रिपोर्ट ले लो.. रिपोर्ट..।

ऐसा हो तो नही सकता, फिर भी शंका और आशंका के बादल मंडराते रहते हैं। यह जरूरी नही कि आज तक जो हुआ नहीं, वो आइंदा भी नही होगा। गुजरे कल में जो कुछ नहीं हुआ, जरूरी नहीं कि वो आने वाले कल में भी नहीं होगा। आज के टेम में सब कुछ संभव है। जो होना है वह हो नही रहा, जो नही होता है वह हो जाता है। होना है सो होना है, नही होना है सो नही होना है-इसमें टेंशन किस बात का। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
शीर्षक पढकर कई पाठको के मन में खदबद हो रही होगी। भाईसेण इसका अपने-अपने अंदाज में अर्थ निकाल रहे होंगे। ऐसा करना या ऐसा होना मानवीय प्रवृति है। कई लोगों सीधा, उलटा नजर आता है-कई लोग उलटे को सीधा करके सोचते हंै। यह सब नजरिए पर निर्भर। जिस का नजरिया अच्छा होता है-उन्हें हर बात सुट्ठी लगती है-और जिन की सोच नकारात्मक होती है उन्हें कुंदन में भी खोट नजर आती है। आप ने अपने-अपने अंदाज दुनिया की परिभाषाएं सुनी होगी। अपने-अपने अंदाज के माने मांगीलालजी की नजरों में दुनिया का अलग बिणाव और देवीलाल जी की नजरों में अलग सिणगार। कोई दुनिया को हसीन मानता है-तो कोई जहरीली। कोई इस बड़ी सी दुनिया में अपना एक छोटा सा आशियाना बनाने के ख्वाब संजोता है तो कोई इस जालिम दुनिया को फूंक देने का दंभ भरता है। पोपटलाल को ही ले लीजिए। तीस किलो का पोपटलाल दुनिया हिलाकर रख देने की बात कहे तो हंसी आणा लाजिमी है। भाई आटे से भरा बीस किलो का कट्टा नही हिला सकता और बात दुनिया को हिला देने की कर रहा है। दुनिया कोई खंभा थोड़े ही है जो पांच-दस मानखे मिल के खड़ा कर दोगे। या उखाड़ देंगे।
कई लोग अपनी दुनिया बसाने की बात करते हैं। उनकी दुनिया में भरा-पूरा परिवार हो तो हमारा वोट उनकी पेटी में वरना उनकी दुनिया उन्हें मुबारक। हमें लगता है कि वो हमारी मुबारकबाद स्वीकार करने में ज्यादा रूची दिखाएंगे। आप ने बधाई दी-उनने धन्यवाद बोला और मामला नक्की। इस का कारण सीधा और सपाट। आज-कल ज्यादातर लोग मैं अर म्हारो गीगलो तक सिमट के रह गए। पहले था हम दो-हमारे दो, अब उसमें भी कटौती हो गई। हम दो यथावत और हमारे दो की जगह एक।
हमें किसी की व्यक्तिगत सोच पर दखल देने का शौक नही है। हम ऐसा करना भी नही चाहते। ऐसा करने का हमें बड़का भी नही है। कोई दो पैदा करे या एक। तीन पैदा करे या चार। उनका व्यक्तिगत मामला। हम छोटा परिवार सुखी परिवार के समर्थकों में से एक। मगर हम दो हमारा एक के कट्टर समर्थक भी नही। इसके अपने कारण। एक डीकरा या एक डीकरी होने का मतलब कई रिश्तों पर विराम। मामा, बुआ, मासी और काके बड्डे पड़ोस में। वहां भी मिलेंगे या नहीं यह पड़ोसी पर निर्भर। लिहाजा हम ‘दो के पक्ष में। फिर आप जाणो और आप के काम। हम दो हमारे दो के साथ भाई बांधवों के परिवार हो तो सोना और साझा परिवार पर आई-बाबा का हाथ-साथ हो तो सोने में सुहागा। जिस घर में बच्चों की किलकारियां हों। जिस घर में बींदणी के पायजेब की खनक हो। जिस घर में बुजुर्ग हों, असल में वही घर है वरना मकानों की तो गिनती ही नहीं। मकान और घर में क्या फरक होता है, उसे ज्ञानी-ध्यानी-विद्वानी ही-समझ सकते हैं। कोई चाहे तो इस बारे में सर्वे कर रिपोर्ट मंगवा सकता है। बात घूम फिर कर रिपोर्ट पर ला दी गई। ऐसा करना जरूरी था वरना किसी को क्या पता चलता कि शीर्षक के पीछे कौन सा राज छुपा है।
एक-एक की रिपोर्टों का बखान करने बैठ गए तो कैलेंडर के पन्ने बदल जाणे है। हो सकता है कैलेंडर भी बदल जाए। देश-दुनिया में इतनी रिपोर्टे कि गिनना मुहाल। केल्क्यूलेटर हांफ जाएगा। मटिया वर्दी से लेकर सफेद कोट संप्रदाय तक रिपोर्टे ही रिपोर्टे। दफ्तर से लेकर शासन-प्रशासन तक रिपोर्टों की भरमार। कहीं घपले-अनियिमतता की जांच रिपोर्ट तो कहीं स्वास्थ्य परीक्षण की रिपोर्ट। कभी-कभार बिन रिपोर्ट काफी कुछ सून नजर आता है। पर हथाईबाज जिस रिपोर्ट के लेन-देन की बात कर रहे हैं वो आगे चल कर गली-गुवाड़ी में बिकनी शुरू ना हो जाए..। ऐसा हो तो नही सकता, पर शर्तिया तौर पे कह भी नही सकते।
हवा मेरठ, यूपी से आई। वहां एक प्राइवेट हॉस्पीटल 2500 रूपए में कोरोना की नेगेटिव जांच रिपोर्ट बना के बेच रहा है। ऐसा करने का अधिकार किसी ने नही दिया। चिकित्सा प्रशासन ने उसे कोरोना जांच के लिए अधिकृत नहीं किया मगर अस्पताल प्रशासन ‘पैसे दो-नेगेटिव रिपोर्ट लो अभियान चला रहा है। शिकायत मिलने पर पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी गई। अगर कोई कड़ी कार्रवाई नही हुई तो कल को फेरी-रेहड़ी वाले गली-गुवाड़ी में फिर कर आवाज लगाएंगे-‘रिपोर्ट ले लो..रिपोर्ट..।