
नई दिल्ली। श्रीलंका के जो हालात दिखाई दे रहे हैं वो ठीक नहीं हैं। देश की जनता एक बार फिर से सड़कों पर है। उसको देखते हुए मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे का भी राजनीतिक भविष्य कोई खास दिखाई देता है। देश की आर्थिक बदहाली के बाद जो विरोध-प्रदर्शनों देश में हुए उसकी वजह से राष्ट्रपति और पीएम को इस्?तीफा तक देना पड़ा था। पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया तो उसके चलते 52 दिनों तक देश के बाहर रहना पड़ा था। लेकिन, इन सभी के बीच ये भी एक सच्चाई है कि मौजूदा समय में देश की जो हालत है उसकी कहानी 2019 में ही राजपक्षे सरकार ने लिख दी थी। देश की इस आर्थिक बदहाली की वजह इस सरकार का चीन के प्रति झुकाव था।श्रीलंका की राजपक्षे सरकार का झुकाव चीन के प्रति अधिक होने का नतीजा बाद में जनता को भुगतना पड़ा। इस सरकार में गोटाबाया राजपक्षे देश के राष्?ट्रपति, उनके भाई महिंदा राजपक्षे पीएम और अन्य रिश्तेदार दूसरे अहम पदों पर मौजूद थे।

राजपक्षे सरकार के दौरान आई कोरोना महामारी ने भी देश की आर्थिक वृद्धि पर ब्रैक लगा दिया। कोरोना मामलों के चलते देश में पहले लाकडाउन लगाया गया और फिर कई दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा। ऐसे में देश में जरूरी चीजों की किल्लत शुरू हो गई।अप्रैल 2020 में इसके चलते देश में आम चुनावों को भी टाल दिया गया। सरकार की कर नीति और आर्गेनिक फार्मिंग की नीति का उलटा असर दिखाई दिया।
हंबनटोटा फायदे का सौदा था
वर्ष 2008 में श्रीलंका का सबसे बड़ा बंदरगाह हंबनटोटा फायदे का सौदा था, लेकिन 2016 में आर्थिक नुकसान के चलते सरकार ने इसको चीन की कंपनी चाइना मर्चेंट पोर्ट 90 वर्षों की लीज पर दे दिया था। इसके बदले में श्रीलंका को सवा अरब डालर का भुगतान किया गया। चीन ने इस पोर्ट को विकसित भी किया।
विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली
मौजूदा समय में देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली होने की कगार पर पहुंच चुका है। इसकी वजह से श्रीलंका विदेशों से भी अपनी जरूरत का सामान नहीं खरीद पा रहा है। खाने-पीने की चीजों के अलावा, उर्वरकों, पेट्रोल-डीजल और गैस के साथ-साथ अब श्रीलंका में जरूरी दवाओं की भी किल्लत चल रही है। इसकी वजह से अस्पतालों में मरीजों की सांसों पर संकट खड़ा हुआ है। ऐसे में करों का बोझ देश को और बुरी स्थिति में डाल सकता है।
चीन ने श्रीलंका को कर्ज के बोझ तले इस कदर दबा दिया कि उसका इससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया। श्रीलंका ने इस दौरान बांग्लादेश तक से कर्ज लिया।वर्ष 2021 में सरकार की गलत नीतियों की वजह से कृषि पैदावार में जबरदस्त कमी दर्ज की गई, जिसके चलते श्रीलंका को बाहरी मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। राजपक्षे सरकार की 2019 में लाई कर नीतियों की वजह से सरकार को रिवेन्यू में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। कोरोना महामारी ने देश के पर्यटन उद्योग से जुड़े 2 लाख लोगों का रोजगार छीन लिया। टूरिज्म इंडस्ट्री के डूबने से सरकार की आर्थिक नीतियां भी औंधेमुंह गिर गईं।वर्ष 2021 के अंत में देश के सामने आर्थिक बदहाली का संकट सामने आने लगा था।
अप्रैल 2022 से पहले ही सरकार ने इसको लेकर अंदेशा जता दिया था कि देश कंगाल घोषित किया जा सकता है। देश की मुद्रा में डालर के मुकाबले 30 फीसद की कमी आ गई थी। मौजूदा समय में देश अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। श्रीलंका पर 70 अरब डालर का कर्ज है जिसको चुकाने के लिए वो आईएमएफ, वल्?र्ड बैंक से गुहार लगा रहा है।
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