
आज वो गीत फिर याद आ गया। वो गाना याद आ गया। गीत के वो बोल याद आ गए। गाने की वो पंक्तियां याद आ गई। गुनगुनाने के बाद हौंसला और बढ़ गया। सुनने के बाद आंखों की चमक और बढ गई। आशा की किरणे फूटती नजर आई। चारों तरफ उजाला दिखाई दिया। मन के एक कोने से जो आवाज आई उसमें उस गीत-गाने की छाप साफ नजर आ रही थी-‘उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे..।
शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे। याद आना और याद करना मानवीय प्रवृति है। भगवान ने यह नायाब तोहफा इंसानों को ही दे रखा है। जिनावरों के बारे में इसलिए नहीं कह सकते कि ऐसा कभी सुना नही कि उनमें भी याद करने का गुण होता है या नहीं। पाशविक आचरण वाले मानखों में अलबत्ता याद करने की प्रवृति जरूर पाई जाती है। भगवान ने जो तोहफे हमें दिए वही अन्य जीव-जिनावरों को भी दिए। ऐसे दो-चार गुण हैं जो सिर्फ-ओ-सिर्फ इंसानों को दिए।
याद करना उनमें से एक। आप ने किसी चौपाए को विचार करते हुए देखा? मतलब कि किसी पशु को विचारणीय मुद्रा में देखा? आप ने किसी पशु-पक्षी-पंखेरू को हंसते हुए देखा? यह गुण इंसानों के पास हैं और जिस इंसान ने हंसना और हंसाना सीख लिया, समझो उसे जीने का सलीका आ गया।
होंठों की हंसी एक लम्हे के लिए ही सही इंसान का दुख हलका कर देती है। पल भर के लिए इंसान अपने जख्म भूल जाता है। इस वास्ते हमारा तो यही संदेश है कि हमेशा मुस्कराते रहो। हंसते रहो-हंसाते रहो। किसी के रोने पर लोग एक दिन साथ रो लेंगे। दो दिन रो लेंगे। उसके बाद ‘रोवणिए का टेग लगा कर बचते नजर आएंगे। जबकि हंसने-हंसाने वाला सदाबहार रहता है। होंठो पर मुस्कराहट रखने वाला मानखा हरेक को अजीज लगता है।
हथाईबाज देख रहे हैं कि कोरोना काल ने लोगों की हंसी-मुस्कराहट पर ग्रहण सा लगा दिया है। वर्ष 2021 के शुरूआती महिनों में लगा था कि इसकी विदाई हो चली है मगर ऐसा नही हुआ। शासन-प्रशासन की गलतफहमी और लोगों की बेपरवाहियों के कारण इसने अपना ‘फन और फैला लिया। नतीजा सबके सामने है। उन परिवारों पर क्या बीत रही होगी, जिन्होंने अपनों को खो दिया। कई परिवार ऐेसे भी जिनके यहां से अर्थियां उठने का सिलसिला चलता रहा। किसी के दो-किसी के चार-किसी के छह सदस्यों को कोरोना ने निगल लिया। उस गीत की पंक्तियां कानों में गूंजी तो हौंसला चट्टान की तरह फिर से खड़ा हो गया।
कभी-कभी मन में विचार खनकते हैं कि वो लोग कितने दूरंदेशी रहे होंगे जो सालों पहले सालों बाद होने वाले हादसों की धमक सुन लेते थे। गीतकार भी उनमें शुमार। हम सुनते-पढते रहे है कि अमुक मराज की भविष्यवाणी सही साबित हुई। यह भी कहा-सुना जाता है कि फलां मराज की भविष्यवाणी इत्ते साल बाद सही साबित हुई। हथाईबाज सब पर विश्वास करते हैं मगर अंधविश्वासी और अंध भक्त नहीं।
सब के प्रति श्रद्धा रखना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हम किस्मत पर विश्वास रखने के साथ-साथ कर्म भी करते हैं। समय है-पता नहीं कब पलटी खा जाए। समय ने अच्छों-भलों को आईना दिखा दिया, हम-आप की क्या बिसात। किस ने सोचा था कि ऐसे दिन देखने पड़ जाएंगे। सड़कों पे स्यापा। लोग घरों में कैद। कोरोना से मरने वालों को अपनों का कांधा नसीब नही हो रहा। वो गीतकार कितना दूरंदेशी रहा होगा जिसने अपनी भविष्यवाणी को गीत के रूप में परोसा। किशोर दा ने उसे आवाज दी। आज फिर उसकी लाइनें ताजा हो गई। गीत का सार वही जो संत-सुजान बताते रहे हैं। हर रात के बाद सुबह आती है। गीतकार कहता है…
कहां तक ये मन को, अंधेरे छलेंगे…
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे…
कभी सुख-कभी दुख, यही जिंदगी है-
ये पतझड़ का मौसम, घड़ी दो घड़ी हैं
नए फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन, कभी तो ढलेंगे…
हथाईबाजों ने कोरोना के पहले दौर में इस गीत से खूब हिम्मत बटोरी थी। गीत को खूब गुनगुनाया था। आज फिर उसकी पंक्तियां कानों में गूंज रही है। कहती है…
भले तेज कितना, हवा का हो झौंका
मगर अपने मन में तू, रख ये भरोसा..
जो बिछड़े सफर में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे..
हम ने पहले भी कहा था, आज फिर कह रहे हैं कि सरकारी गाइडलाइन की पालना कीजिए। दो गज की दूरी मास्क है जरूरी। बिना काम घर से बाहर निकलने से परहेज। यदि हम नियमों पर चलते रहे तो कोरोना हारेगा-भारत जीतेगा। उदासी के बादल छंटेगे..नया सूरज निकलेगा..।