तंज-ताने से निकला आइडिया

कहा तो मजाक में था आगे चल कर वो तंज और ताने मे बदल गया। उस मजाक को, उस ताने को, उस तंज को गंभीरता से लिया जाए तो कई फायदे हो सकते हैं। उन का भप्पारा तो निकलेगा ही, इन को भी मजा आ जाएगा। लोचा ये कि लोग भप्पारा तो निकाल लेंगे। मजे के मंसूबे बांधने वाले उस से वंचित रह जाणे हैं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
मजाक-तंज और तानों का प्रचलन पुरातन है। सन्-ईस्वी या हीजरी सन् का तो पता नहीं। हजारों नहीं तो सैकड़ों मान ही ल्यो। इस के माने सभी की उम्र सैकड़ों साल। पहली मजाक किस ने और किस के साथ की इस के ऐतिहासिक दस्तावेज किसी के पास नहीं।

प्रथम तंज किस ने किस पर कसा इसकी जानकारी किसी के पास होगी। हमें तो शक है। फस्र्ट ताना किस ने, किस मसले पर और कब मारा इस की अधिकृत जानकारी भी किसी के पास नहीं होगी। इत्ता जरूर है कि इन का इतिहास खासा पुराना है।

जहां तक अपना अंदाज है इन तीनों के अवसर होते है। ऐसा कानून भी नहीं कि बिना अवसर कोई किसी के साथ मजाक कर दे तो उस के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो जाएगी। मामले की जांच होगी। चालान पेश होगा और मुकदमा चलेगा। सेटिंग हो तो एफआर भी लग सकती है पर कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

यही टोटका तंज और तानों पर लागू होता था। होता था का उपयोग इसलिए किया कि अब मौकों-अवसरों का गेट टूट गया लगता है। जब चाहो मजाक कर लो। जब जी चाहे तंज कस लो। जब जी चाहा ताना मार लिया। पर इन का उपयोग अवसरों पे किया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। अवसरों पर की गई मजाक का मजा ही अलग होता है। समय पर चलाया गया तंज और ताने का तीर भी निशाने पे लगता है।

यार-दोस्तों में मजाक होती है। साथण-सहेलियों में मजाक चलती है। देवर-भाभी में मजाक होती है। जीजा-साली के बीच मजाक होती है। समधियों में मजाक होती है। शादी के बखत महिलाएं ‘गाली गान किया करती है। बारात द्वार पर आने पर उन का सामूहिक रूप से गायन होता था। शहरों में तो इन का प्रचलन कम हो गया पण गांवों में गालियों की गंूज आज भी जारी है।

धराती पक्ष की महिलाएं बारातियों के साथ गीत गाकर मजाक करती हैं-‘काणा-खोड़ा जानी लाया, कई खायौ गटको..। जवाब में बाराती पक्ष की महिलाएं अपने सुर छेड़ती। शादी के बखत दुल्हे के जूते छुपाने की रस्म भी निभाई जाती है। मजाक के तौर पर चलीं यह बयार अब दस्तूर बन गई है।
होली के बखत तो मजाक का मैजिक सिर चढ के बोलता है। गली-गुवाडी के लोग एक-दूसरे को टाइटल से नवाजते हैं।

मूर्ख दिवस पर तो मजाक डे का ठप्पा। फस्र्ट अप्रैल को मजाक करने और मूर्ख बनाने का रिवाज सा चल पड़ा है। पुराने मित्र बरसों बाद मिलते हैं तो हंसी-ठठ्ठा और मजाक का दौर चलता है। समधियों में मजाक चलता है। दफ्तरों में सहकर्मी एक-दूसरे के साथ हंसी-मजाक करते रहते हैं। मजाक-मजाक में सफर कट जाता है। कई लोग जिंदगी को मजाक बताते हैं। बॉस गुस्से में कहते हैं-‘काम को मजाक बना रखा है?

कुल जमा मजाक जीवन का एक हिस्सा बन गया है। मजाक अगर मजाक तक सीमित रहे तब तक तो ठीक है। हदें पार कर ले तो जी का जंजाल बनते देर नहीं लगती। तंज और तानों की तान भी जोरदार है। ‘नाच ना जाने-आंगन टेढा पर वैसे तो कहावत का ठप्पा ठुका है। हम उसे ताना मानते हैं। कहने वाले आसानी से कह देते हैं- मुंह में दांत नहीं, पेट में आंत नहीं-चला मुरारी हीरो बनने। इस में भी ताना।

कई ताने राष्ट्र स्तर पर बदनाम है। सास, बहू को ताने मारती है। ननंद, भाभी को टॉन कसती है। जमाई राजा ससुरालियों को ताने ठोकते हैं। ठाले पूत्तर दिन भर डोलने के बाद रात पडे घर पधारते हैं तो बाबा-अम्मा ताना मारते हैं-‘आ गए कमाऊ पूत।

तंज, तानों की अच्छी पैकिंग। इस का सिणगार कुछ अलग। हैं तो ताना पर रूप अलग। इस का प्रचलन सियासत में ज्यादा दिखाई देता है। राजनीति में तंज ठाठे मारते नजर आते हैं। ऐसा कोई दिन, घंटा, मिनट नहीं गुजरता। तब कोई नेता किसी पे तंज ना कसे। जब-जब मौका मिला तंज के तीर चला दिए। कई बार तो बिना बात ही तंज कस दिए जाते हैं।

पर वहां जो मजाक चली। जो तंज-ताने की जो तान गूंजी उसने आइडियाज दे दिए। आम के आम-गुठली के दाम। आक्रोश भी निकल जाएगा और साक भी बन जाएगा। आमलेट भी तैयार, बशर्तें अंडे कैच हों।

हुआ यूं कि ओडिशा दौरे के दौरान एक केंद्रीय मंत्री पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अंडे फैंके। ऐसा होता रहा है। लोगबाग विरोध जताने के लिए अंडा बॉलिंग करते रहे हैं। दो दिन बाद दूसरे केंद्रीय मंत्री वहां पहुंचे तो मीडिया ने अंडों का जिक्र कर दिया। इस पर दूसरे मंत्री ने न्यौता दे डाला। कहा-‘मुझ पर अंडे फैंकना, मैं आमलेट बना लंूगा।

इसमें मजाक के साथ तंज और ताना भी। आइडिया भी। जिन लोगों पे टमाटर फैंकने जाने प्रस्तावित हैं वो उन का सोस बना सकते हैं। जिन पर बैगन बरसात होने वाली हैं, वो उनका साक बना सकते हैं। जिन पर स्याही फैंकनी प्रस्तावित है वो उसे दवात में भर सकते हैं। जिन पर जूते फिकणे हैं, वो दूसरा जूता और मोजे मांग सकते हैं। मंत्रीजी को आइडिया देने के लिए धन्यवाद।

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