केरल में 32 हजार युवतियों के धर्मांतरण की कहानी है द केरल स्टोरी

द केरल स्टोरी
द केरल स्टोरी

रोंगटे खड़े कर देने वाली फिल्म आज से सिनेमाघरों में

मुंबई। देशभर में जिस फिल्म द केरल स्टोरी का विरोध हो रहा है वह आज यानी शुक्रवार को सिनेमाघरों में पर्दे पर उतर गई है। फिल्म में केरल में 32 हजार लड़कियों के जबरन धर्मांतरण और उनके साथ हुई ज्यादति को खुलकर दिखाया गया है। फिल्म का टे्रलर रिलीज होने के साथ ही कुछ संगठनों और मुस्लिम समुदाय ने यहां तक पाकिस्तान मेें भी इस फिल्म का भर्सक विरोध हो रहा है। सुदीप्तो सेन निर्देशित और विपुल शाह निर्मित फिल्म द केरल स्टोरी ने दर्शाया है कि लव जिहाद कैसे किया जाता है। ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही फिल्म विवादों में हैं। केरल में 32 हजार लड़कियों के जबरन मतांतरण कराने और आतंकी संगठन आइएसआइएस में शामिल कराने की बात को कई राजनीतिक संगठनों ने फर्जी कहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, लेकिन अदालत ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है।

लव जिहाद की असल कार्यशैली का खुलासा

द केरल स्टोरी
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अरसे तक मुझे ‘लव जिहाद’ शब्द के प्रयोग पर गंभीर आपत्ति रही है। लेकिन, फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ सिरे से समझाती है कि इसे कैसे अंजाम दिया जाता है। फिल्म खत्म होने के बाद उन परिवारों के लोगों के असल इंटरव्यू दिखाए गए हैं, जिनके साथ ये सब वाकई हो चुका है। एक हंसते खेलते परिवार की युवती शालिनी जिसे अपनी संस्कृति, अपने परिवार, अपने रहन सहन और अपने आस पड़ोस से प्यार है। नर्स बनने के लिए वह नर्सिंग कॉलेज आती है।

हॉस्टल में उसकी जिन युवतियों से दोस्ती है, उनमें से एक उसे एक ऐसे रास्ते पर ले जाने का तानाबाना बुनती है, जहां से वापसी की राह ही नहीं है। केरल से श्रीलंका, श्रीलंका से अफगानिस्तान और अफगानिस्तान से सीरिया का उसका सफर वहां आकर थमता है जहां उसके जैसी तमाम लड़कियां आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के कैंप में सिर्फ इसलिए जमा की गई हैं कि वे इन आतंकवादियों की देह की भूख मिटा सकें। कहानियां फिल्म में और भी हैं लेकिन जिस सिर्फ ये एक कहानी झकझोर देने के लिए काफी है।

द केरल स्टोरी के निर्देशक सुदीप्तो सेन और निर्माता विपुल अमृतलाल शाह के साहस की प्रशंसा करने होगी कि उन्होंने इतने साहसिक विषय पर बात की। मतांतरण पर बनी यह फिल्म रोंगटे खड़े करती है। ऐसी कहानी के लिए जो लोग सुबूत मांग रहे हैं, उनके लिए भी फिल्म के क्लाइमैक्स में बहुत सारी जानकारी है। जिन तीन लड़कियों की जिंदगानी पर यह फिल्म हैं, उनमें दो के माता-पिता की बातचीत को आखिर में दर्शाया गया है।

तीसरी लडक़ी की मां ने बात नहीं की, लेकिन जानकारी दी। वह अभी भी इस आस में हैं कि उनकी बेटी घर वापस आएगी। मध्यमवर्गीय परिवार की तीन लड़कियों के माता-पिता आज भी न्याय की आस में हैं। यह फिल्म प्रेम के नाम पर छल करने वालों का भंडाफोड़ करती है। साथ ही ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कानून की भी मांग करती है। देखना यह होगा इस दबे सच को पर्दे पर देखने के बाद कितने लोग इन लड़कियों के परिवार को न्याय दिलाने के लिए आगे आएंगे।

क्या है ‘द केरल स्टोरी’ की कहानी?

कहानी जेल में बंद फातिमा उर्फ शालिनी उन्नीकृष्णन (अदा शर्मा) से ईरानी-अफगानी अधिकारियों द्वारा पूछताछ से आरंभ होती है। शालिनी के सीरिया पहुंचने और उसकी जिंदगी की परतें खुलना आरंभ होती है। केरल के एक प्रख्यात कालेज में अलग-अलग क्षेत्रों से नर्सिंग की पढ़ाई करने आईं चार लड़कियां शालिनी, गीतांजलि (सिद्धि इदनानी), नीमा (योगिता बिहानी) और आसिफा (सोनिया बलानी) रूममेट हैं।

आसिफा का मकसद पढ़ाई की आड़ में अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देना है। उसके लिए वह कजिन भाई के नाम पर दो लडक़ों रमीज (प्रणय पचौरी) और अब्दुल (प्रणव मिश्रा) से इन लड़कियों की मुलाकात करवाती है। अचानक से मॉल में एक घटना में तीनों लड़कियों के कपड़े फाड दिए जाते हैं और आसपास के लोग मूक दर्शक बने रहते हैं।

भीतर तक सिहरा देने वाली कहानी

फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ शुरू होते ही बताती है कि जिन युवतियों की कहानियों पर ये फिल्म बनी है, उनके घरवालों ने कैमरे पर अपनी आपबीती सुनाई है। शुरू शुरू में तो लगता है कि ये एक ऐसी फिल्म है जिसे किसी खास राजनीतिक उद्देश्य से ही बनाया गया है। लेकिन, जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, ये दर्शकों को अपने साथ जोडऩे लगती है। दिखावे के हमले, दिखावे की सहानुभूति और दिखावे के प्रेम से युवतियों को बरगलाया जाता है।

इस्लाम के मायने तोड़ मरोडक़र समझाए जाते हैं। यहां तक कि हिंदू देवी देवताओं और ईसा मसीह के बारे में तमाम ऐसी बातें कही जाती हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि अगर यही बात किसी और धर्म के बारे में कही गई होती तो क्या उस धर्म के अनुयायी भी इतने ही सहिष्णु होकर ये फिल्म देखते रहते। जाकिर नायक जैसे धर्म प्रचारकों के हथकंडों का पर्दाफाश करती फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ खत्म होते होते एक ऐसी सच्ची घटना पर आधारित फिल्म बन जाती है जिसे कहना हर कालखंड में जरूरी लगता है।

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