दिवाली पर ये दीपक, नहीं बढ़ेगा प्रदूषण

इस दीपावली जलाएं सेहत का दीया
इस दीपावली जलाएं सेहत का दीया

प्रदूषण की समस्या दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर और मध्य भारत में फिर विकराल होने लगी है। कई शहरों की हवा बेहद खराब हो चुकी है। कुछ इलाकों में निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है। स्कूलों को भी बंद करना पड़ गया है। तमाम और बंदिशें भी लगाई गई हैं। इस बार ऐसी स्थिति दीपावली से पहले ही बन आई है।

एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो तर्क देता है कि प्रदूषण की वजह दिवाली के पटाखे नहीं हैं। मगर यह बात गंभीरता से समझनी होगी। भले ही संपूर्ण प्रदूषण के कारक दीवाली के पटाखे न हों, पर पटाखे जलाने से वायुमंडल में रासायनिक गैसों में होती ही है, इससे स्थिति बिगड़ेगी ही। वायुमंडल में व्याप्त ये जहरीली गैसें, सूक्ष्म कण सीधे-सीधे मानव जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। ऐसे में त्योहार को सतर्कता के साथ मनाएं, ताकि जीवन में सेहत के दीये दीर्घायु के तौर पर जलते रहें।

हवा की गति धीमी होने से छा जाती है धुंध

सर्दी शुरू होते ही आसमान में धुंध छाने लगती है। इस दौरान हवा की गति कम होती है और नमी बढऩे लगती है, जिससे धुआं और कोहरा स्थिर हो जाता है। इससे वायुमंडल में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इसमें तमाम रासायनिक गैसें और सूक्ष्म कण होते हैं, जो सेहत के लिए घातक हैं।

पटाखों से दूरी रख घटा सकते हैं प्रदूषण

इस दीपावली जलाएं सेहत का दीया
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हवा को प्रदूषित करने में सबसे ज्यादा जिम्मेदार कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर नाइट्रेट एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि गैसें हैं। वहीं दीपावली पर पटाखे जलाने से घातक कार्बन मोनोऑक्साइड का वातावरण में स्तर और बढ़ जाता है। लिहाजा पटाखों से दूरी बनाकर कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर कम कर सकते हैं। यह गैस फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित करती है। यह गैस यदि किसी हृदयरोग से पीडि़त व्यक्ति में प्रवेश कर जाएं तो वह रक्त में घुल जाती है। इससे जब हृदय से पंप होकर रक्त शरीर के दूसरे हिस्सों में जाता है तो यह गैस उसके साथ पूरे शरीर में फैल जाती है। इससे शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में हृदयाघात होने की आशंका बढ़ जाती है।

प्रदूषण बना देता है शरीर को बीमारियों का घर

इस दीपावली जलाएं सेहत का दीया
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बढ़ते प्रदूषण के कारण या ज्यादा देर तक प्रदूषित हवा के बीच रहने से कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। सामान्य तौर पर इसके लक्षण खांसी, नाक-गला बंद होना, गले में दर्द, सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन या आंखों से पानी आना और लाल हो जाना आदि हैं। प्रदूषित वातावरण में रहने से कई खतरनाक बीमारियों का खतरा मंडराने लगता है :

अस्थमा का प्रभाव होना

हृदयाघात होना

समय-पूर्व या कम वजन के शिशु का जन्म होना
गर्भ में शिशु की मृत्यु हो जाना
शिशु में जन्म से ही बीमारियां हो जाना
शिशु का शारीरिक विकास बाधित हो जाना
फेफड़ों में कैंसर होना
सीओपीडी की समस्या अनियंत्रित हो जाना
फेफड़े के ऊतकों में सूजन और जलन

ऐसे बरतें सतर्कता

पहले से किसी बीमारी, जैसे-दमा, अस्थमा, सीओपीडी, क्रोनिक इंफ्लेमेटरी लंग डिजीज, हृदय रोग आदि से पीडि़त लोग सुबह-शाम बाहर निकलने से बचें।
जिन मरीजों को पहले से सांस की बीमारी है, उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए जैसे कि दवा सेवन का नियम से पालन करना, मास्क पहनना और ठंडी हवा के संपर्क में आने से बचना।
वायु प्रदूषण बच्चे, वृद्ध और गर्भवती महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है। ये अपनी दिनचर्या सीमित रखकर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से बच सकते हैं। सर्दियों में सुबह टहलने या किसी अन्य गतिविधि के लिए बाहर जाने से बचना चाहिए।
इस दौरान ठंडी चीजें जैसे-कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम खाने से बचना चाहिए। साथ ही फास्टफूड, डिब्बा बदं खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।
योग, व्यायाम बेहद कारगर हो सकता है। लेकिन इन दिनों इसे घर के अंदर ही करना बेहतर होगा। इससे सर्दी और धुंध से बचाव हो सकेगा। व्यायाम, योग और प्राणायाम करने से फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

फेफड़े को ऐसे रखें स्वस्थ

प्रदूषण में रोगी बाहर व्यायाम के बजाय घर में व्यायाम, योग करें।
स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, एरोबिक्स, डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज। यह फेफड़े की ताकत को बढ़ाएंगे।
सुपाच्य व पौष्टिक आहार का सेवन करें। बासी भोजन न करें।
गर्म पानी-भाप लें। गुनगुने पानी का सेवन करें, इससे गले में संक्रमण से राहत मिलेगी।
सांस रोगी इनहेलर आदि दवाएं बंद न करें। समय पर डॉक्टर को दिखाएं।

इम्युनिटी ऐसे रखें दुरुस्त

नियमित लहसुन खाएं। इसमें पर्याप्त मात्रा में एंटीबायोटिक तत्व होते हैं।
मशरूम के सेवन से श्वेत रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है।
गाजर-चुकंदर से शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं में वृद्धि होती है।
हरी सब्जियों के सेवन से शरीर को पर्याप्त विटामिन, प्रोटीन मिलता है।
पालक, सोया, बथुआ का सेवन करें।
सेब, अंगूर, अनार, पपीता, संतरा आदि मौसमी फलों से प्रचुर मात्रा में विटामिन मिलते हैं।
ग्रीन-टी एंटीआक्सीडेंट है। यह छोटी आंत के बैड बैक्टीरिया को मारती है।
अंजीर में फाइबर मैंगनीज, पोटैशियम होता है। इसका एंटीआक्सीडेंट शुगर लेवल को नियंत्रित करता है।
अदरक में एंटीआक्सीडेंट, एंटी इन्फ्लेमेटरी तत्व होते हैं। यह शरीर में सूजन को कम करता है ।
दिन भर में पांच लीटर पानी पिएं। कोल्ड ड्रिंक, फास्ट फूड, जंक फूड के सेवन से बचें।

ध्यान रखें ये बातें

अपनी दवाओं को नियम से लें और मास्क पहनें।
जरूरी न हो तो बाहर जाने से बचें।
ठंडी हवा के संपर्क में आने से बचें।
कोयला आधारित हीटर, बायोमास और ईंधन जलाने से बचें।

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