
ऑटिज्म, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहा जाता है, एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन है, जिसमें व्यक्ति का कम्युनिकेशन, सोशल कॉन्टेक्ट और बिहेवियर प्रभावित होता है। दुनियाभर में कई लोग इस समस्या से पीडि़त है, लेकिन बावजूद इसके आज भी लोगों में इसे लेकर जागरूकता की कमी है। इसलिए लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के मकसद से हर साल अप्रैल महीने को वल्र्ड ऑटिज्म मंथ और 2 अप्रैल को वल्र्ड ऑटिज्म डे मनाया जाता है। इस मौके पर हमने आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में न्यूरोसर्जरी और साइबरनाइफ के डायरेक्टर डॉ. आदित्य गुप्ता से बात की और जाना कि ऑटिज्म के अलग-अलग टाइप क्या होते हैं और इनके प्रमुख कारण क्या है? डॉक्टर से हमें ऑटिज्म के चार प्रमुख प्रकार बताएं, जो निम्न हैं। चार तरह के होते हैं ऑटिज्म डिसऑर्डर, ये हैं इसके कारण
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर

यह ऑटिज्म का सबसे गंभीर रूप है, जहां पीडि़त व्यक्ति को बोलने, सोशल स्किल्स और रीपिटेटिव बिहेवियर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके सामान्य लक्षणों में भाषा के विकास में देरी, आई कॉन्टैक्ट से बचना और सेंसरी सेंसिटिविटी शामिल हैं। इसका सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन जेनेटिक्स और पर्यावरणीय कारक इसमें एक मुख्य भूमिका निभाते हैं।
एस्परगर सिंड्रोम
एस्परगर सिंड्रोम वाले लोगों में क्लासिक ऑटिज्म की तुलना में हल्के लक्षण होते हैं। इनका दिमाग सामान्य से ज्यादा तेज हो सकता हैं, लेकिन सोशल कॉन्टैक्ट, इमोशन्स को समझने और बातचीत को बनाए रखने में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि एस्परगर सिंड्रोम जेनेटिक्स फैक्टर से जुड़ा हुआ है।
पर्वेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर
इस कैटेगरी में ऐसे लोग शामिल हैं, जो ऑटिज्म के कुछ लक्षण दिखाते हैं लेकिन इसके अन्य प्रकारों के मानदंडों को पूरी तरह से पूरा नहीं करते हैं। उन्हें कम्युनिकेशन में हल्की कठिनाई, रिपीटेटिव बिहेवियर और सोशल कॉन्टैक्ट में परेशानी हो सकती हैं। माना जाता है कि इसके कारण जेनेटिक्स और पर्यावरणीय प्रभावों का मिश्रण हैं।
चाइल्डहुड डिसइंटीग्रेटिव डिसऑर्डर
यह ऑटिज्म का एक दुर्लभ प्रकार, जिसमें बच्चे कुछ साल तक सामान्य रूप से विकसित होते हैं और फिर भाषा, सोशल कॉन्टैक्ट और मोटर एबिलिटीज में पहले से मिले स्किल खो देते हैं। इसका कारण अज्ञात है, लेकिन संदेह है कि इसमें न्यूरोलॉजिकल समस्याएं शामिल हैं। डॉक्टर ने बताया कि प्रारंभिक निदान और समय से सही थैरेपीज की मदद से ऑटिज्म को मैनेज करने, प्रभावित व्यक्तियों के लिए कम्युनिकेशन और लाइफ स्किल में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
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