बालकों के संस्कार संवर्द्धन में मातृशक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण-स्वामी सुबोधगिरिजी

बीकानेर। वर्तमान समय में सनातन परम्परा और संस्कृति से दूर होते परिवार विशेषकर युवाओं में संस्कार संवर्द्धन और जाग्रति के लिए इन्द्रा कॉलोनी के रामलीला मैदान में स्वामी सुबोधगिरिजी महाराज, महन्त, भक्तानन्द आश्रम, भीनासर के सान्निध्य में भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण के साथ सत्र का आयोजन किया गया।

अपने उद्बोधन में स्वामी सबोधगिरिजी ने कहा कि हमारी संस्कृति में माता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ईश्वर के बाद माता ही पूजित है, वन्दनीय है, आराध्य है। माता वातस्लयमयी होती है और वही संस्कृति की संवाहक और संरक्षक भी होती है। हमारे देश के मूल में, प्राणचेतना के केन्द्र बिन्दू में धर्म ही है। परिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन धर्म से जुड़ा है।

वनवासी, पर्वतवासी, ग्रामवासी, नगरवासी को जोड़ने का जो सूत्र है वह धर्म ही है। वर्तमान समय में विलुप्त होती परम्पराओं, संस्कृति और संस्कारों को बचाये रखने में मातृशक्ति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके लिए हमको 16 संस्कारों की परम्परा को पुनजीवित करना होगा। श्रीमती राजकुमारी ने कहा कि संस्कारों में जो अवमूल्यन आ गये हैं उसमें सुधार लाने के लिए हमें अपने घर से ही शुरूआत करनी होगी।

शास्त्र को जानना और समझना होगा, दैनिक जीवन में उसके नियमों को अपना होगा तभी भावी पीढ़ी संस्कृति से जुड़ पायेगी। इस अवसर में स्वतन्त्रता संग्राम के महानायकों की पोस्टर्स प्रदर्शनी भी लगायी गयी जिसके माध्यम से युवाओं को अपने महानायकों के जीवनवृत को जानने का अवसर मिला।

कार्यक्रम में पाबूदान सिंह, अजीत सिंह, संदीप चौपड़ा, भवानी शंकर, राजीव मित्तल, विजय सिंह, सांवरजी, योगेन्द्र गुप्ता और ओम सेवग सहित बड़ी संख्या में मातृशक्ति और युवा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन श्रीहनुमान चालीसा के पाठ के साथ हुआ। मंच संचालन राजीव मित्तल ने किया।

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