विश्व प्रसिद्ध है तन्जौर का कलात्मक बृहदेश्र मन्दिर

हमारी सभ्यता-संस्कृति, रहन सहन और तौर-तरीके का मुरीद पूरा विश्व है। कला और अध्यात्म का अनोखा संगम देश के प्रसिद्ध निर्माणों में दिखता है। कहीं के निर्माण में गंगा जमुना संस्कृति का मेल है तो कहीं स्थानीय संस्कृति की स्पष्ट छाप है। बहुविविध भाषी, बहुविविध संस्कृति के जोड़, कई महत्वपूर्ण निर्माण देश को मज़बूत राष्ट्र के रूप में पिरोते हैं। इस अटूट जोड़ को मोतियों में पिरोने वाली हमारी विश्व प्रसिद्ध धरोहर मुख्य भूमिका में है।

इसी कड़ी मे बृहदेश्वर मंदिर भारतीय कला और संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर को पेरुवुदैयर कोविल और राजाराजेश्वरम् के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित है। यह विश्व में पहला पूर्ण रूप से बना ग्रेनाइट मंदिर है। यह चोल काल के वास्तुकला की सर्वोच्च स्थिति को दर्शाता है। मंदिर, चोल वंश के शासक राजाराज चोल प्रथम की शक्ति के एक प्रतिबिम्ब के रूप को दर्शाता है। यह भारतीय वास्तुकला के गौरव के रूप में है। इसका निर्माण चोल वंश के प्रसिद्ध महाराजा राजा राज प्रथम ने (985 -1012 ई.) में कराया था। मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्काशी से लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्यक्तित्व की गौरव कथा को बडी बारिकी से प्रस्तुत करती है।

मंदिर अपनी विलक्षण वास्तुकला और गौरवपूर्ण रचना और महत्ता के कारण विश्व विरासत की सूची में शामिल है। बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट प्रशंसा पत्र के रूप में है। इसकी विलक्षण सुन्दरता और योजना दोनों ही चोल समय की वास्तुकला और शिल्पकला को भी परिभाषित करती है। मंदिर किलाबंदी के रूप बनी दीवारों के मध्य स्थित है, यह संभवत: 16वीं शताब्दी में जोड़ा गया था। मंदिर का शिखर करीब 66 मीटर ऊंचा है, जो मंदिर की दुनिया में सबसे ऊंचे शिखरों में से एक है। मंदिर पूर्व से पश्चिम की ओर 240.90 मीटर लम्बा और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर-दक्षिण की ओर चौड़ा) है। इसके पूर्व दिशा में गोपुर के साथ अन्य तीन साधारण तोरण प्रवेश द्वार हैं, जो प्रत्येक पाश्र्व भाग पर तीसरे पिछले सिरे पर हैं। मंदिर में एक विशाल गुम्बद के आकार का अष्टभुजा शिखर है। यह ग्रेनाइट के एक शिलाखण्ड पर रखा हुआ है। इसका व्यास करीब 7.8 मीटर और वजन 80 टन है। यहां पहुंचने का रास्ता उत्तर-दक्षिण दिशा से अर्ध मंडप से होकर निकलता है, जिसमें विशाल सोपान हैं। ढलाई वाला प्लिंथ विस्तृत रूप से निर्माता शासक के शिला लेखों से भरपूर है। यह शिला लेख राजाओं की उपलब्धियों का वर्णन करता है।

शिला लेख पर पवित्र कार्यों और मंदिर से जुड़ी संगठनात्मक घटनाओं का विशद वर्णन अंकित है। मंदिर के गर्भ गृह के अंदर बृहद लिंग 8.7 मीटर ऊंचा है। मंदिर की दीवारों पर विशाल आकार में इनके पिक्टोरियल रूप को दर्शाया गया है। अंदर के मार्ग में हिन्दू देवी-देवता का चित्र है, जो कला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। खासकर, मां दुर्गा, धन की देवी लक्ष्मी, विद्या देवी सरस्वती का कलात्मक स्वरूप देखते ही बनता है। यहां पर भिक्षाटन, वीरभद्र कालांतक, नटेश, अर्धनारीश्वर और अलिंगाना के स्वरूप भगवान शिव को दर्शाया गया है।

मंदिर में अंदर की ओर जो दीवार है, उसके निचले हिस्से में भित्ति चित्र, चोल तथा उनके बाद की अवधि का सुन्दर निरूपण है। यहां की हर चीज़ चोल वंश की उपलब्धियों को गौरवपूर्ण कथा के रूप में बताती है। चोल काल में उत्कृष्ट कलाओं को मंदिरों की सेवा में प्रोत्साहन दिया जाता था। इसका उदाहरण शिल्पकला और चित्रकला के गर्भ गृह के आस-पास के रास्तों में और यहां तक की महान चोल ग्रंथ और तमिल पत्र में दिए गए शिला लेख दर्शाते हैं कि राजा राज के शासनकाल में इन महान कलाओं ने कैसे प्रगति करके सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। बृहदेश्वर मंदिर कला, धर्म और अध्यात्म के संगम में डूबा एक ऐसा स्थान है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

  • चेतन चौहान