के पास करने के लिए भतेरे काम है। वो तो देखा-सुना और पढा तो चर्चा छेड़ दी और जब चर्चा छिड़ ही गई है तो अंजाम तक पहुंचाना भी हमारा काम। हम खामखा की लगाई-बुझाई तो कर नही रहे। उसे देख के तो यही आशंका गहराई कि कही नई परंपराएं प्रारंभ ना हो जाएं।

अपने यहां तीज-त्यौहारों से लेकर सामाजिक और पारिवारिक समारोहों के दौरान भांत-भांत की रस्में निभाई जाती है। बच्चा होणे के बाद सूरज पूजन के दौरान अलग रस्में और सगाई-सरपण के समय की अपनी रस्में। अब तो खैर सब लोग ‘उघाड़े हो गए वरना आई-बाबा के जमाने में पति-पत्नी एक-दूसरे का मुंह सुहागरात को ही देखा करते थे। उसी दौरान मुंह दिखाई की रस्म हुआ करती थी। सुर्ख जोड़े में सजी लुड़की लजाती-शरमाती-घूंघट उठाने से कतराती। पति देव गिफ्ट-तोहफा-नजराना देने के बाद घूंघट उठा कर मुंह दिखाई की रस्म निभाते। अब लगता है कि बारात दरवाजे पे आने से पहले मुंह सुंघाई की परंपरा शुरू होने वाली है।

अपने यहां निमंत्रण-पत्र भेजने का रिवाज भी है। पहले पीले चावल देकर न्यौता दिया जाता था फिर गुड़ और गुलाबी कुंकूपतरी देकर निमंत्रित करने रिवाज चला। अब भांत-भांत के कार्डस भेजे जाते हैं। इससे पहले मनुहार पत्रिका भेजने का रिवाज भी चल पड़ा है। कुछ कार्डस के नीचे प्रकाशित करवाया जाता है-‘आप का आना ही हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी। इसका मतलब ये कि बान के लिफाफे या अन्य कोई तोहफे लाने का कष्ट ना करें। आप सपरिवार आइए.. प्रेमपूर्वक भोजन कीजिए। जोड़े को आशीर्वाद दीजिए। सभी से मिलनी कीजिए और विदाई लीजिए। लिफाफे की कोई औपचारिकता नहीं। अब लगता है कार्ड के नीचे ‘कृपया शराब पी कर ना आएं भी छपवाना पड़ जाएगा। पहले मुंह सुंघाई और फिर विशेष सूचना के पीछे अपने कारण।

हुआ यूं कि झांसी क्षेत्र में बारात के दौरान दुल्हा तीन दफे घोड़ी से गिर गया। द्वाराचार के दौरान भी उसके पांव लडख़ड़ा रहे थे। जस-तस कुछ रस्में निभा ली गई। स्टेज पर वरमाला पहनाने का समय आया तो भूचाल आ गया। दुल्हा तांगिएं खा रहा था। दो रिश्तेदार उसे पकड़े हुए थे। यह देख दुल्हन ने उसका ‘मुंह सूंघने की शर्त रख दी। मुंह सूंघा तो दारू की भयंकर बदबू आई। स्टेज पे यह हाल है तो घर में कैसा होगा। दुल्हन ने अपने घरवालों से विचार-विमर्श करने के बाद शराबी से शादी करने से इंकार कर दिया।

शराबी की बीवी कहलाने से अच्छा तो यह है कि शादी से ही मना कर दो। घरवालों ने भी लड़की का पूरा साथ दिया और बारात को बैरंग लौटना पड़ा। इनने जो लिया और उनने जो दिया-सब वापस लौटा दिया। तांगिए खाता आया युवक तांगिए खाता वापस गया। इससे पूर्व भी इससे मिलती-जुलती घटनाएं हो चुकी है। इनको देखते हुए लगता है कि कार्ड के नीचे-‘कृपया शराब पीकर ना आएं की सूचना प्रकाशित करवाने और स्वागत द्वार पर बारातियों-घरातियों की ‘मुंह सुंघाई की रस्म प्रारंभ करने की घड़ी आ गई है।

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